Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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श्री सिद्धभगवान
: १६४ : आत्मधर्म : अषाड : २४७५ :
शांतिनाथ विचर्या ते पवित्र पंथे अमे विचरीए–एवो अपूर्व अवसर क्यारे आवशे!’ ईत्यादि प्रकारे भावना
करतां करतां भक्तजनो पाछा फरता हता. ते वखते पालखीमां मात्र प्रभुना केश हता, ते केशने क्षीर समुद्रमां
पधरावी दीधा हता.
बपोरे १० वाग्या पछी प्रभुश्री शांतिनाथ मुनिराज आहार माटे गाममां
पधार्या, आहारदाननो शुभ–प्रसंग भाईश्री व्रजलाल फूलचंद भायाणीने त्यां
थयो हतो. ए प्रसंगे भक्तोनो उल्लास घणो हतो. खरेखर श्रीतीर्थंकर भगवान
विचरे छे त्यां गंधोदक वृष्टि थाय छे तेम अहीं ज्यारे प्रभुश्री आहार माटे पधार्या
त्यारे आकाशमांथी कुदरती मंदमंद गंधोदक वरसी रह्युं हतुं.
अंकन्यासविधि
बपोरे १।। वागे श्रीजिनप्रतिमाओ उपर अंकन्यास विधि करवा माटे पू.
गुरुदेवश्री पधार्या. अने महा पवित्र जिनप्रतिमाओ उपर, महा पवित्र भावथी,
पवित्र हस्ते अंकन्यास विधि कर्यो. अने अत्यारसुधी अपूज्य प्रतिमा हवे पूज्य
बन्या... ए रीते प्रतिष्ठाविधानमां आ अंकन्यासविधि घणो महत्वनो छे. ए पवित्र
प्रसंगने भक्तजनोए घणा महान मंगळ जयनादथी वधाव्यो हतो. त्यारबाद सर्वे
प्रतिमाजी उपर नेत्रोन्मिलन विधि पू. गुरुदेवश्रीए कर्यो हतो.
कवळ कल्यणक महत्सव
बपोरे ३ वागे प्रभुश्रीना केवळज्ञान कल्याणिकनुं द्रश्य हतुं. प्रभुश्री शांतिनाथमुनि आत्मध्यानमां मग्न
हता ने शुक्लध्यान श्रेणीए चडतां तेमने केवळज्ञान प्रगट थयुं. तरत ज देवोए आवीने प्रभुनी स्तुति करी अने
समोसरणनी रचना करी. आ प्रसंगे समोसरणनी रचनानो सुंदर देखाव थयो हतो. समोसरणनी मध्यमां
प्रभुश्री बिराजता हता. प्रभुजी आगळ धर्मचक्र चमकी रह्युं हतुं. राजचक्रवर्तीपणुं त्यागीने भगवान धर्मचक्री
थया. बार सभा भराणी अने भगवाने दिव्यध्वनि वडे धर्मनो उपदेश कर्यो. आ प्रसंगे भगवानना
दिव्यध्वनिना सार रूपे पू. गुरुदेवश्रीए अद्भुत प्रवचन कर्युं हतुं. रात्रे समोसरणस्थित भगवाननी स्तुति थई
हती अने पू. गुरुदेवश्रीनुं रेकोर्डींग थयेलुं व्याख्यान संभळाववामां आव्युं हतुं.
निर्वाण कल्याणिक महोत्सव
जेठ सुद प ना रोज जिनमंदिरमां भगवाननी स्थापनानो तेमज श्रुतपंचमीनो पवित्र दिवस हतो. आजे
सवारमां निर्वाणकल्याणिकनो देखाव थयो हतो. श्री शांतिनाथ भगवान सम्मेदशिखर उपर निर्वाण पाम्या छे
तेथी अहीं सम्मेदशिखरपर्वतनी सुंदर रचना थई हती. ए शाश्वती निर्वाणभूमि उपर प्रभुश्री योगनिरोधदशामां
बिराजता हता अने थोडी वारमां निर्वाण पाम्या. जीवन्मुक्त भगवान देहमुक्त थईने अनंत सिद्धोनी वस्तीमां
बिराजमान थया. तरत ज देवो निर्वाणकल्याणिक उजववा आव्या अने अग्निकुमार देवोए मुकुट वडे अग्निसंस्कार
कर्यो–ईत्यादि द्रश्यो थया हता. अग्निसंस्कार बाद शेषभस्म लईने मस्तके चडावता भक्तजनो भावना करता हता
के “हे प्रभो! आपश्री जे पवित्रदशा पाम्या ते पवित्रदशा अमने पण प्राप्त थाओ.”
अमदावादमां श्रुतपंचमीनो उत्सव
आजथी लगभग बे हजार वर्ष पहेलांं जेठ सुद प ना रोज महान परमागम श्री षट्खंडागमनी
महान उत्सवपूर्वक चतुर्विध संघे पूजा करी हती; तेथी ते दिवस “श्रुतपंचमी” ना पवित्र उत्सव तरीके
प्रसिद्ध छे. आ वर्षे पहेली ज वार ए महा मांगळिक प्रसंग अमदावादना मुमुक्षु मंडळे ऊजव्यो हतो. ते
दिवसे सवारे श्रुतपूजन करीने पछी श्री जिनेन्द्रदेवनी अने श्री सत्शास्त्रजीनी रथयात्रा घणा
उल्लासपूर्वक वाजते गाजते नीकळी हती. अने रात्रे श्री आत्मसिद्धिनी स्वाध्याय करवामां आवी हती.
रथयात्रामां त्रणे फीरकाना मळीने हजारेक माणसोए घणा उत्साहथी लाभ लीधो हतो. अमदावादमां
श्रुतपंचमीनी रथयात्रा पहेली ज वार होवाथी त्यांना मुमुक्षुमंडळने विशेष प्रमोद थयो हतो.
अमदावादमां पतासानी पोळमां हंमेशांं तत्त्वज्ञाननुं वांचन थाय छे.