ज्ञान पोताना स्वभावथी थाय छे, शब्दो सांभळवाना कारणे थतुं नथी. घडियाळमां आठ टकोरा पड्या
परिणमन एक ज समये वर्ती रह्युं छे, पण बंने स्वतंत्र छे.
छे. आम बधुं मेळवाळुं होवा छतां दरेके दरेक द्रव्य स्वतंत्रपणे पोताना स्वकाळमां ज, परनी अपेक्षा वगर
परिणमी रह्युं छे.
कारणे बीजा जीवने तेनुं ज्ञान थयुं नथी.
जेवुं जाण्यु तेवी ज भाषा आवे, अने सामो जीव पण तेवु ज समजी जाय. आवो मेळ होवा छतां ज्ञाने जाण्युं
माटे भाषा थई नथी अने भाषाने कारणे सामा जीवने तेनुं ज्ञान थयुं नथी. ज्ञाननी अवस्था स्वावलंबी
चैतन्यना आश्रये ज कार्य करे छे–एम समजीने, पोताना ज्ञानस्वभाव तरफ वळीने त्रिकाळी स्वभावनी श्रद्धा
प्रगट करवी ते सम्यक् श्रद्धा छे. पण घडियाळ वगेरे ज्ञेयोने कारणे के शब्दोने कारणे ज्ञान थयुं–एम माने ते जीवे
आत्मामां ज्ञान ने शांति मान्या नथी एटले ते जीव पोताना स्वभाव तरफ वळतो नथी ने तेनुं मिथ्यात्व टळतुं
नथी. प्रशंसाना शब्दो जगतमां परिणमे तेनाथी आत्माने सुख के ज्ञान नथी, छतां तेनाथी ज्ञान के सुख माने
तो ते जीवनुं ज्ञान परमां लीन थयेलुं छे, ते ज्ञान अचेतन छे–अधर्म छे. शब्दोथी अने ते तरफना क्षणिक
वर्तमान अवस्था पूर्ण स्वभाव तरफ वळे छे. द्रव्य–गुण तो त्रिकाळ पूरा छे ज, ने तेना तरफ वळती अवस्था
पण परिपूर्णने ज स्वीकारे छे, तेथी ते अवस्था पण पूर्णना आश्रये पूरी ज थाय छे.
आशरो छोडीने चेतनस्वभावनो आशरो ले छे. चेतनस्वभावी आत्मद्रव्यना लक्षे समये समये स्वभावनी
शुद्धता वधती जाय छे. एनुं नाम सर्वविशुद्धज्ञान छे.
पग के दांत नथी के जेनाथी ते पर वस्तुने पकडे के छोडे. आत्माए पोताना स्वभावने भूलीने
‘विकार ते हुं’ एम विकारनी पक्कड पोतानी अवस्थामां करी छे, जेणे पोताना परिपूर्ण
ज्ञानानंद स्वरूपनी पक्कड–श्रद्धा–करीने ते विकारनी पक्कड छोडी तेणे छोडवायोग्य बधुं छोड्युं छे.
स्वभावनुं ग्रहण ने विकारनो त्याग एवा ग्रहण–त्याग ते ज धर्म छे. ए सिवाय पर वस्तुने
आत्माए पकडी नथी, पर वस्तु आत्मामां कदी प्रवेशती नथी, तो आत्मा तेने छोडे क्यांथी? हुं
परने छोडुं–एम जे माने ते जीव परनो अहंकार करनारो मिथ्याद्रष्टि छे.