आ मासिकमां तत्त्वज्ञानने लगता विषयो ज लेवामां आवे छे; अने तेमां मुख्यपणे परम पूज्य
जिनबिंबप्रतिष्ठानो पंचकल्याणिक महोत्सव थयो हतो, अने सनातन जैनधर्मना सिद्धांत प्रमाणे जिनबिंबनी
प्रतिष्ठा थई हती. ते प्रसंगे पू. गुरुदेवश्रीनो विहार सौराष्ट्रमां अनेक स्थळे थयो हतो. जे जे स्थळोए तेओ
पधार्या हता त्यांना मुमुक्षुओए भव्य सत्कार करीने तेमनी अमृतमय वाणीनो अपूर्व लाभ लीधो हतो. विहार
दरमियान मुख्यत: श्रीपद्मनंदी पचीसीमांथी अने श्रीमद् राजचंद्रजीनी मोक्षमाळामांथी प्रवचनो थता हता.
गामडानां अभण लोको पण समजी शके तेवी सरळ भाषामां ‘आत्मानी समजण’ उपर ते व्याख्यानो थया
हता. ते व्याख्यानो आ मासिकमां छपातां जाय छे.
संख्यामां घणा रसपूर्वक तेनो लाभ लीधो हतो. राजकोटमां केटलाक व्याख्यानो मशीन द्वारा रेकर्डमां उतारी
लेवामां आव्या छे, ते व्याख्यानो गई सालना धार्मिक उत्सव दरमियान मुंबई लई जईने त्यांना मुमुक्षुमंडळने
संभळाव्या हता. ते सांभळतां मुंबईना मुमुक्षुओने पू. गुरुदेवश्रीना साक्षात् प्रवचनो जेवो लाभ मळ्यो हतो.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा, पू. गुरुदेवश्रीनो विह वींछियामां प्रतिष्ठा महोत्सव, राजकोटमां धर्म प्रभावना अने लाठीमां
प्रतिष्ठा महोत्सव–ए प्रसंगो मुख्य छे; उपरांत गई साल दरमियान पू. गुरुदेवश्री पासे २७ भाईओए सजोडे
आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे.
प्रवचनसारनी शरूआतना मंगलाचरणमां ‘
थी८२ गाथामां ‘जीव धर्म कई रीते पामी शके? अने तेना मोहनो क्षय कई विधिथी थाय?’ तेनो विशिष्ट उपाय
आचार्यभगवाने बताव्यो छे. ते गाथाओ उपर प्रवचनो द्वारा अपूर्व स्पष्टीकरण थयुं छे. ए प्रवचनो
आत्मधर्म मासिकना अंक २९, ३०, ३१, प८, प९ अने ६२मां आवी गया छे, ते तरफ मुमुक्षुओनुं खास ध्यान
खेंचीए छीए.
ज्ञानथी बहार (–जणाया वगरनुं) कांई पण होई शके नहि–ए वात स्पष्ट करीने, सर्वज्ञना ज्ञानमां सर्व द्रव्यो–
गुणो अने तेना अनादि अनंत पर्यायो एक समयमां युगपत जणाय छे–ए वात सिद्ध करी छे. अने ए सिद्ध
थतां, दरेक द्रव्यना अनादि अनंत पर्यायो क्रमबद्ध ज थाय छे–एवुं वस्तु स्वरूप स्वयमेव सिद्ध थाय छे. एटले
सर्व पदार्थोमां त्रण काळना क्रमबद्ध पर्यायो जेम थाय, तेमां कांई फेरफार के राग द्वेष करवानो जीवनो स्वभाव
नथी पण जेम थाय तेम जाणी लेवानो ज्ञायक स्वभाव छे;