Atmadharma magazine - Ank 071
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद संपादक वर्ष छठ्ठुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७५ वकील अंक अगियारमो
अज्ञानी बंधाय छे. ज्ञानी छूटे छे
स्वने जाणवा सहित परने जाणे एवुं
सम्यग्ज्ञान छे अने स्वने चूकीने एकला परने जाणे ते
मिथ्याज्ञान छे. जेने पोताना स्वरूपनुं ज्ञान नथी ते
पाप करे तोय बंधाय छे ने पुण्य करे तोय बंधाय छे;
केम के तेणे पुण्य–पापमां ज पोताना आत्मानी एकता
मानी छे, पण ज्ञानस्वभाव साथे एकता मानी नथी;
तेथी ते जीव विकारथी छूटतो नथी पण विकारमां
एकत्वपणुं मानीने बंधातो ज जाय छे, तेनो संसार
नाश थतो नथी. जेणे पोताना ज्ञानने आत्मामां वाळ्‌युं
नथी अने पुण्य–पापथी जुदुं जाण्युं नथी ते जीव पुण्यथी
पण बंधातो ज जाय छे, पण छूटो पडतो नथी. अने जे
जीवे पोताना ज्ञानने पुण्य–पापथी जुदुं जाणीने
स्वभावमां वाळ्‌युं छे ते जीव खरेखर पुण्य–पापथी
बंधातो नथी पण स्वभावना आश्रये बंधनथी छूटतो
ज जाय छे. त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव जेवो छे तेवो जाणीने
तेनी रुचि–प्रतीति करी ते जीव सम्यग्द्रष्टि थयो.
भेदविज्ञानसार
छुटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडीया : काठियावाड