गाथा–६
: फागण : २४७प : आत्मधर्म : १०५ :
पोते जेटलो रागटाळीने पोतामां ठरे छे तेटली पोताना आत्मानी ज सेवा छे.
(४९) ज्ञानीओ प्रतिमा पासे केम जाय छे?
ज्ञानीओ पण जिनप्रतिमाना दर्शनादि करे छे; त्यां अज्ञानीने एवुं लागे छे के “भगवाननी प्रतिमा
पासेथी कांईक मागे छे; जो तेमनी पासे कांई न मागता होय तो तेमनी पासे जाय शा माटे?” पण ज्ञानीओ
प्रतिमा वगेरे परद्रव्य पासेथी कांई मागता नथी. पोताने शुभ विकल्प ऊठ्यो छे, त्यां प्रतिमा वगेरे निमित्त
कोईवार होय छे, पण ते निमित्तना अवलंबने राग थयो नथी. पोताने भगवानना स्वरूपनी ओळखाणपूर्वक
शुभ विकल्प ऊठ्यो छे तेथी प्रतिमामां जिनेन्द्रदेवनो निक्षेप करे छे. मिथ्याद्रष्टि जीवने सम्यक्नय ज होता नथी
तेथी ते निक्षेपना स्वरूपने पण जाणतो नथी. निक्षेप करनार तो सम्यक्नय छे.
(प०) कोई पण तत्त्वनो उकेल करवा माटेनी चावी
कोई कहे के ‘शास्त्रथी ज्ञान थाय छे.’ तो ज्ञानी तेने पूछे छे के शास्त्र ते कयुं द्रव्य? जे द्रव्य शास्त्रो छे ते
तो परमाणु छे–जड छे–अचेतन छे, तेमांथी शुं ज्ञान थाय? जड वस्तुथी तो ज्ञान थाय ज नहि. अने जो भाव–
शास्त्र कहो तो ते तो आत्मानी ज निर्विकारी ज्ञान पर्याय छे, तेमां निमित्तनुं अवलंबन नथी. द्रव्य–गुण–
पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप ओळखवाथी ज जैन दर्शनना दरेक तत्त्वनो यथार्थ उकेल थई शके छे.
कोई कहे के ‘भगवाननी वाणीथी ज्ञान थयुं;’ तो तेने ज्ञानी पूछे छे के भगवान एटले शुं? ते द्रव्य–गुण
के पर्याय? अने वाणी एटले शुं?–ते कोनी पर्याय? पहेलांं, भगवान तो आत्मद्रव्यनी पर्याय छे अने वाणी तो
जडनी पर्याय छे, माटे वाणी खरेखर भगवाननी नथी. अने वाणी जड–छे तेनाथी ज्ञान–थतुं नथी. आम
संयोगथी अने रागथी जुदुं ज्ञानस्वरूप जाणे तो ते ज्ञान स्व परने यथार्थ जाणी शके. पण जो रागमां ने परमां
ज एकपणुं माने तो ज्ञान स्वने के परने यथार्थ जाणी शके नहि. ।। ५।।
वळी सिद्धभगवाननुं स्वरूप विशेषपणे ओळखावे छे––
केवल दंसण णाणमय केवल सुक्ख सहाय।
जिणवर बंदउं भत्तियए जेहिं पयासिय भाव।। ६।।
अर्थ:–जेओ केवळदर्शन अने केवळज्ञानमय छे तथा केवळ सुख ज जेमनो स्वभाव छे अने जेमणे
जीवादिक समस्त पदार्थो प्रकाशित कर्या छे (–जाण्या छे, ने कह्या छे) ते परमात्माने हुं नमस्कार करुं छुं.
(प१) सिद्धभगवाने शेनुं सुख?
प्रश्न:–सिद्ध भगवानने शरीर अने ईन्द्रियो के बाह्य कांई सामग्री नथी छतां तेओ केवळ सुखमय छे तो
तेओ कई रीते सुखी हशे?
उत्तर:–त्यां केवळज्ञान–केवळ दर्शनमय स्वभाव छे, सिद्धने पोतानी पूर्ण शुद्ध पर्यायनुं ज सुख छे. सिद्ध
दशामां अथवा तो कोई पण जीवने सुख माटे जे सामग्रीनी जरूर माने छे अने परने संभारे छे तेने
सुखस्वरूपी आत्मानी प्रतीति नथी अने तेणे ज्ञानस्वभावने जाण्यो नथी. सिद्धदशामां तो आत्मानी आकुळता
टळी गई छे अने एकला सुखरूप दशा थई गई छे. साधक जीवने पोतानी पर्यायनुं पूर्णध्येय सिद्धदशा छे तेथी
तेने ओळखीने बहु मान करे छे–वारंवार स्मरण करीने नमस्कार करे छे. अहीं शरूआतथी ६ गाथा सुधी
सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या छे. (–चालु)
वर्द्धमानपुरीमां जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त
श्री वर्द्धमानपुरी (वढवाण शहेर)मां पोष वद ३ने सोमवारना दिवसे श्री जिनमंदिर तथा
स्वाध्यायमंदिरनुं खातमुहूर्त त्यांना मुमुक्षुमंडळे उत्साहपूर्वक कर्युं हतुं. खातमुहूर्तनो विधि सोनगढमां
ब्रह्मचारी श्री गुलाबचंदभाईए कराव्यो हतो. परम पूज्यगुरुदेवश्री जैनधर्मनी जे अपूर्व प्रभावना करी
रह्या छे तेनो ज आ प्रताप छे. आ मंगळ कार्यनी शरूआत करवा माटे वर्द्धमानपुरीना मुमुक्षुओने वधाई!!
आजीवन ब्रह्मचर्य
महा वद प गुरुवार ता १७–र–४९ना रोज परम पूज्य सदगुरुदेवश्री विहार करीने गोरडका गामे
पधार्या त्यारे त्यांना भाई श्री मनसुखलाल अमीचंदभाई (उ. व. ४४) तथा तेमनां धर्मपत्नी पारवती
बेन–तेमणे पू. गुरुदेवश्री पासे सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्य पाळवानी प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे. आ शुभकार्य
बदल तेओने धन्यवाद.