Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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मागशर वद ८ ना दिवसे शासनमान्य भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेवनी ‘आचार्य पदवी’ नो महान् दिवस
हतो; सोनगढमां ते प्रसंग विशेष उत्साहपूर्वक उजवायो हतो. अने साथे साथे ते दिवसे परमागम श्री
समयसारजी उपर परमपूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना आठमी वखतना व्याख्यानोनी पूर्णतानो प्रसंग
पण आनंद अने उल्लासपूर्वक उजवायो हतो.
जेम मुनिवरोमां कुंदकुंद भगवाननुं अग्रस्थान छे, तेम जैन परमागमोमां ‘समयसार’ नुं अग्रस्थान छे.
व्याख्यानमां आ समयसारनुं आठमी वखतनुं वांचन सं. २४७२ ना श्रुतपंचमी (जेठ सुद प) ना दिवसे शरू
थयुं हतुं अने २४७५ ना आचार्यपददिने (मागशर वद आठमे) पूरुं थयुं छे. आठमी वखतना वांचनना छेल्ला
प्रवचननी पूर्णता करतां पू. गुरुदेवश्रीए आत्म–अनुभवनी अद्भुत प्रेरणा करतां जणाव्युं हतुं: ‘हे जीवो!
अंदरमां ठरो रे ठरो! अनंत महिमावंत शुद्ध आत्मस्वभावनो आजे ज अनुभव करो. ’ ‘आ समयसारना
वांचननी शरूआत श्रुतपंचमीना दिवसे थई हती अने पूर्णता आचार्यपदवीना दिवसे थाय छे, ए रीते
श्रुतपंचमी ते ज्ञाननो दिवस छे, ने आचार्यपदवीमां चारित्र छे एटले ज्ञानथी शरूआत थई ते आगळ वधतां
चारित्र दशा प्राप्त करीने ठेठ केवळज्ञान सुधी पहोंचीने पूरुं थशे. –बोलो समयसार भगवाननो....जय हो! –
एवा जयकारपूर्वक ज्यारे पू. गुरुदेवश्रीए समयसारनी पूर्णता करी त्यारे, समस्त मुमुक्षु श्रोताजनोए बहु ज
आनंद–उल्लास अने भक्तिपूर्वक ते जयकारने वधावी लीधो हतो अने ‘सद्धर्म प्रभावक दुदुंभी मंडळ’ ना
वाजिंत्रोए पण ते जयकारमां पोतानो सूर पूराव्यो हतो.
खरेखर समयसारना सागर समान गंभीर रहस्यने वारंवार संभळावी संभळावीने पू. गुरुदेवश्रीए
मुमुक्षु जीवो उपर महान् उपकार कर्यो छे. सौराष्ट्रना मुमुक्षुओना महा सद्भाग्ये ज आ समयसारना
प्रवचनोनो योग बन्यो छे. थोडा वर्षो पहेलां आ सौराष्ट्र भूमिमां परमागम श्री समयसारनुं नाम भाग्ये ज
कोई के सांभळ्‌युं हशे! पण आजे एवो कोण जैन हशे के जेणे परमागम श्री समयसारनुं नाम नहि सांभळ्‌युं
होय! समयसार उपरना व्याख्यानो द्वारा पू. गुरुदेवश्रीए, मात्र सौराष्ट्रना ज मुमुक्षुओ उपर नहि पण
लगभग आखाय भारतदेशना मुमुक्षुओ उपर महान् उपकार कर्यो छे. जेना वगर जीवने कदी पण धर्म थतो
नथी एवी अपूर्व देशनालब्धि प्राप्त करवानुं एक अद्वितीय स्थान आजे पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोनुं श्रवण ज
छे. ‘समयसार’ एटले शुद्ध आत्मा, अने ‘समयसार’ एटले उत्कृष्ट जैन ग्रंथाधिराज–ए बंनेना अंतरमंथनवडे
अपूर्व अमृत काढी कढीने पोते पीधुं छे ने जगतना जिज्ञासुओने पीवराव्युं छे. प्रशमरसना भावथी नीतरता
समयसारना व्याख्यानो सांभळनार आत्मार्थी जीवनुं हृदय, तेना रचनार–टीकाकार महासमर्थ आभना थोभ
जेवा आचार्य भगवंतो प्रत्ये अने प्रवचनकार अध्यात्म मूर्ति पू. गुरुदेवश्री प्रत्ये परम श्रद्धा अने भक्तिपूर्वक
वारंवार नमी पडे छे.
परम कृपाळु पू. गुरुदेवश्रीनी, अध्यात्म, मस्तीथी भरपूर व्याख्यान–वीणा सांभळतां भावुक श्रोताजन
एकतार बनी जाय छे. पू. गुरुदेवश्रीना श्रीमुखथी समयसारना व्याख्यानोनुं अनेक वर्षोथी एकधारुं श्रवण
करवा छतां मुमुक्षु श्रोताजनोने तेना श्रवणमां कदी कंटाळो नथी आवतो, पण ऊलटुं फरी फरीने सांभळवानुं
मन थाय छे. जेम जेम समयसार फरी फरीने वंचातु जाय छे तेम तेम अध्यात्म न्यायोनी सूक्ष्मता वधती जाय
छे; अने जेम जेम न्यायोनी सूक्ष्मता वधती जाय छे तेम तेम आत्मार्थी श्रोताजनोनो उपयोग पण सूक्ष्म थतो
जाय छे अने तेमना अंतरमां अपूर्व श्रुतनी लहेरो ऊठे छे.
परम उपकारी पूज्य गुरुदेवश्रीए अमृतवाणी द्वारा जे रीते समयसारना ऊंडा–ऊंडा रहस्यने आठ
वखत समजावीने अनेक आत्मार्थी जीवोना जीवनने पावन करी दीधां छे ते ज रीते फरी फरीने अनेक वार
समयसारना विशेष ऊंडा–ऊंडा रहस्यने प्रकाश्या करो अने जगतना आत्मार्थी जीवो ते रहस्यने पामीने दुर्लभ
मानव जीवननी साची सार्थकता करो!
जीवने अनादिनी मोह मूर्छामांथी जागृत करीने पोताना भगवान् स्वरूपनुं दर्शन करावनार महामंत्रो
समयसारमां भरेलां छे. ब्रह्मांडना भावो समयसारमां समाई गया छे; तेनुं ‘श्रवण’ करतां मोहबंधन शिथिल
थई जाय
[अनुसंधान टाईटल पान ३]