खरचवाना कारणे तो पुण्य–पाप के धर्म कांई थाय नहि, केमके ते तो जड छे,
मानीने, तेम ज पुण्यथी धर्म मानीने मिथ्यात्वनी पुष्टि करीने ते महापापी
जीव निगोदमां जशे. जुओ; अज्ञानीओ पैसा खरचवाथी मोक्ष मनावी रह्या
छे! ज्ञानीओ कहे छे के, पैसानी क्रियानो हुं कर्ता एम माननारो जीव
मिथ्यात्वने लीधे निगोद जशे. ज्ञानी अने अज्ञानीनी मान्यतामां आवो
विरोध छे. आ मान्यता साथे धर्म–अधर्मनो संबंध छे.
यथार्थ स्वरूप समजाव्युं छे; जेणे आत्माना ज्ञानने स्वभावथी छोडावीने
नाम निगोद दशा छे; तेनी ज्ञानशक्ति अत्यंत हणाई गई होवाथी बाह्य
निमित्तरूपे पण मात्र एक स्पर्शेन्द्रिय सिवाय बीजी कोई ईन्द्रियो होती नथी.
मिथ्या मान्यतामां एम आवी जाय छे के मारो जाणवानो स्वभाव ढंकाई
जाओ अने मारामां विकारनो तेम ज परनुं करवाना भावनो विकास थाओ.
ए मिथ्या मान्यताने लीधे ते जीवनुं ज्ञान छेल्लामां छेल्ली हदे ढंकाई जशे ने
जेणे पोताना ज्ञाता साक्षीस्वरूपने स्वीकारीने, विकारनी अने परना
कर्तृत्वनी मिथ्याबुद्धिने उडाडी दीधी छे ते जीव समये समये पोताना
ज्ञातापणाने वधारतो वधारतो अने रागादि भावोने दूर करतो थको
अल्पकाळे केवळज्ञान पामे छे ने साक्षात्पणे संपूर्ण ज्ञाता थई जाय छे. –
पोताना ज्ञानस्वभावनी आराधनानुं आ फळ छे.