Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४७५ : आत्मधर्म : १६७ :
छे. जीवे अनंतकाळमां एक सेकंड पण आवा सम्यग्दर्शननी समजण करी नथी. अनंतकाळे आ मनुष्य देह मळे
छे तेमां ए ज करवा जेवुं छे.
जेम भगवान बधाना जाणनार छे, पण तेमने राग–द्वेष नथी, तेम आ आत्मा पण जाणनार छे, तेने
राग–द्वेष होय भले पण ते राग–द्वेष मारुं स्वरूप नथी, हुं ज्ञाता छुं–एवुं भान करे तो सम्यग्दर्शन थाय. श्रेणीक
राजाने व्रत न हतुं, त्याग न हतो छतां तीर्थंकरनामकर्म बांध्युं. ए कोनो प्रताप? एमने सम्यग्दर्शन हतुं, तेना
प्रतापे आवती चोवीसीमां जगतपूज्य पहेला तीर्थंकर थशे.
ज्ञान आत्मामां भर्युं छे, कांई शास्त्रना पानामां ज्ञान नथी, ते तो जड छे. जेम मीठाना गांगडामां
खाराश भरी छे तेम आत्मामां ज्ञान भर्युं छे. पुण्य–पाप थाय ते भाव आत्मानुं स्वरूप ज नथी–एम समजे तो
सम्यग्ज्ञान छे. एवुं सम्यग्ज्ञान थया पछी पूजा–भक्तिनो शुभाभव आवे ने रमवानो के भोगनो अशुभभाव
पण आवे, पण ज्ञानी जाणे छे के ए शुभ ने अशुभ बंने मारो धर्म नथी. शुभराग थाय ते पाप नथी तेमज
धर्म पण नथी, पण ते पुण्य छे. धर्म चीज तेनाथी जुदी छे. पुण्य करीने अनंतवार देव थयो पण धर्म चीज शुं
छे? ते न समज्यो, तेथी अनंत संसारमां रखडयो. एक सेकंड मात्र जो आत्माने समजे तो संसारथी बेडो पार
थई जाय.
भगवान शांतिनाथ वगेरे तीर्थंकरो चक्रवर्ती हता. माताना पेटमां आव्या त्यारथी मति–श्रुत–अवधि
एवा त्रण ज्ञानसहित आव्या हता. तेमने राग हतो, हजी वीतराग थया न हता छतां उपर कह्युं तेवुं
आत्मभान हतुं.
भगवाने मार्ग जेम छे तेम कह्यो छे, पण कर्यो नथी. मग्ग देसयाणं एटले हे भगवान! तमे मोक्षनो
मार्ग देखाडनारा छो. भगवान तो मार्ग देखाडनारा छे पण चालवानुं तो पोताने छे, भगवान जेम कहे छे तेम
एक सेकंड पण समजे तो सम्यग्दर्शन थया वगर रहे नहि.
सीताजीना पेटमां लव–कुश बे पुत्र हता. ते वखते य सीताजीने सम्यग्दर्शन हतुं–आत्मभान हतुं.
रामचंद्रजीए सीताजीने जंगलमां मूकी आववानो हुकम कर्यो, छतां जंगलमां आत्मानुं भान हतुं. धर्मी जीव
संसारमां रह्या छतां निर्लेप रहे छे. जेम धावमाता बाळकने खेलावे पण अंतरमां समजे छे के आ बाळक
कमाईने मने नहि खवरावे. तेम धर्मी जीव गृहस्थदशामां होवा छतां अंतरमां आत्मानुं भान छे के आ शरीर–
पुत्र वगेरे मारां नथी, ने विकार थाय ते पण मारो स्वभाव नथी, ए कोई मने धर्ममां मदद करनार नथी.
आत्मानुं भान थया पछी राग होय, राजपाट होय, लडाई करता देखाय, छतां धर्मात्मा अंदरनुं भान
चूकता नथी. शांतिनाथ, कुंथुनाथ ने अरनाथ ए त्रणे तीर्थंकरो चक्रवर्ती हता, माताना पेटमां आव्या त्यारथी
आत्मभान लईने ज आव्या हता, छतां पछी राजमां रह्या, छ खंड जीत्या, तेवो राग हतो, तेने पोतानी
नबळाई जाणता, पण ते रागने पोतानुं स्वरूप मानता नहि, ने एक क्षण पण आत्मानुं भान चूकता नहि,
आवा आत्मानी ओळखाण वगर धर्म ने मुक्ति थाय नहि. पहाड उपर वीजळी पडे ने तेना बे कटका थाय,
पछी ते रेणथी संधाय नहि, तेम एकवार पण आत्मानुं भान करे ते जीव अनंत संसारमां रखडे नहि, ते हळवे
हळवे संसारने तरी जशे. आवुं भान आठ वर्षनी बालिकाने थाय छे. महाविदेहमां अत्यारे सीमंधरपरमात्मा
बिराजे छे, ते तीर्थंकर छे, तेमना समोसरणमां अत्यारे आठ आठ वर्षना बाळको आत्माने ओळखे छे. बापु!
अनंत काळमां आत्माने जाण्या वगर तें बधी धमाल करी. तारुं स्वरूप तो शेरडीना रस जेवुं मीठुं छे, ने पुण्य–
पाप तो मेल छे, छोतां छे. अहो! भगवान आत्मानुं स्वरूप शुं कहे छे? शरीर नहि, मन नहि, वाणी नहि.
राग नहि द्वेष नहि, ज्ञानमूर्ति आत्मा छे–एम सांभळीने अंतर आत्माना महिमा तरफ वळतां आठ वर्षनी
राजकुमारी पण आत्मानुं भान पामे छे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते मनथी जणातां नथी. मनथी पण भगवान आत्मा अगोचर छे. मन साथे
जोडाय तो संकल्प–विकल्प ने रागद्वेष थाय छे; तेना आश्रये चैतन्य जात जणाय नहि, चैतन्यना आश्रये चैतन्य
जणाय छे. जेम झेर पीवाथी अमृतना ओडकार न आवे तेम मनना संबंधे जे पुण्य–पापना भाव थाय ते
विकार छे, ते विकारवडे अविकारी आत्मा प्रगटे नहि. मनथी काम ल्ये तो कल्याण न थाय, पण मननुं
अवलंबन मूकीने अंदर ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखे तो कल्याण थाय. आत्मानुं सम्यग्दर्शन तो मनथी पार
छे. जेम बाळक पेंडाना स्वाद पासे सोनानो हार आपी दे छे, तेम अज्ञानी जीव पुण्यनी