: अषाड : २४७५ : आत्मधर्म : १६७ :
मीठाशथी आत्माना स्वभावने भूली जाय छे. आत्मामां
परिपूर्ण ज्ञानशक्ति भरी छे. जेम लींडीपीपरमां तीखाश
भरी छे ते घसतां प्रगटे छे तेम आत्मामां परिपूर्ण
ज्ञानशक्ति भरी छे तेने ओळखीने तेमां एकाग्र थाय
तो केवळज्ञान प्रगटे छे. जेम लींडीपीपरने घसे तो
तीखाश प्रगटे छे, पण उंदरनी लींडी घसतां तीखाश
प्रगटे नहि तेम आत्माना ज्ञानस्वभावने ओळखीने
तेमां एकाग्रतानी क्रिया करे तो केवळज्ञान प्रगटे, पण
शरीरनी क्रियाथी केवळज्ञान थतुं नथी.
जेम दरियाना पाणीमां बहारनी हजारो नदीथी
के वरसादथी भरती आवे नहि पण तेनुं मध्यबिंदु
ऊछळे त्यारे भरती आवे छे तेम आत्माना ज्ञाननी
भरती कोई बहारनी क्रियाथी आवती नथी पण
अंदरना स्वभावनो विश्वास करीने अंतरमां एकाग्र
थाय तो ज्ञान ऊघडे छे. एक सेंकड पण अंदरना आखा
चैतन्यनी प्रतीत करे तो मोक्ष थया विना रहे नहि.
(अनुसंधान पान १६० थी चालु)
छे; पांचमहाव्रत, पांचसमिति ने त्रण गुप्ति ते
सम्यक्चारित्रना बाह्य आचार छे, अणशनादि बार
प्रकारना तप ते तपना बाह्य आचार छे, अने पोतानी
शक्ति प्रगट करीने मुनिना पंचमहाव्रतो तथा समिति–
गुप्तिनुं आचरण ते वीर्यना बाह्य आचार छे. आ
आचारोने व्यवहारपंचाचार कहेवाय छे. आ व्यवहार
पंचाचार रागरूप छे. मुनि ज्यारे निश्चय
अभेदपंचाचारमां स्थिर न रही शके अने तेमने विकल्प
ऊठे त्यारे तेओने आ व्यवहार पंचाचार होय छे. ए
प्रमाणे व्यवहार पंचाचारनुं स्वरूप जाणवुं.
(अनुसंधान पान १५७ थी चालु)
रहित स्वभावना भानपूर्वक, स्त्री आदि प्रत्येना
रागने जे टाळे छे ने सुखदायक शियळ पाळे छे तेने
अल्प भव ज बाकी रहे छे, ए तत्त्ववचन छे.
सुंदर शियळ शीलतरु मन–वाणी ने देह,
जे नर–नारी आदरे अविचल पद ते लेह. ६
स्वभावना भानसहित रागने छेद्यो ते कल्पवृक्ष
समान छे. आत्माने समजीने जे ब्रह्मचर्य पाळशे ते
नर–नारी अनुक्रमे अनुपम एवा सिद्धपदने पामशे.
पात्र विना वस्तु न रहे, पात्र आत्मिक ज्ञान,
पात्र थवा सेवो सदा ब्रह्मचर्य मतिमान! ७
‘मतिमान’ एम संबोधन कर्युं छे, एटले
रागरहित आत्माना लक्षे जे ब्रह्मचर्य पाळे छे ते
आत्माज्ञाननी पात्रताने सेवे छे.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
श्री लाठी शहेरमां प्रतिष्ठा
महोत्सव दरमियान पू. गुरुदेवश्री पासे
नीचे जणावेला भाई–बहेनोए आजीवन
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लीधी छे–
वशख वद १३
(१) शेठ भवानभाई लल्लुभाई तथा
तेमना धर्मपत्नी रंभाबेन
(२) शेठ छगनभाई मोनजीभाई तथा
तेमना धर्मपत्नी बेनकुंवरबेन
वशख वद १४
(३) शेठ हरिचंदभाई मोतीचंद तथा तेमना
धर्मपत्नी काशीबेन
जठ सद २
(४) शेठ लालजीभाई वालजी तथा तेमना
धर्मपत्नी गोमतीबेन
(प) शेठ तलकचंद अमरचंद तथा तेमना
धर्मपत्नी नर्मदाबेन
(६) शेठ मगनलाल वशराम तथा तेमना
धर्मपत्नी व्रजकुंवरबेन
जठ सद ४
(७) शेठ जमनादास पानाचंद तथा तेमना
धर्मपत्नी मणीबेन
(८) शेठ त्रिभुवनदास वालजीभाई तथा
तेमना धर्मपत्नी हेमकुंवरबेन
(९) शेठ कानजी लल्लुभाई तथा तेमना
धर्मपत्नी ललिताबेन
(१०) शेठ मूळजीभाई लक्ष्मीचंद तथा
तेमना धर्मपत्नी कमळाबेन
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेनारा सर्वे
भाई–बहेनोने अभिनंदन!