Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 17

background image
: अषाड : २४७५ : आत्मधर्म : १५७ :
हजी शुभरागनो विकल्प छे तेथी कह्युं के “गणे काष्ठनी पूतळी.” हजी तद्दन वीतरागता थई नथी पण
पर लक्षे शुभराग छे, तेथी ते साक्षात् भगवान नथी, पण भगवान समान छे–एम कह्युं छे. जो साक्षात्
भगवान थई गया होय तो काष्ठनी पूतळी समान गणवानो शुभ विकल्प पण न होय. आत्माना स्वभावनुं
भान होवाथी अस्थिरताना रागवाळो होवा छतां तेने भगवानसमान कह्यो छे. जेनी द्रष्टि पर उपर छे, जे
परने कारणे राग माने छे, जे विषयोमां सुख माने छे, ते भले ब्रह्मचर्य पाळे तोपण तेने धर्म थतो नथी, ने
एने अहीं भगवान् समान कह्यो नथी.
मारुं स्वरूप ज्ञाताद्रष्टा छे, राग थाय ते विकार छे, परने कारणे राग थतो नथी अने राग थाय तेमां
मारुं सुख नथी–एवुं जेने भान छे एने श्रीमद्राजचंद्रजीए १६ मा वर्षे भगवानसमान कह्या छे.
आ सघळा संसारनी रमणी नायकरूप
ए त्यागी त्याग्युं बधुं केवळ शोकस्वरूप. २
स्त्री साथे रमण करवामां सुख छे एवी बुद्धि ते आ संसारनुं मूळ छे. जगतमां मूळ राग स्त्रीना
विषयनो होय छे, एनामां पण सुखबुद्धि जेणे छोडी दीधी छे ने ते तरफना रागमां पण जेने सुखबुद्धि नथी,
तेणे जगतना पदार्थोना कारणे राग थाय एवी मान्यता छोडी दीधी छे, अने ते केवळ उदासीन रूप ज्ञाता द्रष्टा
छे. खरेखर रमणी संसारनुं कारण नथी पण रमणी साथेना विषयमां सुख छे एवी मान्यता ज संसारनुं मूळ
छे. ज्ञानीने लक्ष्मी वगेरे पर चीजने कारणे तो राग थवानी मान्यता नथी अने अस्थिरताथी राग थाय तेने
पण पोतानुं स्वरूप जाणता नथी. पर वस्तु मने हितकार नथी एवा भानपूर्वक जेणे घणो राग छोड्यो छे अने
बाकी रहेलो अल्प राग छोडवानी भावना छे तेणे बधुं त्याग्युं एम कह्युं छे.
एक विषयने जीततां जीत्यो सब संसार
नृपति जीततां जीतिए दळ–पूर ने अधिकार. ३
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे ते सिवाय बीजा बधा पदार्थो ते मारुं ध्येय नथी; चैतन्य स्वभावने ज्ञाननो विषय
करीने जेणे पर साथेनो विषय छोडी दीधो छे, राग थाय तेने ध्येय मानता नथी, परवस्तुने ध्येय मानता नथी–
तेणे आखो संसार जीती लीधो. एकला अब्रह्मने ज जीतवानी वात नथी, पण एक तरफ चैतन्य ते स्वविषय,
अने सामे आखो संसार ते परविषय छे, जगतनो कोई परविषय मने सुखरूप नथी–एवा भानपूर्वक जेणे एक
विषय जीत्यो तेणे आखो संसार जीती लीधो छे. जेम राजाने जीततां लश्कर वगेरे जीताई जाय छे तेम
आत्मस्वभावना भानपूर्वक जेने विषयोमांथी सुखबुद्धि ऊडी गई छे तेनो समस्त संसार नाश थई जाय छे.
विषयरूप अंकुरथी टळे ज्ञान ने ध्यान
लेश मदीरापानथी छाके जयम अज्ञान. ४
पर विषयमां सुख छे एवी बुद्धि ते अज्ञानभावना अंकुरो छे तेमांथी अनंत संसारनुं झाड फालशे.
चैतन्यमां शांति छे तेने चूकीने परमां जे सुख माने छे तेने चैतन्यनुं ज्ञान ने ध्यान थतुं नथी.
चैतन्य चूकीने परविषयमां जेणे सुख मान्युं छे, तेने आत्मानुं साचुं ज्ञान नथी, आत्माना ज्ञान वगर
आत्मानुं ध्यान पण होय नहि. ज्ञानी परमां सुख मानता नथी, ज्ञानस्वभावी आत्मामां ज मारुं सुख छे एवुं तेने
भान छे, ते मोक्षना अंकुर छे. अज्ञानीने परमां सुखबुद्धि होवाथी तेने विषयनो अंकुर वधारवानी भावना छे,
ज्ञानीने स्वभावना भानमां क्षणे क्षणे राग घटतो जाय छे केम के रागनी भावना नथी ने विषयमां सुखबुद्धि नथी.
अज्ञानीने रागनी वृद्धि थशे एटले रागरहित स्वभावनुं ज्ञान टळशे, ने विषयनां अंकुरनी वृद्धि थशे पण चैतन्यमां
एकाग्रता नहि थाय. जेम मदिरापानथी अज्ञान थाय छे, ने माताने पण स्त्री कहेवा मांडे छे, तेम अज्ञानी परमां
सुख मानीने विषयोनो राग करे छे, एटले तेनो राग ते विषयनो अंकुर छे, तेमांथी संसारनुं झाड थशे. ज्ञानीने
राग थाय ते अस्थिरतानो छे, ते संसारनुं कारण नथी. तेने सम्यग्ज्ञाननो अंकुर फालीने केवळज्ञान थाय छे.
जे नव वाड विशुद्धथी, धरे शियळ सुखदाई
भव तेनो लव पछी रहे तत्त्ववचन ए भाई. ५
हे भाई! आत्मभान वगर तो अनंतवार नव वाडे शियळ पाळ्‌युं, पण ते ‘विशुद्ध’ नथी; आत्मस्वरूपना
भानसहित जे नव वाडे ब्रह्मचर्य पाळे छे तेने पछी अल्प भव ज रहे छे, –आवुं तत्त्ववचन छे. राग–
(अनुसंधान पान १६८)