तो सुख प्रगटे. समयसारनी स्तुतिमां कह्युं के “संसारी जीवनां भावमरणो टाळवा करुणा करी” भावमरण केम
टळे तेनी आ वात छे. आत्मा पोते सुखस्वरूप छे, आत्मामां शांति छे, पण तेनी जेने खबर नथी ते बहारमां
शांति माने छे, पण तेमां शांति नथी. शरीर–पैसा–कुटुंब वगेरे वस्तुओमां सुख नथी, ते तो पर चीज छे, ते
पडी रहे छे ने आत्मा क्यांक चाल्यो जाय छे, माटे तेमां सुख नथी. पण अज्ञानथी तेमां सुख माने छे ने ते
शरीर वगेरेमां पोतापणुं माने छे ते संसार छे, ने तेनुं दुःख छे, ते दुःख केम टळे तेनो उपाय ज्ञानी कहे छे. साचुं
सुख तो ज्ञानमां छे, ते समजे तो शांति थाय. पण पहेलांं तेनी रुचि थवी जोईए. के अरेरे! हुं कोण छुं? मारुं शुं
जीवोना भावमरणो केम टळे ते माटे करुणा करीने ज्ञानीनो उपदेश छे.
ऊगे, ने पछी जेम बीजमांथी पूर्णिमा थाय छे तेम ते सम्यग्ज्ञानमांथी केवळज्ञान थाय छे. तेनी आ वात छे.
आत्मामां सुख प्रगटे छे, ते बहारथी आवतुं नथी पण अंदर भर्युं छे तेमांथी ज आवे छे. एवुं साचुं ज्ञान करवुं
ते आ मनुष्यभवनुं कर्तव्य छे. मनुष्य अवतार पामीने जो आत्मानी ओळखाण न करे तो ते अवतारनी कांई
गणतरी नथी. जेम काचो चणो तूरो लागे ने वावो तो ऊगे पण तेने शेको तो मीठाश आवे ने फरी ऊगे नहि.
तेम आत्मा अज्ञानभावथी दुःखी छे, ने नवां नवां भव धारण करे छे. पण आत्मानी साची ओळखाण करतां
तेने सुख प्रगटे. ने फरीथी भव धारण करे नहि. आ आत्मा आबाळ–गोपाळ बधाय ने ख्यालमां आवे तेवो
छे. मोक्षसुखनो देवावाळो आत्मा छे. एवा आत्माने जाणी शके, पण मोटा विद्वानो पण वाणीथी तेनुं वर्णन
ते पूरुं कहेवातुं नथी, तेम आत्मानुं स्वरूप ज्ञानमां जणाय छे पण वाणीमां कही शकातुं नथी. आत्माने
जाणनारा ज्ञानी पण तेने वाणीथी कहेवा समर्थ नथी, तो पछी अज्ञानी तो तेने क्यांथी कही शके?
अनुभवी शकाय छे, पण वाणीथी कहेवातो नथी. श्री मद्राजचंद्र कहे छे के–
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे?
अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो.”
अनुभवथी ज पूरो पडे छे. घीनुं वर्णन लखीने गमे तेटला चोपडा भरे के गमे तेटलुं कथन करे, पण तेनाथी
सामा जीवमां घीनो स्वाद आपी शके नहि, तेम चैतन्यनुं गमे तेटलुं कथन करवामां आवे पण अनुभव विना
महिमावाळो भगवान छे, वाणी जड अचेतन छे, तेना वडे आत्मा जणातो नथी. तो तेने जाणवानो उपाय शुं?
ते कहे छे. लाखो–करोडो प्राणीमां कोई विरला प्राणीओ अंतरमां अनुभव वडे तेने जाणे छे.