Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: ११६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४७५ :
(के जे मंत्र थया पछी प्रतिमाओ पूजनिक मनाय छे ते) परमपूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना शुभहस्ते
थयो हतो. वींछियामां प्रतिष्ठा करावनार तरीके शेठ श्री नेमिदास खुशालभाई (पोरबंदरवाळा) हता. अने
प्रतिष्ठानो विधि कराववा माटे इंदोरथी प्रतिष्ठाचार्य संहितासुरी पंडित श्री नाथुलालजी पधार्या हता. आ
अमूल्य अवसरने मुमुक्षुओए महान उत्साहवडे दीपाव्यो हतो.
फागण सुद एकमथी समोसरण विधान शरू थयुं हतुं, तेमां समोसरणनी सुंदर रचना करीने तेनुं पूजन
करवामां आव्युं हतुं. अने रात्रे प्रतिष्ठा महोत्सवने लगतो एक सुंदर संवाद बालिकाओए भजव्यो हतो, अने
बीजो संवाद फागणसुद २ ने दिवसे बाळकोए भजव्यो हतो. बंने संवादमां केटलाक प्रसंगो खास विशेष
आकर्षक हता.
फागण सुद ३ ने दिवसे वेदीशुद्धिनी विधि थई हती. ते दिवसे रात्रे भाईओए डांडियारास सहित भक्ति
करी हती.
फागण सुद चोथ (पहेली) : आजे ईन्द्रप्रतिष्ठा थई, ११ ईन्द्रोनी स्थापना थई अने ते ईन्द्रोने
सरघसरूपे गाममां फेरव्या हता, ते देखाव घणो भव्य हतो. तथा याग्मंडलनी रचना करीने तेमां भूत–भावि–
वर्तमान तीर्थंकरो, पंच परमेष्ठि भगवंतो वगेरेनी स्थापना करीने तेमनुं पूजन करवामां आव्युं हतुं. बपोरे
व्याख्यान पछी वींछियाना त्रिभोवनभाईए सजोडे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लीधी हती. रात्रे ८ थी ९ प्रभुश्रीना
गर्भकल्याणकनी पूर्व क्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं. बीजी चोथने दिवसे पण गर्भकल्याणकनो पूर्व विधि थयो हतो तेमां
माताजीना १६ स्वप्नोनुं द्रश्य, देव–देवीओ द्वारा स्तुति, देवोद्वारा वस्त्रनी भेट अर्पण, तथा देवकुमारीओ
माताने विधविध तत्त्वना प्रश्नो पूछे छे ने माता तेना जवाब आपे छे–वगेरे द्रश्यो थया हता.
जन्मकल्यणक महत्सव
फागण सुद प ना दिवसे सवारे जन्मकल्याणक उत्सव थयो हतो. आ प्रसंग घणा महान् उत्साहथी
भव्यरीते ऊजवायो हतो. भगवाननो जन्म थतां ईन्द्रईन्द्राणी आवीने बाळक ऋषभकुमार भगवानने हाथी
उपर मेरु पर्वत उपर जन्माभिषेक करवा तेडी जाय छे, बालप्रभुजी हाथी उपर बिराजी रह्या छे, मेरु पर्वत पासे
पहोंच्या बाद हाथी मेरूपर्वतने त्रण प्रदक्षिणा करे छे–ए बधा वखते प्रभुजीनुं अद्भुत द्रश्य खरेखर दर्शनीय
हतुं. अने ज्यारे प्रभुश्रीने मेरु पर्वत उपर बिराजमान निहाळ्‌या ते वखते तो मुमुक्षु भक्तजनोना अंतरमां
कंई कंई थई जतुं हतुं; अहो, अद्भुत द्रश्य छे! आवुं द्रश्य जिंदगीमां जोयुं नथी, साक्षात् जन्मकल्याणक जेवुं
लागे छे. अहो! जिनेंद्रदेव तो हजी बाळक छे छतां आटलो महिमा! खरेखर आ बधो चैतन्यनो महिमा छे,
अंतरमां चैतन्यद्रव्य जाग्युं छे तेनो ज आ प्रताप छे.” पछी घणा महान उत्साह अने जयकार नाद वच्चे
प्रभुश्रीनो जन्माभिषेक कर्यो. अभिषेक बाद ईन्द्राणीए प्रभुने वस्त्रालंकर पहेराव्यां. ए रीते जन्माभिषेक करीने
पाछा फर्यां. प्रभुनी रथयात्रा घणी ज शोभती हती. पाछा आव्या बाद ईन्द्रोए तांडवनृत्य कर्युं.
बपोरे भगवानश्री ऋषभकुंवरनुं पारणुं झुलाववानी क्रिया थई.
रात्रे ईन्द्रोए फरीथी “
अब तो मिले जगत के नाथ” एवी स्तुति सहित प्रभु पासे भक्ति नृत्य कर्युं
हतुं. त्यारबाद आदिकुंवर भगवाननो राज्याभिषेक थयो हतो. अने महाराजाधिराज श्री आदिनाथ भगवानना
राजदरबारमां देशोदेशना राजा–महाराजाओ प्रभुने भेट धरवा आव्या हता. ईत्यादि द्रश्यो थया हता.
दीक्षा कल्याणक महोत्सव
फागण सुद ६: आजे प्रभुश्री आदिनाथ भगवानना महान वैराग्यनो दिवस छे. सवारमां आदिनाथ
महाराजानो राजदरबार भरायो छे, नीलांजनादेवी भक्तिथी नृत्य करी रही छे, नृत्य करतां करतां ते देवीनुं
आयुष्य पूरुं थई जाय छे. ने तेना स्थाने बीजी देवी आवे छे. अहो, संसारनी आवी क्षणभंगुरतानुं द्रश्य जोतां
महाराजा आदिनाथ भगवान परम वैराग्य पामे छे. संसारथी विरक्त थईने परम उपशमभावथी अंतरमां बार
वैराग्य भावनाओनुं चिंतवन करी रह्या छे. तरत ज लोकांतिक देवो प्रभुनी स्तुति अने वैराग्यनी पुष्टि करवा
आवे छे. लोकांतिक देवो प्रथम भगवाननी स्तुति करीने पछी भक्तिपूर्वक तेमना प्रत्ये कहे छे के प्रभो, आप
स्वयंबुद्ध छो, आपश्री आज भवमां केवळज्ञान प्रगट करीने मुक्त थनारा छो अने जगतना जीवोने मुक्तिनो
मार्ग देखाडनारा छो. अहो, धन्य छे प्रभो! आपनी वैराग्यभावनाने धन्य छे. समस्त संसार भावथी विरक्त