Atmadharma magazine - Ank 066
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७५ : आत्मधर्म : ११३ :
छे ने नवा नवा जन्ममां ऊपजे छे. जेम चण्यो सेकतां ते ऊगे नहि ने स्वाद मीठो लागे. तेम सत्समागमे साचुं
ज्ञान करे तो फरीथी जन्म–मरणमां अवतरे नहि, ने तेने आत्मानो आनंद प्रगटे. आवुं समज्या वगरनुं
मनुष्यपणुं रणमां पोक मूकवा समान छे. देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्वने ओळखे ने पूर्वनां प्रारब्धनां फळनी प्रीति
छोडे ते धर्मी छे. बहारमां प्रारब्धनो संयोग होय पण धर्मी तेनो ज्ञाता द्रष्टा रहे छे, तेने पोतानुं मानता नथी.
अने क्षणिक शुभभाव थाय ते पण आत्मानुं स्वरूप नथी. पुण्यभाव थाय तेमां ज ईतिश्री मानीने
संतोष करी ल्ये तो तेनाथी पार आत्मानो भरोसो नथी. अंदरनी पूरी शक्ति छे तेनो जेने विश्वास नथी ते
भगवान पासे मुक्ति मागे छे. पण भगवान परमेश्वर तो कोईनी मुक्ति करता नथी, ने कोईने रखडावता पण
नथी.
जेम पाणी ऊनुं थयुं होय तोपण तेनामां अग्निनो नाश करवानी ताकात छे, तेम आत्मामां क्षणिक
हालतमां जे राग–द्वेष–क्रोध–मान थाय छे तेनो नाश करवानी आत्माना स्वभावमां ताकात छे, भगवान जेटली
आत्मानी ताकात छे, पण तेनो भरोसो करतो नथी तेथी रखडे छे. पोतानी प्रभुताने ओळखे नहि ने परवस्तु
वगर मारे चाले नहि एम माने छे. एक वस्तु वगर पण मारे चाले नहि–एम माने छे, तो–ज्ञानी कहे छे के तुं
बधी वस्तुथी जुदो छे–ए वात केम बेसशे? पोतानी शक्तिनो भरोसो नथी तेथी परनो ओशियाळो थईने
रखडे छे. माटे हे जीव! मोह रहित निर्मोह आत्मा छे तेनी प्रीति करीने ओळखाण कर, तो तुं जन्म–मरण रहित
थई जईश. अनंतकाळमां घणीवार मनुष्यदेह मळ्‌यो छे पण अंदरमां आत्मानी समजण एके य वार करी नथी.
अंतरने भूलीने बहारमां गोते छे. दोष क्षणिक छे ने दोषरहित आत्मा त्रिकाळ छे, ए बे वच्चे विवेक करवो ते
ज धर्म छे, ने एवो विवेक करे तेने ज मुक्ति थाय छे.
भूल पोते करे छे. पोते भूल करे छे छतां अज्ञानी भगवान उपर ढोळे छे के भगवाननी मरजी! पण
भाई, शुं भगवान भूल करावे छे? पोते पोताना दोषथी भूल करी छे. जेणे पोताना अंतरमां मुक्ति उपर द्रष्टि
लगावी छे ए सिवाय बीजुं कांई जोईतुं नथी–एवा आत्मा ज आ जगतमां प्रशंसवा योग्य छे. आत्माना
भान विना बायडी घरबरा छोडीने त्यागी थाय तेथी कांई धर्मी नथी, केम के हजी शरीरथी भिन्न चैतन्य तत्त्वने
जाण्युं नथी, ने शरीरने पोतानुं मानीने अभिमान करे छे, तेनी बधी क्रियाओ राख उपर लींपण जेवी छे. –तेने
धर्म थतो नथी.
भाई, शुभाशुभ भाव होय छे. पण तेने सर्वस्व न मान, तेनाथी मुक्ति थई जशे–एम न मान.
बहारमां पैसा होय के पुण्य होय तेनी धर्मात्मा पासे कांई किंमत नथी. नूरजहां अने जहांगीरनी वात आवे छे.
नूरजहांनुं रूप जगतमां प्रख्यात हतुं. एक फकीर जोवा आव्यो. जोईने माथु धूणाव्युं अने कह्युं–जगत कहे छे तेवुं
सुंदररूप नथी. त्यारे जहांगीरे कह्युं– ‘सांई बावा! आपकी द्रष्टि से नहि, हमारी द्रष्टि से देखो! ’ जुओ, जेने
स्त्रीनो मोह छे तेने शरीरना रूपनी प्रीति छे. पण शरीर तो चामडुं छे, अंदर हाडकां ने लोही मांस सिवाय
बीजुं कांई नथी. एम ज्ञानी पासे आत्माना स्वभाव सिवाय पुण्यनी के पैसानी कांई किंमत नथी. अज्ञानीने
तेनी ऊंधी द्रष्टिमां पैसा अने पुण्य मीठां लागे छे. एकवार एक सेकंड पण आत्मानुं भान करे तो मुक्ति थया
वगर रहे नहि. एकवार मुक्ति थाय तेने फरीथी अवतार थाय नहि. अवतार होय ते तेनो नाश करीने मुक्त
थई जाय, तेने पछी अवतार होतो नथी. जेम घीनुं फरीथी माखण थतुं नथी तेम मुक्तजीवने फरीथी अवतार
थतो नथी. शिकार, परस्त्री सेवन, दारू–मांसनो खोराक वगेरे मोटा पाप करतो होय ने बंगलामां रहेतो होय,
तेने अत्यारे पुण्यनां फळ देखाय छे, पण पापनां फळथी तो ते नरकमां जाय छे, ने त्यां महा आकरां दुःख
भोगवे छे.
आत्मा चैतन्य छे. बहारमां शरीर–पैसानी अनुकूळतामां सुख माने अने पोताने बादशाह जेवो माने.
पण भाई रे, तारी जात तो तें जाणी नथी, अने जड वस्तुथी तारी बादशाही मानीश तो तुं रांको थई जईश.
बादशाही तो तारा चैतन्यमां भरी छे, तेने ओळखे तो मुक्ति थया विना रहे नहि.