Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : संपादक : वर्ष छठ्ठुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७५ वकील अंक छठ्ठो
अपूर्व शांति केम थाय?
आ आत्मा अनादि काळथी तेनो ते ज छे. पण
अनादि काळमां कदी पण तेणे पोताना स्वाधीन
स्वभावनी ओळखाण करीने तेनो आश्रय कर्यो नथी अने
परनो ज आश्रय कर्यो छे, तेथी परना आश्रये तेने कदी
शांति मळी नथी. आत्मानुं सुख परमां नथी, तो परनो
आश्रय करवाथी आत्माने सुख क्यांथी थाय? जीवनो
पोतानो स्वभाव ज्ञान–आनंदथी भरपूर छे, तेनो विश्वास
करीने तेनो आश्रय करे तो अपूर्व शांति–सुख थाय. जेम
लाकडुं समुद्रना पाणीमां तरे छे तेम आत्मानी वर्तमान
अवस्था त्रिकाळी चैतन्य–दरियामां पडतां (अर्थात्–
त्रिकाळी चैतन्यनो आश्रय करतां) तरे छे, एटले के मुक्ति
पामे छे.
–भेदविज्ञानसार
छुटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
• अनेकान्त मुद्रणालय: मोटा आंकडिया: काठियावाड •