Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १२० : आत्मधर्म : चैत्र : २४७५ :
वींछीआ
१ श्रीचंद्रप्रभ भगवान २ श्री सीमंधर भगवान
३ श्रीशांतिनाथ भगवान ४ श्रीसुपार्श्वनाथ भगवान
५–६ श्रीआदिनाथ भगवान ७ श्रीसिद्ध भगवान
वढवण शहर
८ श्रीसीमंधर भगवान ९ श्री शांतिनाथ भगवान
१० श्रीमहावीर भगवान ११ श्रीपार्श्वनाथ भगवान
वढवण कम्प
१२ शांतिनाथ भगवान १३ श्रीमहावीर भगवान
राणपुर
१४ श्रीमहावीर भगवान १५ सीमंधर भगवान
१६ श्रीआदिनाथ भगवान १७ श्रीपार्श्वनाथ भगवान
बोटाद
१८ श्रीसीमंधर भगवान १९ श्रीशांतिनाथ भगवान
सावर कुंडला
२० श्रीआदिनाथ भगवान २१ श्रीमहावीर भगवान
२२ श्री महावीर भगवान (श्रीमत राधाबाई मलकापुर)
२३ श्रीवासुपूज्य भगवान अंजड
२४ श्रीमुनिसुव्रत भगवान कानपुर
२५ श्रीमहावीर भगवान (शेठ राजमल्लजी
भेलसा)
२६ श्री सिद्धप्रभुजी सोनगढ
२७ श्रीपार्श्वनाथ भगवान–चांदीना (शेठ भंवरलालजी शेठी
इंदोर
२८–३० श्रीशांतिनाथ भगवान वगेरे;
त्रण प्रतिमा स्फटिकना सर हुकमीचंदजी शेठ: इंदोर
३१ श्री जिनप्रतिमा पन्नाना (सरभागचंदजी सोनी
अजमेर)
३२ श्रीशांतिनाथ भगवान (शेठ. भैयालाल बाबुलाल
पेरडारोड
शेठ गेनामल्ल सुरजमल्ल इंदोर
३३–३५
श्रीसिद्ध भगवानना ३ प्रतिमा
३६ श्रीपार्श्वनाथ भगवान ३७ श्रीवर्द्धमान भगवान
३८ श्रीचंद्रप्रभस्वामी–चांदीना
बावली
३९ श्रीनेमनाथ भगवान (शेठ रहतुमल्ल गोयलीय
कलकत्ता
४० श्रीचंद्रप्रभ भगवान (शेठ. धर्मचंद नेमिचंद सरावता
४१ श्रीमहावीर भगवान
४२ श्रीशांतिनाथ भगवान.
उपर मुजब कुल १६ गामना ४२ प्रतिमाजीओ बिराजमान छे:
[अनुसंधान टाईटल पान २ नुं चालु]
पुण्यथी आत्मस्वरूप ओळखातुं नथी. पुण्य तो
अल्पकाळे क्षीण थईने नष्ट थई जाय छे. स्वानुभव
वडे ज आत्मतत्त्व जणाय छे. करोडोमां विरला जीवो ज
स्वानुभवथी जे आत्माने जाणे छे ते आत्मस्वभाव
आ जगतमां जयवंत वर्तो! –एम कहीने अहीं
मंगळिक कर्युं छे.
आत्मस्वरूप अंतरमां दरेकने छे पण स्वानुभव
वडे करोडोमां विरला जीवो ज तेने जाणे छे. छे तो
अंतरमां, पण बहार भमे छे. एक शिष्यने ज्ञान
जोईतुं हतुं, ने कोई पासे जईने कह्युं–मने ज्ञान आपो.
त्यारे तेणे कह्युं के अमुक सरोवरना माछलां पासे
जईने कहेजे, ते तने बतावशे. त्यारे ते माणस माछलां
पासे जईने कहे–“मारे ज्ञान जोईए छे” त्यारे माछले
कह्युं–“पहेलांं मने तृषा लागी छे माटे पाणी आपो,
पछी ज्ञान बतावुं” त्यारे ते माणसे आश्चर्यथी कह्युं–के
अरे, तुं आ मीठा पाणीना सरोवरमां पड्यो छे, तारी
पासे पाणी भर्युं छे ने मारी पासे केम माग्युं?” त्यारे
माछले कह्युं– ‘हे भाई, तारुं ज्ञान तो तारा अंतरमां
पूरुं छे, तेमांथी ज्ञान काढने, बहारमांथी ज्ञान आवे
तेम नथी. पोतामां ज्ञान भर्युं छे तेने जाणतो नथी, ते
अज्ञानी बहारमां ज्ञान गोते छे. पण अंतर
स्वभावमां ज्ञान भर्युं छे तेने ओळखे तो
सम्यग्ज्ञानरूपी चंद्र प्रगटे ने आत्मानी मुक्ति थाय.
श्रावकने गृहस्थाश्रममां आत्मानुं भान थाय
छे. राज–पाट, बायडी–छोकरां होवा छतां आत्माने
समजी शके छे, ने कल्याण थाय छे. अने आत्माने
समज्या वगर ते बायडी–छोकरां, घरबार छोडीने
जंगलमां रहे तो य तेने कल्याण थतुं नथी.
आत्मस्वभाव महिमावंत छे, ते मोक्ष सुखनो
देनार छे, स्वानुभवथी जणाय छे, पण वाणीना
विस्तारथी कहेवातो नथी, लाखो–करोडोमां तेने
जाणनारा कोईक विरला ज होय छे. एवो आत्मा आ
जगतमां जयवंत वर्ते छे. अने आत्माने जाणनारा
सदाय होय छे. आत्माने जाणनारा विरला ज होय छे,
पण तेनो कदी विरह पड्यो नथी. पूर्वे आत्माने
जाणनारा हता, अत्यारे छे, ने भविष्यमां थशे.
एवा आत्माने जाणे तो मुक्ति प्रगटे, ने
संसारमां जन्म–मरण रहे नहि. माटे एवा आत्माने
जाणवो ते मनुष्यभवनुं कर्तव्य छे.