कागडा कूतरां य जीवन गाळे छे, मनुष्य थईने पण धर्म न समजे अने भोगमां जीवन गाळे तो तेनी कांई
किंमत नथी. आ शरीरनी तो राख थवानी छे, आत्मा तेनाथी जुदो छे. एवा आत्माने भूलीने जीव रखडे छे,
ने तेने ओळखे तो पोते मुक्ति पामे छे. पण कोई परमात्मानी अकृपाथी रखडता नथी ने परमात्मानी कृपाथी
तरतो नथी.
चैतन्यरूप हंसलो छे, ने तेने पैसा–मकान वगेरे बहारनी चीजो छे ते पूर्वनां प्रारब्धनुं फळ छे, तेनी प्रीति
छोडीने पोतानो आत्मा समजवानी प्रीति करे तो निर्मळ परिणति प्रगटे ते आत्मानी हंसली छे.
तेनी प्रीति कर. धर्मी जीवने आत्मानी प्रीति अने ध्यान करतां करतां अणिमा–महिमा वगेरे रिद्धि प्रगटे छे, पण
तेओ तेनी प्रीति छोडीने आत्मानी प्रीति करे छे. शरीरनुं रूप मेरु जेवडुं करी नांखे ने कंथवा जेवडुं पण करी
शके, एक लाडवामां करोडो माणसोने जमाडे, शरीरनुं वजन करोडो मण करी शके, उपरथी देवने उतारवो होय
जीव तेनी प्रीति करता नथी पण आत्मानी प्रीति करे छे.
चिंतामणि रतन फेंकी दीधुं, त्यां तरत ज मकान पलंग वगेरे बधुं वींखाई गयुं, ने हतो तेवो थई गयो. तेम आ
मनुष्यदेह अनंतकाळे जीवने मळ्यो छे. आ मनुष्यदेह चिंतामणि जेवो छे. तेने रळवामां ने भोगमां गाळे छे,
पण बे घडी आत्मानी समजण करतो नथी. बीजे बधे ठेकाणे डहापण बतावे छे पण आत्मानी समजण तो
करतो नथी, अनंतकाळे मनुष्यदेह मळ्यो ने धर्मनी परीक्षा पण करतो नथी. थोडो वखत रह्यो, भाई! हवे तुं
आत्मानी समजण कर. निवृत्ति ले; प्रवृत्ति घटाड. अहो मारी मुक्ति केम थाय? मारे जन्म–मरण जोईतां नथी–
छे पण आत्माने न ओळख्यो.
पण आत्मा परख्यो नहि
त्यां रह्यो दिग्मूढ.”
करे ने विषय–भोग, क्रोध, कपट, लंपटपणुं वगेरे महा अधर्म करे तेओ मनुष्यपणुं हारीने ढोर ने नरकमां रखडे
छे, कांईक दया, दाननां शुभ कार्य करे तो देव के माणस थाय छे. पुण्य–पापना भाव तो जीवे अनंतकाळथी कर्या
छे, ते कांई नवुं नथी.