: चैत्र : २४७५ : आत्मधर्म : ११७ :
थईने भगवती जिनदीक्षा धारण करवा माटे आपश्री जे चिंतवना करी रह्या छो तेने अमारी अत्यंत
अनुमोदना छे, आपश्रीना दीक्षाकल्याणक महोत्सवनो जय हो जयहो.
ए प्रमाणे वैराग्यनी पुष्टि करावीने लोकांतिक देवो गया बाद प्रभुश्री पालखीमां बिराजीने वनमां दीक्षा
लेवा माटे संचरे छे. भगवानना वैराग्यना आ बधा द्रश्यो आखी सभाने वैराग्यभावनामां डुबाडी देता–हता.
भगवाननी पाछळ पाछळ वैराग्य भरेली भक्ति करता करता भक्तोना टोळां थई रह्यां हतां–
वंदो वंदो परम वीतरागी त्यागी जिने रे, थाये जिन दीगंबर मुद्राधारी देव.
श्री ऋषभप्रभुजी तपोवनमां संचरे रे.
वनमां जईने प्रभुश्री एक विशाळ वडवृक्ष नीचे बिराजमान थया, राजवस्त्रो छोडीने नग्नमुद्रा धारण
करी, पछी केशलोच कर्यो. प्रभुश्रीनो केशलोच करतां पू. गुरुदेवश्रीए कह्युं के प्रभु तो जाते ज लोच करे, पण आ
तो प्रभुना दीक्षाकल्याणकनी स्थापना छे. दीक्षा वखतनुं वैराग्यद्रश्य बहु गंभीर हतुं. दीक्षाबाद प्रभुश्री
आत्मध्यानमां बेठा ने मनःपर्ययज्ञान ऊपज्युं. पछी प्रभुजी तो वनमां विहार करी गया.
प्रभुश्रीनो दीक्षाविधि पूरो थया बाद त्यां वनमां ज पू. गुरुदेवश्रीए दीक्षाकल्याणकने शोभतुं अपूर्व
व्याख्यान कर्युं हतुं. ए दिवसनुं व्याख्यान खरेखर एक जुदो ज पडघो पाडी जतुं हतुं. व्याख्यान वखते
वैराग्यमस्तीथी नाची रहेली पू. श्री.नी मुद्रा भावुक मुमुक्षुजनोनां हृदयमां कोतराई गई छे. व्याख्यानमां पू. श्री.
ए मुनिदशामां आत्माने अंतरनी शांतिना शेरडा होवानुं जे वर्णन कर्युं हतुं ते सांभळतां मुमुक्षुना हृदयो
भावनाथी नाची ऊठता हता अने आखी सभा स्तब्ध बनी गई हती.
व्याख्यान बाद भाईश्री अमरचंदभाई तथा तेमना धर्मपत्नी रूपाळीबहेने ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा धारण करीने
ते प्रसंगने दीपाव्यो. त्यारबाद वैराग्यमां मग्न थयेलुं भक्तमंडळ पाछुं फर्युं, पालखीमां मात्र प्रभुना केश हता.
बपोरे १०।। वागे प्रभु श्रीऋषभमुनिराज आहार माटे गाममां पधार्या. आहारदाननो प्रसंग शेठश्री
प्रेमचंद भाईने त्यां थयो. प्रभुश्रीने आहारदान वखतनुं द्रश्य घणुं उल्लासमय हतुं.
पू. गुरुदेवश्रीना पवित्र हस्ते जिनेन्द्र प्रतिष्ठामंत्र
बपोरे एक वागे पू. गुरुदेवश्री पधार्या अने श्री जिनप्रतिमाओ उपर मंत्रविधि शरू थयो. आ मंत्रविधि
थया पहेलांं प्रतिमाजी अपूज्य होय छे, ने आ मंत्रविधि थयां पछी प्रतिमाजी पूजनीक थाय छे. प्रतिष्ठा
विधानमां आ क्रिया घणी महत्त्वनी छे. महापवित्र जिनप्रतिमा उपर, महापवित्र भाव वडे, पवित्र हस्ते
सोनानी सळीवडे ‘ओं अं नमः’ एवो पवित्र मंत्र पू. गुरुदेवश्रीए लखवो शरू कर्यो ते वखते महान्
जयजयकार पूर्वक भक्तजनोए ए पवित्र प्रसंगने वधाव्यो हतो.
त्यारबाद बपोरे २।। वागे सर्व प्रतिमाजी उपर नेत्रोन्मिलन विधि पण पू. गुरुदेवश्रीए कर्यो हतो.
केवळज्ञान कल्याणक
बपोरे ३ वागे प्रभुश्रीना केवळज्ञान कल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं, जेमां प्रभुश्री ऋषभमुनिराज
आत्मध्यानमां लीन छे अने तेमने केवळज्ञान प्रगटे छे. तरत ज देवो आवीने प्रभुने वधावे छे, स्तुति करे छे,
समोसरण रचाय छे. समोसरणमां चौमुखे प्रभुजी बिराजमान छे, बारसभा भराणी छे अने प्रभुश्रीनी
दिव्यध्वनि छूटे छे.
आ प्रसंगे भगवानना दिव्यध्वनिरूपे पू. गुरुदेवश्रीए प्रवचन कर्युं हतुं, जेमां दिव्यध्वनिमां भगवाने
कहेला उपदेशनो सार कह्यो हतो. ए प्रवचन बहु कल्याणकारी हतुं.
आजे दीक्षा अने केवळ कल्याणकना प्रसंगो अद्भुत हता, अने ते बंने प्रसंगना प्रवचनो पण एवा ज
अद्भुत हता. आजनो दिवस घणो वैराग्यमय आनंद अने उल्लासनो हतो. मुमुक्षु भक्तोने एम थतुं हतुं के
अहो! जीवन कृतार्थ थयुं. धन्य, धन्य जिनेन्द्रकल्याणक. धन्य ते पंचकल्याणकनो महिमा. हे जिनेन्द्रो! तमारा
पंचकल्याणक मारा आत्मानुं कल्याण करो.
निर्वाणकल्याणक अने श्री जिनेन्द्र प्रतिष्ठा
फागण सुद ७ ने सोमवार आजे भगवानश्री चंद्रप्रभस्वामी अने सुपार्श्वनाथ स्वामीना
निर्वाणकल्याणकनी तिथि हती, अने बराबर ए ज दिवसे निर्वाणकल्याणकविधि तथा ते बे भगवंतोनी प्रतिष्ठा