Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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अषाड संपादक वर्ष छठ्ठुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७५ वकील अंक नवमो
विेक
अहो, एक माखी पण साकर अने फटकडीना स्वादनो
विवेक करीने, फटकडीने छोडे छे ने साकरनो स्वाद लेवा माटे
चोंटे छे; तो जेने पोतानुं कल्याण करवुं छे एवा जीवे,
पोतानो त्रिकाळी स्वभाव शुं अने विकार शुं एनो बराबर
विवेक करवो जोईए. त्रिकाळना लक्षे शांति थाय छे ने
क्षणिक पर्यायना लक्षे आकुळता थाय छे, एम ते बंनेनो भेद
जाणीने, जो पर्यायथी खसीने त्रिकाळी स्वभाव तरफ
श्रुतज्ञान वळे तो स्वभावना आनंदनो स्वाद आवे, अने
गमे तेवा प्रतिकूळ संयोग वखते पण स्वभावनी एकताने
ते ज्ञान छोडे नहि. जे धर्मात्माने आवुं सम्यग्ज्ञान प्रगट थयुं
छे ते ज्यारे कर्मने जाणता होय त्यारे पण तेमने स्वभावमां
ज्ञाननी एकता वधती जाय छे. अने पर तरफनुं ज्ञाननुं
वलण घटतुं जाय छे.
–श्री समयसार गा. ३९० थी ४०४ उपरना प्रवचनोमांथी.
छुटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडीया : काठियावाड