Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम
त्रण रूपिया छुटक नकल
चार आना
(७४)
।। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे।।
मागशर : संपादक: वर्ष: सातमुं
२४७६ रामजी माणेकचंद दोशी अंक: बीजो
वकील
हे जीव, तुं शुद्धात्मानी श्रद्धा कर.
परम पारिणामिकभावरूप निरपेक्ष चैतन्यस्वभाव बतावीने श्री
आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! तुं आवा शुद्ध जीवतत्त्वनी श्रद्धा
कर. ‘हुं रागी छुं–हुं द्वेषी छुं, हुं विकारनो कर्ता छुं, हुं जडनी
क्रियानो कर्ता छुं’ एवी अशुद्धात्मानी श्रद्धा तो तें अनादिकाळथी
करी छे अने ए मिथ्याश्रद्धाने लीधे ज तुं संसारमां रखडी रह्यो
छे. माटे हवे, ए विकार हुं नहि पण ‘परम शुद्ध आत्मा ते ज हुं’
एवी शुद्धात्मानी श्रद्धा कर, तो तारा आत्मामां शुद्धभाव प्रगटे
अने तारुं अविनाशी कल्याण थाय.
[नियमसार–प्रवचनो]





शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
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