Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १५६ : आत्मधर्म : अषाड : २४७५ :
[बोटादमां
पू. गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान]
मंगळवार २२–२–४९ माह वद १०] [मोक्षमाळा पाठ: ३४
आजे ब्रह्मचर्यनो प्रसंग होवाथी ब्रह्मचर्य संबंधी श्लोकना अर्थ थाय छे:–
निरखीने नवयौवना लेश न विषय निदान,
गणे काष्ठनी पूतळी ते भगवान समान. १
अहीं भगवानसमान कह्यो छे, ते एकला शुभरागरूप ब्रह्मचर्यनी वात नथी. परने देखीने जे राग माने
छे तेने तो परमां एकत्वबुद्धिरूप मिथ्यात्व छे. ज्ञानी स्त्रीने देखीने राग मानता नथी, तेथी दर्शननो दोष नथी,
अस्थिरताथी राग थाय ते चारित्रनी नबळाई छे. ‘निरखीने’ एटले के पर वस्तुने देखीने ‘आ सारुं छे’ एवी
बुद्धिथी जे राग थाय ते मिथ्यात्वीनो राग छे, ज्ञानीने राग थाय पण ते स्त्रीने देखवाना कारणे थतो नथी, स्त्री
मारी छे के स्त्री सुंदर छे–एवी मान्यताथी ज्ञानीने राग थतो नथी. चोथे–पांचमे गुणस्थाने ज्ञानीने स्त्री
आदिनो राग होय पण ते परना कारणे राग नथी मानता, तेथी तेने मिथ्यात्वनो राग नथी. ज्ञेयोने ज्ञेय तरीके
जाणे छे, पण तेना कारणे राग मानता नथी. सुंदर स्त्री देखीने जे राग माने छे तेने तो अनंत संसारना
कारणरूप राग छे. वळी ज्ञानीने लेश पण विषय निदान नथी, आसक्तिनो राग होय पण ते विषयमां सुख
मानता नथी. विषयने सुखनुं कारण मानीने ज्ञानीने कदी राग थतो नथी. एने अहीं ‘भगवान समान’ कह्यो
छे. पण मिथ्याद्रष्टि अनंतवार ब्रह्मचर्य पाळीने नवमी ग्रैवेयके गयो, तेने अहीं भगवानसमान कह्यो नथी.
जेम स्त्रीने निरखीने तेना कारणे ज्ञानी राग मानता नथी तेम पैसा के देव–गुरु–शास्त्र वगेरे कोई
पदार्थने कारणे पण ज्ञानी राग मानता नथी. आवा स्वभावना लक्षे ब्रह्मचर्य होय तो ते पात्रता छे, अने
स्वभावना लक्ष वगर ब्रह्मचर्य पाळे तो मंदरागथी पुण्य बंधाय, पण तेमां आत्मलाभ नथी.
आ पाठनुं नाम “ब्रह्मचर्य विषे सुभाषित” छे, एटले लौक्किमां जे ब्रह्मचर्यनुं कथन छे ते नहि, पण
परमार्थ स्वरूप शुं छे? तेनी वात आमां करे छे.
शांतिनाथ भगवान पहेलांं गृहस्थपणामां हता, चक्रवर्ती हता, हजारो राणीओ हती, छतां तेओना
कारणे लेश पण राग थवानुं मानता नथी, तेना विषयमां लेश पण सुख मानता नथी. तेने अहीं भगवान
समान कह्या छे; स्त्रीओ मारी–एम माने तेने तो तेना कारणे राग मान्यो, ने तेमां एकत्वबुद्धि छे, ते
मिथ्याद्रष्टि छे. अंतरद्रष्टिमां फेर छे, बहारना आचरणथी फेर जणाय नहि.
नवयौवना स्त्रीने काष्ठनी पूतळी समान गणे, एटले जगतना ज्ञेयोनी जेम तेने पण ज्ञेय जाणे. जेम
जगतमां विष्टा छे, हाडकां छे, लाकडां छे तेम ते स्त्री पण ज्ञेय छे. ते जगतना परमाणुओ छे. मारा स्वभावमां
वस्तुओने देखीने विकार थतो नथी; नवयौवन स्त्रीओने देखवाना कारणे जो राग थवानुं माने तो, तेना
अभिप्रायमां राग करवानुं ज आव्युं. केमके जगतमां नवयौवन स्त्रीओ तो अनादि अनंत छे, तेने कारणे जो
राग माने तो तेने अनादि अनंत काळ राग करवानुं आव्युं. तेनो अभिप्राय मिथ्या छे. ज्ञानी जाणे छे के स्त्रीने
कारणे मने राग नथी, स्त्रीने देखवाना कारणे मने राग नथी. तेथी कह्युं के–
निरखीने नवयौवना लेश न विषय निदान,
गणे काष्ठनी पूतळी ते भगवान समान. २
धर्मीने राग होवा छतां स्त्रीथी राग थवानुं मानता नथी. अने राग थाय तेने सुखनुं कारण नथी
मानता. जगतना अनंत ज्ञेयो छे ते कोई मने रागनुं कारण नथी, अने मारो ज्ञानस्वभाव रागरहित छे, तेमां
राग थाय ते मने सुखरूप नथी–एम ज्ञानी जाणे छे ते भगवान समान छे. हजी साक्षात् भगवान् थया नथी.
अस्थिरतानो राग छे पण रागरहित पूर्ण स्वभावनुं भान छे तेथी ते भगवान समान छे. राग छे ते क्षणिक
दोष छे पण त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिना जोरे ते राग अल्पकाळे टळी जवानो छे. रागमां जे सुख माने छे तेणे
रागने टाळवा जेवो मान्यो नहि.
ज्ञानीने स्त्री निरखीने राग थतो नथी, तेमां अल्पराग होय ते सुखबुद्धिथी थतो नथी, अने जगतना
बीजा ज्ञेयोनी जेम नवयौवना स्त्रीने काष्ठनी पूतळी जेवी गणे छे, –एने अहीं भगवान समान कह्या छे.