: १६६ : आत्मधर्म : अषाड : २४७५ :
तेओश्रीए प्रतिष्ठा महोत्सवनो सर्व विधि घणी सारी रीते कराव्यो ते माटे तेमनो आभार मानवामां आवे छे.
इंदोरथी सर शेठ हुकमीचंदजी साहेबने आ प्रतिष्ठा उपर आववानी घणी अंतर भावना हती पण नादुरस्त
तबियतने कारणे आवी शक्या न हता.
उत्सव दरमियान पण हंमेशा पू. गुरुदेवश्रीना आध्यात्मिक प्रवचनो थता हता. एक तरफ
श्रीजिनेन्द्रभक्तिनो उल्लास हतो अने बीजी तरफ पू. गुरुदेवश्री हमेशां तत्त्वज्ञाननी रेलमछेल करी रह्या हता.
ए रीते ज्ञान अने भक्तिनो सुंदर सुमेळ जाग्यो हतो. सामान्य उत्सवो तो घणा थता हशे पण तत्त्वज्ञाननी
मुख्यता पूर्वकना आवा पवित्र उत्सवो बहु ज विरल छे. परम पूज्य अध्यात्ममूर्ति सद्गुरुदेवश्री
कानजीस्वामीना पुनित प्रतापे अने बळवान प्रभावनायोगे आजे हजारो वर्षे आ सौराष्ट्रदेशमां फरीथी पवित्र
जिनेन्द्रशासननी स्थापना थई रही छे. पू. गुरुदेवश्रीना मंगळहस्ते आवा पवित्र शासनप्रभावनाना सेंकडो
महान कार्यो थाओ अने श्रीजिनेन्द्रधर्मचक्र सर्वदा सर्वत्र प्रवर्तो. कल्याणमूर्ति श्री सद्गुरुदेवनो प्रभावना उदय
जगतनुं कल्याण करो.
• जैनं जयतु शासनम् •
सुधारो : – आत्मधर्म अंक ६८ पृ. १४९ कोलम १ लाईन ३५ मां “एकांतरूप वस्तु स्वभावनुं” एम
छपायुं छे तेने बदले “अनेकांतरूप वस्तु स्वभावनुं” एम सुधारीने वांचवुं.
नागलपुर मां पूज्य गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान] [माह वद ६ शुक्रवार
भगवान कहे छे के तुं एक आत्मा छे. अरिहंत पण आत्मा छे. भगवान केवा छे? सव्वणूणं
सव्वदरिसिणं एटले हे भगवान, तमे सर्वना जाणनार अने सर्वना देखनार छो. कोईनुं कांई करनार नथी, ने
कोई उपर राग–द्वेष करनार नथी. एवा भगवान क्यांथी थया? आत्मामां तेवी शक्ति हती ते प्रगट करीने
भगवान थया. दरेक आत्मामां पण एवी शक्ति छे.
सीमंधर परमात्मा अत्यारे अरिहंत छे; ने महावीर भगवान अत्यारे सिद्ध छे; तेमने मन नथी, वाणी
नथी, शरीर नथी, पुण्य पाप नथी, पण सर्वना जाणनार–देखनार छे. शरीर, मन, वाणी आत्माने नथी तेथी ते
जुदा पडी जाय छे. जो ते आत्माना होय तो जुदा पडे नहि. राग–द्वेष पण आत्माना नथी. जो आत्माना होय
तो भगवानना आत्मामांथी ते केम टळे? जीव तो ज्ञान अने दर्शनवाळो छे. आवा जीवने जाणवो जोईए.
जेम पंदर वला सोनामां जे तांबानो भाग छे ते सोनाथी जुदी जात छे. तेम आत्मामां जे राग–द्वेष देखाय
छे ते तेनुं स्वरूप नथी तेथी जुदा पडी जाय छे. जेम तेल अने तलनो कूचो जुदा छे, शेरडीनो रस अने छोतां जुदा
छे तेथी जुदा पडे छे. तेम आत्मानुं ज्ञान अने राग जुदा छे तेथी साची ओळखाणथी ते जुदा पडी जाय छे. आ
शरीर तो शेरडीनो सांठो छे, अंदर चैतन्य रस जुदो छे.
भगवाननी स्तुतिमां कहे छे के समाहि वरमुत्तमं दिंतु एटले हे भगवान्! मने उत्तम समाधिना वर
आपो. समाधि कोने कहेवाय? आत्मानुं भान करीने तेमां ठरे तेनुं नाम समाधि छे. भगवान कांई कोईने
समाधि आपता नथी पण पोते ओळखाण करीने भगवाननो विनय करे छे. पहेलांं आत्मानुं भान थतां
सम्यग्दर्शन थाय छे ते समाधि छे. एवुं सम्यग्दर्शन संसारमां रहेला भरतचक्रवर्ती, श्रेणीकराजा, पांडवो,
रामचंद्रजी वगेरेने हतुं. जीवोए अनंतकाळमां एक सेकंड मात्र एवुं आत्मभान कर्युं नथी. ए सिवाय पुण्य–पाप
करीने चारे गतिना अनंतभव कर्या, पुण्य करीने स्वर्गमां अनंतवार गयो, पण तेनाथी धर्म न थाय.
वीतरागदेव जेने सम्यग्दर्शन कहे छे तेनी आ वात छे. मुनि थया पहेलांं ने श्रावक थया पहेलांं
आत्मभान केवुं होय! तेनी आ वात छे. श्रेणीक राजाने आवुं ज्ञान हतुं तेथी ते भविष्यमां तीर्थकर थशे.
अत्यारे नरकमां होवा छतां आवुं भान छे. आत्मा देहथी जुदो ने पुण्य–पापथी पार ज्ञानमूर्ति छे–एवुं भान
जो एक सेकंड–मात्र एक सेकंड ज करे तो भव कट्टी थई जाय.
साची समजण थया पछी राग थाय पण शरीरनुं हुं करी शकुं एम ते न माने, रागने पोतानुं स्वरूप न
माने. राग रहित ज्ञान आनंदस्वरूप मारो आत्मा छे–एवुं भान छे, तेमने चोथा गुणस्थाननी समाधि