थयो हतो. वींछियामां प्रतिष्ठा करावनार तरीके शेठ श्री नेमिदास खुशालभाई (पोरबंदरवाळा) हता. अने
प्रतिष्ठानो विधि कराववा माटे इंदोरथी प्रतिष्ठाचार्य संहितासुरी पंडित श्री नाथुलालजी पधार्या हता. आ
अमूल्य अवसरने मुमुक्षुओए महान उत्साहवडे दीपाव्यो हतो.
बीजो संवाद फागणसुद २ ने दिवसे बाळकोए भजव्यो हतो. बंने संवादमां केटलाक प्रसंगो खास विशेष
आकर्षक हता.
वर्तमान तीर्थंकरो, पंच परमेष्ठि भगवंतो वगेरेनी स्थापना करीने तेमनुं पूजन करवामां आव्युं हतुं. बपोरे
गर्भकल्याणकनी पूर्व क्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं. बीजी चोथने दिवसे पण गर्भकल्याणकनो पूर्व विधि थयो हतो तेमां
माताजीना १६ स्वप्नोनुं द्रश्य, देव–देवीओ द्वारा स्तुति, देवोद्वारा वस्त्रनी भेट अर्पण, तथा देवकुमारीओ
माताने विधविध तत्त्वना प्रश्नो पूछे छे ने माता तेना जवाब आपे छे–वगेरे द्रश्यो थया हता.
उपर मेरु पर्वत उपर जन्माभिषेक करवा तेडी जाय छे, बालप्रभुजी हाथी उपर बिराजी रह्या छे, मेरु पर्वत पासे
हतुं. अने ज्यारे प्रभुश्रीने मेरु पर्वत उपर बिराजमान निहाळ्या ते वखते तो मुमुक्षु भक्तजनोना अंतरमां
कंई कंई थई जतुं हतुं; अहो, अद्भुत द्रश्य छे! आवुं द्रश्य जिंदगीमां जोयुं नथी, साक्षात् जन्मकल्याणक जेवुं
लागे छे. अहो! जिनेंद्रदेव तो हजी बाळक छे छतां आटलो महिमा! खरेखर आ बधो चैतन्यनो महिमा छे,
अंतरमां चैतन्यद्रव्य जाग्युं छे तेनो ज आ प्रताप छे.” पछी घणा महान उत्साह अने जयकार नाद वच्चे
प्रभुश्रीनो जन्माभिषेक कर्यो. अभिषेक बाद ईन्द्राणीए प्रभुने वस्त्रालंकर पहेराव्यां. ए रीते जन्माभिषेक करीने
पाछा फर्यां. प्रभुनी रथयात्रा घणी ज शोभती हती. पाछा आव्या बाद ईन्द्रोए तांडवनृत्य कर्युं.
रात्रे ईन्द्रोए फरीथी “
राजदरबारमां देशोदेशना राजा–महाराजाओ प्रभुने भेट धरवा आव्या हता. ईत्यादि द्रश्यो थया हता.
महाराजा आदिनाथ भगवान परम वैराग्य पामे छे. संसारथी विरक्त थईने परम उपशमभावथी अंतरमां बार
वैराग्य भावनाओनुं चिंतवन करी रह्या छे. तरत ज लोकांतिक देवो प्रभुनी स्तुति अने वैराग्यनी पुष्टि करवा
आवे छे. लोकांतिक देवो प्रथम भगवाननी स्तुति करीने पछी भक्तिपूर्वक तेमना प्रत्ये कहे छे के प्रभो, आप
स्वयंबुद्ध छो, आपश्री आज भवमां केवळज्ञान प्रगट करीने मुक्त थनारा छो अने जगतना जीवोने मुक्तिनो
मार्ग देखाडनारा छो. अहो, धन्य छे प्रभो! आपनी वैराग्यभावनाने धन्य छे. समस्त संसार भावथी विरक्त