: १३६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४२५ :
[अनुसंधान पान १र४ थी चालु]
परमात्मा ते अरिहंत ने सिद्ध छे; ‘नमो अरिहंताणां ने नमो सिद्धाणं’ –एमां तेमने नमस्कार कर्या छे. ते
नमस्कार करनारे एटलुं जाणवुं जोईए के मारे अरिहंत ने सिद्ध परमात्मा जेवो आत्मा जोईए छे, भगवाने जे
राग–देष टाळ्या ते मारे जोता नथी, ते मारुं स्वरूप नथी.
आ वात हवे समजवा जेवी छे. जे काळ गयो ते तो गयो, पण हवे आ समजवा जेवुं छे. एक सेकंड पण
आ वात समजे तेने जन्म–मरण टळीने मोक्ष थया विना रहे नहि. सुख क्यां छे ने तेनो उपाय शुं छे? तेना
ज्ञान वगर अनादिथी जीव रखडी रह्यो छे.
जीव अनंतकाळथी बहारमां सुख मानीने भमे छे, पण पोतामां सुख छे तेनो भरोसो आवतो नथी.
जेम हरणियाने पोतानी डूंटीमां ज कस्तुरी छे तेनो विश्वास आवतो नथी तेम आत्मामां ज सुख छे पण
अज्ञानीने तेनो भरोसो बेसतो नथी. ए भरोसा वगरना क्रियाकांड ते बधा रणमां पोक छे. सर्वज्ञ भगवाने
धर्मनी रीत अंतरमां कीधी छे. हे भाई! तारामां सुख छे. तुं अज्ञान काढी नांख तो तारामांथी ज ज्ञान ने शांति
प्रगटे छे. नवुं ज्ञान थाय छे, पहेलांं ओछुं ज्ञान होय ने पछी भणे त्यां वधे छे, तो ते वधारानुं ज्ञान क्यांथी
आव्युं? शुं पुस्तकमांथी आव्युं? गुरुमांथी आव्युं? ते क्यांयथी आव्युं नथी पण आत्मा पोते ज्ञानथी भरेलो छे
तेमांथी ज आव्युं छे.
जेम साकरनो गांगडो बधे ठेकाणे गळपणथी ज भरेलो छे. तेमां क्यांय खाराश नथी, तेम आत्मामां
ज्ञान भर्युं छे. तेनो विश्वास करे तो कायमी सुख प्रगटे. पण अज्ञानी जीव बहारना पदार्थोमांथी सुख मानीने
तेनो संयोग मेळववा मांगे छे, पण ते संयोग तो कायम रहेतो नथी. क्षणिक पुण्यभावथी परनो संयोग मळे छे,
ते पुण्यमां ज सुख ने शांति मानी ल्ये तो ते अज्ञान छे.
जेम सोनानो एक घाट न गमे ने बीजो करवानो विचार करे. त्यां नवो घाट सोनामांथी थयो छे,
सोनीमांथी के हथोडीमांथी ते घाट आव्यो नथी. सोनामां ज नवो घाट थवानी ताकात छे. तेम आत्मामां अज्ञान
अने दुःखरूप जे घाट अवस्था छे ते टाळीने सम्यग्ज्ञान अने सुखरूप घाट करवो छे, ते घाट थवानी ताकात
आत्मामां ज भरी छे. जो तेनो विश्वास करे तो अज्ञाननो घाट टळीने ज्ञाननो घाट प्रगटे छे. आत्मामांथी ज ते
घाट प्रगटे छे. शरीरनी क्रियाथी के रागथी ते घाट प्रगटतो नथी. आत्मा अनादि अनंत ज्ञान अने आनंदनुं
सनातन धाम छे, तेनो विश्वास करे तो धर्म थाय छे.
जेम बंने घाटमां सोनुं तो ते ज छे, तेम अज्ञान दशामां अने ते टळीने ज्ञानदशा थई तेमां पण आत्मा
तो तेनो ते ज छे, ने परमात्मा थाय तेमां पण ते ज आत्मा छे. मुक्ति क्यांय मुक्तिशीला उपर नथी पण
आत्मामां ज मुक्ति थाय छे. आत्मानुं भान करीने राग द्वेष टाळीने पूर्ण ज्ञान प्रगट करीने परमात्मा थयानुं
नाम ज मुक्ति छे.
चैतन्यने जे विकारनो आविर्भाव थाय छे ते पोते नवो नवो ऊभो करे छे; तेनो त्रिकाळस्वभाव राग–
द्वेषवाळो नथी पण क्षणपूरती हालतमां राग–द्वेष थवानी योग्यता छे: स्वभावनी श्रद्धा करे तो रागने टाळी शके
छे. ते माटे सत्समागमे अभ्यास करवो जोईए.
धर्म शुं चीज छे? ते शोधवानो प्रयत्न करवो जोईए. धर्म शुं छे ते शोधवानो प्रयत्न न करी शक्या ते
जीवो बहारनी क्रियाओमां ज्यां त्यां धर्म मानी बेठा छे. कोई पुण्यमां धर्म मानी बेठा छे, पण पुण्यना फळमां
राजा थाय, ने पाछो पाप करीने नरके जाय. संयोगमां सुख नथी. पुण्यथी संयोग मळे, पण सुख न मळे.
एक क्षण पण चैतन्यनी समजणनो प्रयत्न करे तो अनादिनुं अज्ञान टळी जाय. जेम लाख मणनी गंजी
बाळवा माटे लाख मण अग्निनी जरूर न पडे, पण एक ज चिनगारी तेने बाळी नाखे, तेम आत्मानी
ओळखाणनो प्रयत्न करतां क्षणमात्रमां अनादिनुं अज्ञान टळी जाय छे. अत्यारे धर्म करे अने पछी फळ मळशे–
एम नथी, जे क्षणे धर्म करे ते क्षणे आत्मामां शांति थाय छे. जेम लाडवो खाय त्यारे ज ते मीठो लागे छे, तेम
धर्म ज्यारे करे त्यारे ज तेना फळमां आत्मामां शांति थाय छे. धर्म रोकडियो छे. धर्मनुं फळ पछी न मळे पण
त्यारे ने त्यारे ज मळे छे.
आत्मा अनादि चिदानंद ज्ञान स्वरूप छे, ते कदी मरतो नथी ने जन्मतो नथी. जेम चंद्र–सूर्य मरता नथी
तेम आत्मा पण मरतो नथी. आत्मा सदाय छे.