मागशर वद ८ ना दिवसे शासनमान्य भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेवनी ‘आचार्य पदवी’ नो महान् दिवस
पण आनंद अने उल्लासपूर्वक उजवायो हतो.
थयुं हतुं अने २४७५ ना आचार्यपददिने (मागशर वद आठमे) पूरुं थयुं छे. आठमी वखतना वांचनना छेल्ला
प्रवचननी पूर्णता करतां पू. गुरुदेवश्रीए आत्म–अनुभवनी अद्भुत प्रेरणा करतां जणाव्युं हतुं: ‘हे जीवो!
अंदरमां ठरो रे ठरो! अनंत महिमावंत शुद्ध आत्मस्वभावनो आजे ज अनुभव करो. ’ ‘आ समयसारना
वांचननी शरूआत श्रुतपंचमीना दिवसे थई हती अने पूर्णता आचार्यपदवीना दिवसे थाय छे, ए रीते
श्रुतपंचमी ते ज्ञाननो दिवस छे, ने आचार्यपदवीमां चारित्र छे एटले ज्ञानथी शरूआत थई ते आगळ वधतां
एवा जयकारपूर्वक ज्यारे पू. गुरुदेवश्रीए समयसारनी पूर्णता करी त्यारे, समस्त मुमुक्षु श्रोताजनोए बहु ज
आनंद–उल्लास अने भक्तिपूर्वक ते जयकारने वधावी लीधो हतो अने ‘सद्धर्म प्रभावक दुदुंभी मंडळ’ ना
वाजिंत्रोए पण ते जयकारमां पोतानो सूर पूराव्यो हतो.
प्रवचनोनो योग बन्यो छे. थोडा वर्षो पहेलां आ सौराष्ट्र भूमिमां परमागम श्री समयसारनुं नाम भाग्ये ज
कोई के सांभळ्युं हशे! पण आजे एवो कोण जैन हशे के जेणे परमागम श्री समयसारनुं नाम नहि सांभळ्युं
होय! समयसार उपरना व्याख्यानो द्वारा पू. गुरुदेवश्रीए, मात्र सौराष्ट्रना ज मुमुक्षुओ उपर नहि पण
नथी एवी अपूर्व देशनालब्धि प्राप्त करवानुं एक अद्वितीय स्थान आजे पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोनुं श्रवण ज
छे. ‘समयसार’ एटले शुद्ध आत्मा, अने ‘समयसार’ एटले उत्कृष्ट जैन ग्रंथाधिराज–ए बंनेना अंतरमंथनवडे
अपूर्व अमृत काढी कढीने पोते पीधुं छे ने जगतना जिज्ञासुओने पीवराव्युं छे. प्रशमरसना भावथी नीतरता
समयसारना व्याख्यानो सांभळनार आत्मार्थी जीवनुं हृदय, तेना रचनार–टीकाकार महासमर्थ आभना थोभ
जेवा आचार्य भगवंतो प्रत्ये अने प्रवचनकार अध्यात्म मूर्ति पू. गुरुदेवश्री प्रत्ये परम श्रद्धा अने भक्तिपूर्वक
वारंवार नमी पडे छे.
करवा छतां मुमुक्षु श्रोताजनोने तेना श्रवणमां कदी कंटाळो नथी आवतो, पण ऊलटुं फरी फरीने सांभळवानुं
मन थाय छे. जेम जेम समयसार फरी फरीने वंचातु जाय छे तेम तेम अध्यात्म न्यायोनी सूक्ष्मता वधती जाय
छे; अने जेम जेम न्यायोनी सूक्ष्मता वधती जाय छे तेम तेम आत्मार्थी श्रोताजनोनो उपयोग पण सूक्ष्म थतो
जाय छे अने तेमना अंतरमां अपूर्व श्रुतनी लहेरो ऊठे छे.
समयसारना विशेष ऊंडा–ऊंडा रहस्यने प्रकाश्या करो अने जगतना आत्मार्थी जीवो ते रहस्यने पामीने दुर्लभ
मानव जीवननी साची सार्थकता करो!
थई जाय