Atmadharma magazine - Ank 067
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४२५ : आत्मधर्म : १३७ :
नवा शरीरमां ऊपजे तेने लोको जन्म कहे छे, पण त्यां कांई आत्मा नवो थयो नथी, ने परमाणु पण नवा थया
नथी. तेम ज ज्यां शरीर अने आत्मानो संयोग छूटो पड्यो त्यां “मरण थयुं” एम लोको कहे छे. पण खरेखर
आत्मानो नाश थयो नथी, ने परमाणुओनो पण नाश थतो नथी.
कोई पासे घणा पैसा होय छे, कोई पासे थोडा होय, कसाईने त्यां करोडो रूपिया होय ने दया पाळनार
पासे थोडीक मूडी पण न होय–एनुं कारण शुं? एनुं कारण पूर्वनुं शुभाशुभ प्रारब्ध छे, तेने लीधे बहारनो
संयोग थाय छे. पण ते प्रारब्ध जड छे. ते प्रारब्ध आत्माना शुभ के अशुभ भावथी बंधाय छे, जे भाव वडे
प्रारब्ध बंधाय ते धर्म नथी. अने ते प्रारब्धना फळमां बहारनो संयोग मळे तेमां पण धर्म नथी. आत्माना जे
शुभ के अशुभ भावथी प्रारब्ध बंधाय ने संयोग मळे ते भाव धर्म नथी. पण असंयोगी आत्मस्वभावनी
श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां चरवुं ते धर्म छे.
अनंतकाळथी आत्माने पोताना स्वभावनुं माहात्म्य आव्युं नथी. जे केवळज्ञान ने परमात्मदशा थाय छे
ते आत्मामांथी ज आवे छे. आत्मामां एवुं सामर्थ्य सदाय पड्युं छे, तेने कदी जीवे भरोसो कर्यो नथी.
चिंतामणी पथरानी प्रतीत करे. पण पोते ज एवो चैतन्य चिंतामणी छे के जेवी दशा चिंतवे तेवी दशा
प्रगटे. जेना चिंतवनथी केवळज्ञान प्रगटे–एवो पोते छे; तेनी प्रतीत अने महिमा करतो नथी. अंतरमां जो
भवभ्रमणनो भय लागे के अरेरे! अनंतकाळथी रखडुं छुं हवे आनो क्यांय आरो छे? एम अंतरथी धगश
जागे तो सत्समागमे आत्माने समजे.
लोको शरीरने नीरोग राखवा मागे छे, पण आत्मामां अनादिथी रोग छे ते टाळवानो उपाय करतो
नथी. कह्युं छे के––
‘आत्मभ्रांति सम रोग नहि, सद्गुरु वैद्य सुजाण.’
पोते पोताना आत्माने ओळखीने प्रतीत करे तो ते रोग टळे. एवा चैतन्यनी श्रद्धा–ज्ञान अने अंतर
एकाग्रता करे तो धर्म अने मुक्ति थाय.
रुचि करे तो स्वभावनी समजण सहेली छे
कोई लोको कहे छे के–आमां तो अमने कांई खबर पडती नथी, कांईक बहारनी वात करो तो खबर पडे?
तेनो उत्तर–बहारना पदार्थोमां तो आत्मा छे ज नहि, बहारना पदार्थोथी तो आत्माजुदो छे, तेथी आत्माना
धर्ममां बहारनी वात केम आवे? बहारनुं कांई आत्मा करी शकतो नथी. वळी, बहारनी रुचि होवाथी बहारनुं
ज देखाय छे, तेम जो अंतर स्वभावनी रुचि करे तो आ पण बराबर समजाय तेवुं छे. पर वस्तुओ–शरीरनी
क्रिया वगेरे देखाय छे तेने कोण जाणे छे? शरीर–वाणी वगेरे अजीव पदार्थो छे तेने कांई खबर पडती नथी,
पोते ज तेनो जाणनार छे. वळी ‘मने आमां कांई खबर पडती नथी’ ––एम क्यांथी नक्की कर्युं? पोते पोताना
ज्ञानने जाण्या वगर ते नक्की न थाय. पोते पोताना ज्ञानने जाणे छे छतां विश्वास करतो नथी. पोताना ज्ञाननो
तेमज परनो निर्णय करनार पोतानुं ज्ञानसामर्थ्य छे. पोताना ज्ञान सामर्थ्यनो अविश्वास ते ज अधर्म छे.
परनी खबर पण आत्माने ज पडे छे ने पोतानी खबर पण आत्माने ज पडे छे.
अज्ञानी मूढ जीवोने आत्मानी रुचि नथी अने विषयनी रुचि छे तेथी तेने आत्मानी समजण मोंघी–
दुःखदायक– लागे छे ने विकार तथा परनुं करवानी वात सहेली लागे छे ने तेमां तेने सुख भासे छे. पुण्य करवां
ने तेनां फळ भोगववा, विषयो भोगववा, परनो अहंकार करवो–ए बधुं अज्ञानीने सहेलुं लागे छे ने रुचे छे;
तेथी तेवी वात तेने झट समजाय छे, केमके ए तो अनादि संसारथी करी ज रह्यो छे. पण ए बधाथी जुदी आ
आत्मस्वभावनी अपूर्व समजण छे, ते पोताना स्वभावनी वात तेने रुचती नथी. स्वभावनी समजण ज
खरेखर सहेली अने सुखदायक छे.
[समयसार गा. ३९० थी ४०४ उपरना व्याख्यानोमांथी]