छे तेमां ए ज करवा जेवुं छे.
राजाने व्रत न हतुं, त्याग न हतो छतां तीर्थंकरनामकर्म बांध्युं. ए कोनो प्रताप? एमने सम्यग्दर्शन हतुं, तेना
प्रतापे आवती चोवीसीमां जगतपूज्य पहेला तीर्थंकर थशे.
सम्यग्ज्ञान छे. एवुं सम्यग्ज्ञान थया पछी पूजा–भक्तिनो शुभाभव आवे ने रमवानो के भोगनो अशुभभाव
पण आवे, पण ज्ञानी जाणे छे के ए शुभ ने अशुभ बंने मारो धर्म नथी. शुभराग थाय ते पाप नथी तेमज
धर्म पण नथी, पण ते पुण्य छे. धर्म चीज तेनाथी जुदी छे. पुण्य करीने अनंतवार देव थयो पण धर्म चीज शुं
छे? ते न समज्यो, तेथी अनंत संसारमां रखडयो. एक सेकंड मात्र जो आत्माने समजे तो संसारथी बेडो पार
थई जाय.
आत्मभान हतुं.
एक सेकंड पण समजे तो सम्यग्दर्शन थया वगर रहे नहि.
संसारमां रह्या छतां निर्लेप रहे छे. जेम धावमाता बाळकने खेलावे पण अंतरमां समजे छे के आ बाळक
कमाईने मने नहि खवरावे. तेम धर्मी जीव गृहस्थदशामां होवा छतां अंतरमां आत्मानुं भान छे के आ शरीर–
पुत्र वगेरे मारां नथी, ने विकार थाय ते पण मारो स्वभाव नथी, ए कोई मने धर्ममां मदद करनार नथी.
आत्मभान लईने ज आव्या हता, छतां पछी राजमां रह्या, छ खंड जीत्या, तेवो राग हतो, तेने पोतानी
नबळाई जाणता, पण ते रागने पोतानुं स्वरूप मानता नहि, ने एक क्षण पण आत्मानुं भान चूकता नहि,
आवा आत्मानी ओळखाण वगर धर्म ने मुक्ति थाय नहि. पहाड उपर वीजळी पडे ने तेना बे कटका थाय,
पछी ते रेणथी संधाय नहि, तेम एकवार पण आत्मानुं भान करे ते जीव अनंत संसारमां रखडे नहि, ते हळवे
बिराजे छे, ते तीर्थंकर छे, तेमना समोसरणमां अत्यारे आठ आठ वर्षना बाळको आत्माने ओळखे छे. बापु!
अनंत काळमां आत्माने जाण्या वगर तें बधी धमाल करी. तारुं स्वरूप तो शेरडीना रस जेवुं मीठुं छे, ने पुण्य–
पाप तो मेल छे, छोतां छे. अहो! भगवान आत्मानुं स्वरूप शुं कहे छे? शरीर नहि, मन नहि, वाणी नहि.
राग नहि द्वेष नहि, ज्ञानमूर्ति आत्मा छे–एम सांभळीने अंतर आत्माना महिमा तरफ वळतां आठ वर्षनी
राजकुमारी पण आत्मानुं भान पामे छे.
जणाय छे. जेम झेर पीवाथी अमृतना ओडकार न आवे तेम मनना संबंधे जे पुण्य–पापना भाव थाय ते
विकार छे, ते विकारवडे अविकारी आत्मा प्रगटे नहि. मनथी काम ल्ये तो कल्याण न थाय, पण मननुं
अवलंबन मूकीने अंदर ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखे तो कल्याण थाय. आत्मानुं सम्यग्दर्शन तो मनथी पार
छे. जेम बाळक पेंडाना स्वाद पासे सोनानो हार आपी दे छे, तेम अज्ञानी जीव पुण्यनी