Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७५ : आत्मधर्म : १०९ :

माह सुद १० मंगळवार
[सवारे दस वागे मांगळिक]
आ आत्मा पोते मांगळिक छे. आत्मानी ओळखाण करवी ते ज मंगळ छे. आत्मा पोतामां सुख छे ते
भूलीने शरीर–मन–वाणी–लक्ष्मी वगेरेमां सुख माने छे अने तेने पोतानां माने छे ते अमंगळ छे. पुत्रने जन्म
थाय, लग्न थाय, के घरनुं वास्त ल्ये–एने लोको मंगळ कहे छे पण ते तो बधा नाशवान छे, ते कोई मांगळिक नथी.
आत्मानो अविनाशी स्वभाव छे ते ज मांगळिक छे. अरिहंत मंगळ, सिद्ध मंगळ, साधु मंगळ अने धर्ममंगळ–ए
चार मंगळ छे ते चारे य, आत्मानी ज निर्मळ दशाओ छे. आत्मा पोते ज्ञानप्रभु छे पण एने पोताना महिमानी
खबर नथी तेथी क्षणिक पुण्य–पापना विकारने पोतानो माने छे, ते अमंगळ छे, आत्मा ज्ञानानंदभगवान छे तेना
भानद्वारा ते अमंगळ टळे छे. मंगल शब्दमां मम अने गल एवा बे पद छे. ‘मम’ एटले पर वस्तुनुं हुं करी शकुं
एवुं अभिमान, तेने आत्मभान वडे जे गाळे नष्ट करे–ते भाव मंगळ छे. आत्माना जे पवित्र भाव वडे पापनो
नाश थाय ते मांगळिक छे. अथवा मंग एटले पवित्रता, तेने जे पमाडे ते मांगळिक छे. आत्माना जे भाव वडे
आत्माने पवित्रतानो लाभ थाय ते मंगळ छे. पवित्रतानो लाभ, अने अभिमाननो नाश–ए बंने जुदा नथी.
पवित्रतानो लाभ ते अस्तिथी कथन छे अने अभिमाननो नाश ते नास्तिथी छे. एक मंगळभावमां बंने आवी
जाय छे. आत्मानी ओळखाण करीने अंतरमां आत्मानो धर्म प्रगट करे तेने भगवान मांगळिक कहे छे. आ
मांगळिक अविनाशी छे. देहादिथी भिन्न, ज्ञान स्वरूपी आत्मानी सत्समागमे ओळखाण, श्रद्धा अने स्थिरता प्रगट
करवी ते अस्तिथी मंगळ छे. ज्ञानस्वरूपी आत्मा मंगळ छे, तेना भान वडे अज्ञान टळे छे. अज्ञान ए ज पाप छे,
तेनो नाश ज्ञानथी थाय छे. अज्ञाननो नाश ते नास्तिथी मंगळ छे.
अरिहंत अने सिद्ध मांगळिक छे, ते आत्मानी ज अवस्थाओ छे. अंतरमां परिपूर्ण ज्ञान स्वभाव छे
तेमांथी सर्वज्ञदशा प्रगट करवी तेने भगवान मांगळिक कहे छे. घरनुं वास्तु, विवाह वगेरे कार्योमां मंगळ नथी,
त्यां तो पाप भाव छे ते अमंगळ छे. आत्मा पोते अनंतगुणनो पिंड छे. आत्मामां अनंतगुणोनुं वास्तु छे.
आत्मानुं वास्तु एटले आत्मानुं रहेठाण. आत्मा शरीरमां के मकानमां रहेतो नथी पण पोताना ज्ञानादि
अनंतगुणोमां रहे छे अनंतगुणो ते आत्मानुं वास्तु छे. आत्मानुं रहेठाण शोधीने तेमां वसवुं ते मांगळिक छे.
वस्तुनी ओळखाण करीने तेमां वसे तेने वास्तु कहे छे. आत्माना भानथी सिद्धदशा प्रगट करी तेमां आत्मा
सादि अनंतकाळ रहे छे, ते ज आत्मानुं वास्तु छे. ए सिवाय बीजुं घर आत्माने नथी.
श्री वीतराग सर्वज्ञदेवे जेवो जोयो अने कह्यो तेवा आत्माने जाणवो ते ज प्रथम मंगळ छे, ते ज धर्म छे.
जुओ भाई! आ वात अंतरना अध्यात्मनी छे, बहारनी आ वात नथी. माटे अंतरमां आत्मानी दरकार करीने
आ समजवुं जोईए. आ समज्या वगर जीव–अनंतकाळथी रखडयो छे. हवे साची समजण करवी ते मांगळिक
छे. शरीर अने विकारथी भिन्न चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मानुं भान थया पछी अंदरमां ठरीने पूर्ण ज्ञान
प्रगट्युं ते अरिहंत अने सिद्ध छे, अने अंदरमां ठरतां ठरतां जेने कंईक कचास रही गई छे ते साधु छे, ने जे
पवित्र दशा प्रगटी छे ते धर्म छे, ए अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म–ए चार मांगळिक छे. आ चारे मांगळिक छे
ते आत्मानी पवित्र दशा छे. ज्यां सुधी आत्मतत्त्वने ओळखे नहि त्यां सुधी जे कांई करे ते बधा साधन खोटा
छे. अनंतकाळे नहि करेल एवुं आत्मभान करवुं ते ज मंगळ छे.
अम घेर प्रभुजी पधार्या
फागण वद ३ ना दिवसे सावरकुंडलामां श्री आदिनाथ भगवान अने
श्री महावीर भगवानना प्रतिमाजी (जेनी प्रतिष्ठा वींछियामा थई हती
ते) पधार्या छे, प्रभुजी पधार्या ते प्रसंगे त्यांना शेठश्री जगजीवन बाउचंद
दोशी वगेरेए घणा ज उत्साहपूर्वक प्रभुजीना सन्माननो उत्सव ऊजव्यो
हतो. प्रभुजीना भव्य स्वागतमां गामना सेंकडो लोकोए भाग लीधो हतो.