Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 17

background image
: ११२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४७५ :
बपोरे ३ थी ४ माह सुद १प रवि
जेम कंदोईनी दुकाने अफीण न मळे पण मीठाई मळे, तेम अहीं आत्मानी वात छे, आत्मानी दुकाने
आत्मानी वात मळे, पण पुण्य–पापनी वात न मळे. आत्मा शुद्ध चिदानंद ज्ञानानंद स्वरूप छे. आ मनुष्यदेह
अनंतकाळे मळे छे, तेमां जो शरीरथी भिन्न आत्मानी समजण करे तो ते सफळ छे. जो आत्मानी समजण न
करे ने एम ने एम जीवन गाळे तो कागडा–कूतरांना जीवनमां अने तेना जीवनमां कांई फेर नथी.
जेम हंस एने कहेवाय के जेनी चांचमां दूध अने पाणीने जुदा पाडवानी ताकात होय. दूध अने पाणीने
जुदा पाडवानी ताकात न होय तो तेने हंस न कहेवाय पण कागडो कहेवाय. तेम आ मनुष्यभव पामीने जे जीव
शरीरथी जुदा आत्माने जाणे छे ते हंस छे, पण शरीरथी भिन्न आत्माने जे नथी जाणतो ते अज्ञानी छे, तेनुं
जीवन व्यर्थ छे.
आत्मा छे, ते पूर्वे हतो ने भविष्यमां रहेशे. आत्मा छे, छे ने छे. आ शरीर वगेरे तो नाशवान छे,
आत्मा तो अनादि छे, ते क्यारे य नवो थयो नथी, ने नाश पामतो नथी. आत्मा ज्ञानानंद–चिदानंद स्वरूप छे.
दया के हिंसानी जे शुभाशुभ लागणीओ थाय छे ते विकार छे. अने शरीर, पैसा तो पर छे–जुदा छे. बहारमां
वस्तुओ मळे ते पूर्वनुं प्रारब्ध छे, पण तेमां राग–द्वेष करवा ते प्रारब्धनुं फळ नथी, ते तो पोते वर्तमान ऊंधा
पुरुषार्थथी करे छे. राग–द्वेष जो प्रारब्धनुं कार्य होय तो तेने टाळवानुं आत्माना हाथमां रहे नहि. आत्मा परथी
तो जुदो छे ने राग–द्वेष तेनुं स्वरूप नथी, एवा आत्मानुं भान करे तेने जन्म–मरण रहे नहि.
जुओ भाई, आ आत्मानी समजणनी वात छे. आ देह कायम नहि टके. नजीकमां नजीकनुं शरीर पण
पोतानी मरजी प्रमाणे चालतुं नथी. रोग थाय तेवी ईच्छा न होय छतां रोग तो थाय छे, माटे ईच्छानुं कर्तव्य
बहारमां आवतुं नथी, दीकरो मरतो होय तेने बचाववानी ईच्छा होय पण बचतो नथी. दीकरा उपर प्रेम होवा
छतां त्यां ईच्छा काम करती नथी. माटे आत्मा ते दीकराथी अने ईच्छाथी जुदो छे, ते जाणनार छे. एवा
आत्माने ओळखवो ते धर्म छे.
जे क्षणिक शुभाशुभ विकार थाय छे ते प्रारब्ध करावतुं नथी पण पोते करे छे. ने आत्मभानथी पोते ज
तेने टाळे छे. आत्माभान करवुं ते ज गुण छे. निर्धनता ते अवगुण नथी, ने धनवानपणुं ते कांई गुण नथी.
शरीर काळुं होय ते अवगुण नथी ते रूपाळुं होय ते कांई गुण नथी, –ए रीते बहारनी बधी वस्तुओथी
आत्मा जुदो छे, तेनी साथे आत्माने संबंध नथी. ते तो बधुं पूर्व प्रारब्धनुं फळ छे. आ देहमां बधा आत्मा
परमात्मस्वरूप छे; क्षणिक राग–द्वेष थाय ते तेनुं स्वरूप नथी–आवो जे विवेक करे तेणे मानवजीवनने सफळ कर्युं
छे. पर चीज तो एनी नथी, तो तेना वडे आत्मानी किंमत केम अंकाय? हुं निर्धन, ने हुं सधन–एवी कल्पना
करवी ते अवगुण छे, बहारना संयोगथी आत्मानी मोटप के हीणप नथी.
तप, ब्रह्मचर्य वगेरेथी अणिमा–महिमा वगेरे सिद्धिओ प्रगटे तेनो महिमा धर्मीने नथी. जेम मार्गे जतां
वच्चे बीजी वस्तुओ आवे त्यां प्रेम करीने अटके तो धारेला स्थाने पहोंची शके नहि, तेम वचमां रिद्धि–सिद्धि
आवे तेनो प्रेम करवा अटके तो मोक्षस्थाने पहोंची शके नहि.
आ मनुष्यदेह मोंघो छे. एक आंख फूटे पछी करोडो रूपिया आप्ये पण तेवी आंख फरी मळे नहि, कान
कपायो होय तो तेवो कान फरीथी लाखो रूपिया आपतां पण न मळे. एवो आ मनुष्यदेह आत्मानुं भान करे
तो सफळ छे. मनुष्यदेहमां आत्मानुं भान करवा माटे तेने मोंघो कह्यो छे.
जेम काचो चण्यो ऊगे ने तूरो लागे, तेम अज्ञानथी जीव पोताना आनंदने भूलीने विकारनो स्वाद ले
• जोईए छे. •
वींछियामां जिनमंदिर माटे पूजारी तरीकेनुं कामकाज करी शके एवा उत्साही जैन युवाननी जरूर छे,
पगार लायकात मुजब. जेने रहेवानी मरजी होय तेमणे नीचेना सरनामे लखवुं.
शांतिलाल पोपटलाल शाह
ठे. शेठ नानालाल काळीदास जसाणी राजकोट सदर