Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
कारतक संपादक वर्ष सातमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२००६ वकील अंक पहेलो
श्री मुनिराज निस्पृह करुणाबुद्धिथी कहे छे के–अरे
प्राणीओ! आत्मानो शुद्ध स्वभाव समज्या वगर अनंतकाळमां
बीजा बधा भावो कर्या छे, ए कोई भावो उपादेय नथी.
आत्मानो निश्चयस्वभाव ज उपादेय छे, एम तमे श्रद्धा करो.
आ दुर्लभ मनुष्यभवमां पण जो पोताना स्वभावने
जाणीने तेनो आदर नहि करे तो पछी फरीथी क्यारे आवो
अवसर मळवानो छे? पोतानो जेवो पूरो स्वभाव छे तेवो
ओळखीने तेनो ज आदर करवो–श्रद्धा करवी, ते ज आ
मनुष्यपणामां जीवनुं कर्तव्य छे.
अल्पकाळमां जेमने भवरहित थवुं छे एवा निकटभव्य
जीवो आ शुद्ध आत्मानो आदर करो, तेनी ओळखाण करो,
तेना अनुभवनो अभ्यास करो.
– नियमसार प्रवचनो
छूटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडिया : काठियावाड