गणे काष्ठनी पूतळी ते भगवान समान. १
अस्थिरताथी राग थाय ते चारित्रनी नबळाई छे. ‘निरखीने’ एटले के पर वस्तुने देखीने ‘आ सारुं छे’ एवी
बुद्धिथी जे राग थाय ते मिथ्यात्वीनो राग छे, ज्ञानीने राग थाय पण ते स्त्रीने देखवाना कारणे थतो नथी, स्त्री
मारी छे के स्त्री सुंदर छे–एवी मान्यताथी ज्ञानीने राग थतो नथी. चोथे–पांचमे गुणस्थाने ज्ञानीने स्त्री
जाणे छे, पण तेना कारणे राग मानता नथी. सुंदर स्त्री देखीने जे राग माने छे तेने तो अनंत संसारना
कारणरूप राग छे. वळी ज्ञानीने लेश पण विषय निदान नथी, आसक्तिनो राग होय पण ते विषयमां सुख
मानता नथी. विषयने सुखनुं कारण मानीने ज्ञानीने कदी राग थतो नथी. एने अहीं ‘भगवान समान’ कह्यो
छे. पण मिथ्याद्रष्टि अनंतवार ब्रह्मचर्य पाळीने नवमी ग्रैवेयके गयो, तेने अहीं भगवानसमान कह्यो नथी.
स्वभावना लक्ष वगर ब्रह्मचर्य पाळे तो मंदरागथी पुण्य बंधाय, पण तेमां आत्मलाभ नथी.
समान कह्या छे; स्त्रीओ मारी–एम माने तेने तो तेना कारणे राग मान्यो, ने तेमां एकत्वबुद्धि छे, ते
मिथ्याद्रष्टि छे. अंतरद्रष्टिमां फेर छे, बहारना आचरणथी फेर जणाय नहि.
वस्तुओने देखीने विकार थतो नथी; नवयौवन स्त्रीओने देखवाना कारणे जो राग थवानुं माने तो, तेना
अभिप्रायमां राग करवानुं ज आव्युं. केमके जगतमां नवयौवन स्त्रीओ तो अनादि अनंत छे, तेने कारणे जो
राग माने तो तेने अनादि अनंत काळ राग करवानुं आव्युं. तेनो अभिप्राय मिथ्या छे. ज्ञानी जाणे छे के स्त्रीने
कारणे मने राग नथी, स्त्रीने देखवाना कारणे मने राग नथी. तेथी कह्युं के–
गणे काष्ठनी पूतळी ते भगवान समान. २
राग थाय ते मने सुखरूप नथी–एम ज्ञानी जाणे छे ते भगवान समान छे. हजी साक्षात् भगवान् थया नथी.
अस्थिरतानो राग छे पण रागरहित पूर्ण स्वभावनुं भान छे तेथी ते भगवान समान छे. राग छे ते क्षणिक
दोष छे पण त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिना जोरे ते राग अल्पकाळे टळी जवानो छे. रागमां जे सुख माने छे तेणे