Atmadharma magazine - Ank 068
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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मह वद प गरुवर
१७ – २ – ४९
आत्मानुं चैतन्यरूपी तेज सर्व पदार्थोने प्रकाशित करनारुं छे ने स्वयं प्रकाशरूप छे. आवा आत्माने
ओळखवो ते ज मनुष्य जीवनमां करवा जेवुं छे.
जीव अनंत काळथी संसारमां रखडे छे. कीडी मंकोडो थयो त्यारे गोळ वगेरे मळ्‌या तेने जाणवामां ज
ज्ञान अटकी गयुं, ढोर थयो तो घास–पाणी ने छायाने जाणवामां त्यां राग करीने रोकाणो, मनुष्य थयो तो पैसा
वगेरे जे जे संयोग मळ्‌या ते संयोगने जाणवामां ज ज्ञानने रोकी दीधु. आत्मानो स्वभाव तो बधायने
जाणवानो छे तेने बदले थोडा थोडामां अटकीने जाणे ते तेनुं स्वरूप नथी. खावा–पीवामां, नावा–धोवामां क्यांय
सुख नथी. सूवामां य सुख नथी.
जंगलमां रहेला दिगंबर संतमुनिए आ शास्त्र रच्युं छे. आ शास्त्रनुं नाम पद्यनंदी पंचविंशति छे, श्रीमद्राजचंद्र
आ शास्त्रने ‘वनशास्त्र’ कहे छे. तेमां आचार्यमहाराज कहे छे के आत्मानो स्वभाव बधायने जाणवानो छे.
जीवने घडीमां भगवाननी भक्तिनो शुभराग अने घडीमां स्त्री आदि प्रत्येनो अशुभराग थाय छे, ते
बंने भावो नवा नवा छे अने क्षणिक छे, ते वगरनो कायम टकनार ज्ञानस्वभाव छे तेनी ओळखाण तो करो;
तेनो निर्णय करो, पछी खबर पडशे के आत्मानुं शुं कर्तव्य छे?
पूर्वे अनंतवार राजा थयो, ते याद नथी आवतुं छतां पण युक्तिथी सिद्ध थई शके छे. पूर्वे आत्मा हतो;
जेम माताना पेटमां ९ मास रह्यो हतो ते याद नथी आवतुं छतां हतो खरो. तेम पूर्वे राजा वगेरे भवमां
आत्मा हतो, ते भव याद न आवे तोपण आत्मा तो सदाय हतो.
जीव एक वार कीडी थयो, त्यारे गोळनी कटकीथी राजी थई गयो अने माणस थयो त्यारे लाखो रूपिया
मळ्‌या तेमां राजी थयो, बंनेमां कांई फेर नथी. आत्माए अनंतकाळथी पोतानी शोध नथी करी पण परने ज
गोत्युं छे. ईयळ थयो तो विष्टाने शोधी, ढोर थयो तो घासने गोत्युं, जुवान माणस थयो तो स्त्री आदिने शोधी,
पण तेमां क्यांय सुखी न थयो. पोते बधानो जाणनार छे तेनी शोध कदी करी नथी. आत्मानुं कायमनुं काम तो
जाणवुं ने आनंदमां रहेवुं ते ज छे. पण तेने भूलीने बहारमां आथडी रह्यो छे. सुख बहारमां शोधे छे, पण अंदर
जोतो नथी. स्वर्गमां गयो तो देव–देवीमां सुख मान्युं, पण भाई! आत्मामां सुख छे तेमां तो जो. अनंतकाळनी
रखडपट्टीथी थाके तो आत्मानी संभाळ करे. आत्मानो कदी निर्णय कर्यो नथी. जेम रस्ताना बे फांटा पडे त्यां क्यो
रस्तो साचो! ते नक्की करीने पछी चाले छे, तेम आत्मानो स्वभाव केवो छे ते निर्णय करे तो तेनो उपाय करे.
अत्यारे महाविदेहमां श्रीसीमंधर भगवान बिराजे छे ते केवळज्ञानी अरिहंत छे, केवळी शुं करे? जाणे.
जेम सर्वज्ञभगवान पूर्ण जाणे छे तेम दरेक जीव जाणनार ज छे. भगवान शुं करे छे? –जाणे छे; जाणवा सिवाय
बीजुं कांई करता नथी. भगवानने ईच्छा न होय. ईच्छा तो दुःखनुं मूळ छे. कह्युं छे के–
‘क्या ईच्छत खोवत सबै, है ईच्छा दुःखमूळ.”
भगवान परनुं कांई करता नथी. भगवाननी ईच्छा प्रमाणे थाय ए वात खोटी छे, भगवानने ईच्छा ज
नथी. कसाई गायो कापे छे, तो शुं भगवाननी एवी ईच्छा होय? अत्यारे तो माणस माणसने कापी नांखे छे.
तो शुं भगवानने एवी ईच्छा होय? भगवान ते कांई करता नथी, पण सौ सौना प्रारब्ध प्रमाणे बहारनो
संयोग–वियोग थया करे छे. भगवान तो बधुं जाणे छे. आत्मानो स्वभाव जाणवानो ज छे. तेने भूलीने
बीजामां सुख माने छे तेने अज्ञानरूपी सन्नेपात लागु पड्यो छे. जेम सन्नेपातनो रोगी गांडपणथी हसे छे
तेम अज्ञानी पुण्य–पापना भाव करीने तेनो हरख करे छे ते हरख सन्नेपात छे.
जीव क्रोध करे तो थाय छे, न करे तो नथी थतो, क्रोध करवामां के टाळवामां कोई बीजानी मदद तेने नथी,
माटे क्रोध करवामां ते स्वतंत्र छे, ने ते टाळवामां पण स्वतंत्र छे. क्रोधनो कर्ता आत्मा ज भासे छे, ईश्वर तेनो
करावनार नथी. जेम क्रोध करवामां जीव स्वतंत्र छे तेम त्रिकाळ जीव स्वतंत्र छे, ईश्वरे जीवने बनाव्यो नथी.
जेम खडी धोळी छे तेम आत्मा चैतन्यमूर्ति छे, ते जाणनार देखनार छे, एनो निर्णय करे तो धर्म थाय छे.
आत्मानुं ज्ञान अंतरहित छे. घणा वर्षनुं ज्ञान अंदरमां भर्युं होय छतां वजन वतुं नथी. गई कालनी
वात याद करे छे तेम पचास वर्ष पहेलानी वात पण याद करे छे, तेमां वार लागती नथी. अने ए ज रीते जो
ज्ञानस्वभावने ओळखीने तेमां एकाग्र थाय तो अनंतकाळनुं बधुं जाणे तेवी ज्ञाननी अपार शक्ति छे. आत्मामां
(अनुसंधान टाईटल पान – ३)