Atmadharma magazine - Ank 071
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd. No. B. 4787
ज्ञानस्वभावनी आराधनानुं फळ मोक्ष
विराधनानुं फळ निगोद
अज्ञानी जीवो पैसा खरचवाथी पुण्य अने धर्म मनावे छे, अने तेना
फळमां स्वर्ग–मोक्ष मळशे एम कहे छे; पण ज्ञानीओ तो कहे छे के–पैसा
खरचवाना कारणे तो पुण्य–पाप के धर्म कांई थाय नहि, केमके ते तो जड छे,
आत्मा तेनो कर्ता नथी. परंतु हुं परनो कर्ता ने में पैसा खरच्या एम
मानीने, तेम ज पुण्यथी धर्म मानीने मिथ्यात्वनी पुष्टि करीने ते महापापी
जीव निगोदमां जशे. जुओ; अज्ञानीओ पैसा खरचवाथी मोक्ष मनावी रह्या
छे! ज्ञानीओ कहे छे के, पैसानी क्रियानो हुं कर्ता एम माननारो जीव
मिथ्यात्वने लीधे निगोद जशे. ज्ञानी अने अज्ञानीनी मान्यतामां आवो
विरोध छे. आ मान्यता साथे धर्म–अधर्मनो संबंध छे.
पुण्यथी के जडनी क्रियाथी आत्मानो धर्म मानशे ते जीव मिथ्यात्वने
लीधे निगोदमां जशे एम कह्युं ते वात कांई बीवराववा माटे करी नथी पण
यथार्थ स्वरूप समजाव्युं छे; जेणे आत्माना ज्ञानने स्वभावथी छोडावीने
संयोगो साथे जोडयुं छे तेना ज्ञाननुं परिणमन अनंतु हीणुं थई जशे, तेनुं ज
नाम निगोद दशा छे; तेनी ज्ञानशक्ति अत्यंत हणाई गई होवाथी बाह्य
निमित्तरूपे पण मात्र एक स्पर्शेन्द्रिय सिवाय बीजी कोई ईन्द्रियो होती नथी.
“हुं ज्ञाता साक्षीस्वरूपी नथी पण परनो अने विकारनो करनार छुं”
एम जेणे परनुं कर्तापणुं मान्युं अने जाणवानो स्वभाव न मान्यो ते जीवनी
मिथ्या मान्यतामां एम आवी जाय छे के मारो जाणवानो स्वभाव ढंकाई
जाओ अने मारामां विकारनो तेम ज परनुं करवाना भावनो विकास थाओ.
ए मिथ्या मान्यताने लीधे ते जीवनुं ज्ञान छेल्लामां छेल्ली हदे ढंकाई जशे ने
ते एकेन्द्रिय थशे, पोताना ज्ञान स्वभावनी विराधनानुं फळ ए ज छे. अने
जेणे पोताना ज्ञाता साक्षीस्वरूपने स्वीकारीने, विकारनी अने परना
कर्तृत्वनी मिथ्याबुद्धिने उडाडी दीधी छे ते जीव समये समये पोताना
ज्ञातापणाने वधारतो वधारतो अने रागादि भावोने दूर करतो थको
अल्पकाळे केवळज्ञान पामे छे ने साक्षात्पणे संपूर्ण ज्ञाता थई जाय छे. –
पोताना ज्ञानस्वभावनी आराधनानुं आ फळ छे.
–भेदविज्ञानसार
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय: मोटा आंकडिया सौराष्ट्र ता २२–८–४९
प्रकाशक: श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट: सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया: सौराष्ट्र