: ११८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४७५ :
थई हती, ते श्रेष्ठ मंगळ छे. साथे साथे पवित्र अष्टाह्निका पर्वनी पण शरूआत आजथी ज थती हती.
सवारमां सूर्योदय समये निर्वाण कल्याणकनुं द्रश्य थयुं. तेमां कैलास पर्वत बनाव्यो हतो, तेना उपर
प्रभुश्री आदिनाथ भगवान योगनिरोधदशामां बिराजी रह्या हता. थोडी वारमां प्रभुश्री निर्वाण पाम्या. तरत
ज निर्वाणकल्याणक उजववा देवो आव्या, अग्निकुमारदेवोना मुकुट वडे अग्निसंस्कार थयो. अने छेवटे शेषभस्म
लईने “अहो प्रभो! जे पवित्र दशा आपश्री पाम्या ते पवित्र दशा अमारी हो” एवी भावनापूर्वक भक्तोए
मस्तके चडावी. त्यारबाद निर्वाणपूजन थयुं.
ए रीते, महाप्रभावक श्री जिनेन्द्र पंचकल्याणक महान उत्साहपूर्वक समाप्त थया,
आ प्रसंगे वींछियाना रतिलालभाई डगली अने मगनलालभाई खाराए सजोडे पू. गुरुदेवश्री पासे
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी.
त्यारबाद ८ थी ९।। सुधी मंदिरमां प्रतिष्ठा कराववामां आवनारा श्रीचंद्रप्रभस्वामी वगेरे जिनबिंबोने
घणा मोटा उल्लासपूर्वक जिनमंदिरे लई गया. ज्यारे प्रभु जिन मंदिरे पधार्या ते वखते भक्तजनोनो उल्लास
अने जिनेन्द्र दर्शन माटेनी उत्सुकता अजब हतां.
पछी महामांगळिक वेदीप्रतिष्ठानो समय आव्यो. अने पवित्र जिनमंदिरमां, पवित्र चंद्रप्रभ भगवाननी
पू. गुरुदेवश्रीए महा पवित्र भावे पवित्र करकमळथी प्रतिष्ठा करी. अने मंदिर जयकारनादथी गाजी ऊठयुं.
बोलो श्री चंद्रप्रभ भगवाननो.... जय हो. त्यार बाद श्रीचंद्रप्रभ भगवाननी जमणी तरफ श्रीसीमंधर भगवान
अने डाबी तरफ श्रीशांतिनाथ भगवानना प्रतिमाजीनुं स्थापन कर्युं. त्यार बाद श्री आदिनाथ भगवान अने
एक सिद्ध प्रतिमानुं तथा उपरना भागमां श्रीसुपार्श्वनाथ भगवाननुं स्थापन कर्युं. पछी जिन मंदिर उपरना बे
कळश तथा ध्वजदंड चडाव्या. ए रीते श्री जिनमंदिरमां महा पवित्र देवाधिदेव भगवंतोनी प्रतिष्ठा थई.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिरमां प्रतिष्ठा!
त्यार बाद स्वाध्याय मंदिरमां महा परमागम श्री समयसारजीनी तथा “कारनी प्रतिष्ठा पू.
गुरुदेवश्रीए “नमःसमयसार” ईत्यादि मंत्र बोलीने करी, अने पछी त्यां ‘नमः समयसार’ नुं मांगलिक
प्रवचन कर्युं. पछी भक्तोए थोडीवार स्वाध्याय मंदिरमां अने जिनमंदिरमां भक्तिनी धून लीधी.
महोत्सवना दिवसो दरमियान हंमेशां सवार–सांज जाप जपाता हता. आजे तेनी पूर्णता थई अने
शांतियज्ञ थयो.
बपोरे व्याख्यान पछी पांजरापोळ माटेनो एक खरडो थयो, जेमां लगभग एक हजार रूपिया थया
हता. अने हरिलालभाई धोळकियाए सजोडे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लीधी हती.
रात्रे श्री समयसारनी पूजा थई हती तथा बे बालिकाओए भक्ति करी हती.
ए रीते वींछिया शहेरमां श्री जिनेन्द्रदेवनी पंचकल्याणक प्रतिष्ठानो महान अवसर उजवायो.
सौराष्ट्रदेशमां श्रीजिनेन्द्रशासननी प्रभावनानो आवो महान सुअवसर घणा उत्साहथी पार पाडवा माटे
वींछियाना शेठश्री प्रेमचंद लक्ष्मीचंद अने मुमुक्षुमंडळने खरेखर धन्यवाद छे. प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरी पंडित श्री
नाथुलालजी साहेब उत्साही अने शांत स्वभावी हता, तेओए शास्त्रविधि अनुसार प्रतिष्ठाविधि घणी सारी
रीते कराव्यो हतो, अने पंचकल्याणक वगेरे द्रश्यो वखते पोते ते संबंधी टूंक विवेचन करीने समजावता हता;
कांई पण भेटनो स्वीकार कर्या विना, खास इंदोरथी आवीने तेओश्रीए आ प्रतिष्ठा महोत्सवनो सर्व विधि
घणी सारी रीते करावी आप्यो ते माटे तेमनो घणो आभार मानवामां आवे छे.
परम पूज्य अध्यात्ममूर्ति सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीना पुनित प्रभावे आजे हजारो वर्षे आ
सौराष्ट्रदेशमां फरीथी पवित्र जिनेन्द्रशासननी स्थापना थई रही छे. पू. गुरुदेवश्रीना शुभ हस्ते आवा पवित्र
शासन–प्रभावनाना सेंकडो महान कार्यो थाओ. अने श्रीजिनेन्द्र धर्मचक्र सर्वत्र सर्वदा प्रवर्तो.
[अहीं प्रतिष्ठा महोत्सव वखते थयेला कार्यक्रमनी मात्र टूंकी नोंध करी छे. विस्तारथी तेनुं वर्णन करवामां
आवे तो आत्मधर्ममां ते आवी शके नहि. प्रतिष्ठा महोत्सवनो आनंद तो ते नजरे जोनार ज जाणी शके.]