ते जीव कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनथी तो पाछो खसी गयो,
सुदेवगुरुना आश्रयनी रुचि पण तेने टळी गई, पोतानी अधूरी
दशानो आश्रय पण छूटी गयो, ने ज्ञानमां पोताना पूरा
स्वभावनी रुचि थई; एवुं ज्ञान ज सम्यक्त्व छे, एवुं ज्ञान करवुं
ते ज धर्मनी क्रिया छे. पुण्यनी क्रियाथी के जडनी क्रियाथी धर्म थतो
नथी, केम के ते क्रियामां आत्मा नथी, ज्ञाननी क्रियामां ज आत्मा
छे. ने ज्ञाननी क्रियाथी ज धर्म थाय छे.