Atmadharma magazine - Ank 068
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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जे ठ : संपादक : वर्ष छठ्ठुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२ ४ ७ ५ वकील अंक आठमो
कई क्रियामां आत्मा छे?
वर्तमान दशामां अधूरुं ज्ञान अने पुण्य–पाप होवा छतां जे
जीवे पोताना ज्ञानमां अंतरंग परिपूर्ण ज्ञानस्वभावनी रुचि करी
ते जीव कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनथी तो पाछो खसी गयो,
सुदेवगुरुना आश्रयनी रुचि पण तेने टळी गई, पोतानी अधूरी
दशानो आश्रय पण छूटी गयो, ने ज्ञानमां पोताना पूरा
स्वभावनी रुचि थई; एवुं ज्ञान ज सम्यक्त्व छे, एवुं ज्ञान करवुं
ते ज धर्मनी क्रिया छे. पुण्यनी क्रियाथी के जडनी क्रियाथी धर्म थतो
नथी, केम के ते क्रियामां आत्मा नथी, ज्ञाननी क्रियामां ज आत्मा
छे. ने ज्ञाननी क्रियाथी ज धर्म थाय छे.
–भेदविज्ञानसार
छुटक अंक वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
• अनेकान्त मुद्रणालय: मोटा आंकडिया: काठियावाड •