मागशर: २४७६ : २३:
एवा पोताना ज्ञायक स्वभावी शुद्ध आत्मा तरफथी रुचि अने वलण वडे आत्मार्थी जीवोए द्रव्यद्रष्टि प्रगट
करीने, पर तरफना वलणवाळी पर्यायबुद्धि छोडवी जोईए, –जेथी शाश्वत सुखना उपायभूत अपूर्व सम्यग्दर्शन
प्रगट थाय.
हालमां मुख्यपणे आत्मानुं सर्वज्ञ स्वरूप अने दरेक पदार्थोमां क्रमबद्ध पर्याय ए बे विषयो खूब चर्चाय
छे, तेमज ते संबंधमां जुदे जुदे स्थळेथी अनेक प्रकारनी शंकाओ अने विरोध थाय छे. तेथी ते संबंधमां केटलुंक
स्पष्टीकरण अहीं करवामां आवे छे.
(१) वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप.
(२) अनंत धर्मात्मक वस्तुओने तेमना द्रव्य, अनंत गुणो तथा त्रिकालिक पर्यायो (जेमां अपेक्षित
धर्मो समाई जाय छे) ते सहित एक समयमां संपूर्णपणे जाणे एवो, दरेक जीवनो सर्वज्ञ स्वभाव.
(३) स्वभाव तरफना ज्ञान अने पुरुषार्थ सहित क्रमबद्ध पर्यायनी मान्यता.
(४) जैनधर्म अने
(प) अनेकांतवाद.
–उपरनी पांचे बाबतोना ज्ञानने अविनाभाव संबंध छे: जे जीवने आ विषयोमांथी एकनुं पण खरुं
ज्ञान होय तेने बीजा विषयोनुं खरुं ज्ञान न होय एम बनी शके नहीं. जो आ पांचमांथी कोई पण विषयनुं
ज्ञान भूलवाळुं होय तो तेनुं पांचे विषयो संबंधी ज्ञान खोटुं ज होय छे.
हवे उपरोक्त पांच बाबतोनो खुलासो करीने, तेमनुं अविनाभावीपणुं कई रीते छे ते अहीं विचारवामां आवे छे.
१. वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप
आ जगतमां जेटली वस्तुओ छे तेना जीव अने अजीव एवा बे भेद पडे छे. जो वस्तुने कोई पण रीते
पराश्रय छे एम मानवामां आवे तो तेनुं ‘छे’ पणुं –होवापणुं स्वाधीन रहेतुं नथी. वस्तु होय अने पराश्रय
मागे [अर्थात् परनी मददनी जरूर होय] तो तेने खरी रीते वस्तु कही शकाय नहीं. कोई पण वस्तुने पराश्रय
[परनी मदद] छे एम मानवुं ते, ते वस्तुने नहि मानवा बराबर छे.
जे पोताना गुण–पर्यायोमां वसे, अथवा जेमां पोताना गुण–पर्यायो वसे ते वस्तु छे. जे वस्तु होय ते
गुणपर्याय रहित होय नहीं. जो वस्तुमां पोताना गुणपर्याय वसे तो ज तेने वस्तु कहेवाय अने तो ज ते
पोतानुं प्रयोजनभूत कार्य करी शके. कोई वस्तुने के तेना गुण–पर्यायने पराश्रय [परनी सहाय] होई शके नहि.
आथी विरुद्ध वस्तुस्वरूप मानवुं ते मिथ्यात्व छे. कोई जीवो पोताना मिथ्याज्ञानथी वस्तुने, तेना गुणोने के तेना
पर्यायोने यथार्थ स्वरूपे न जाणे, अथवा तेमांथी कोईने पराश्रये [–परनी मददथी थतां] माने तो कांई वस्तुनुं
स्वरूप बदली जतुं नथी. वस्तुनुं स्वरूप तो कदी अन्यथा थाय नहि, पण जे जीव तेने यथार्थपणे न मानतां
अन्यथारूपे माने ते जीवनुं ज्ञान अज्ञानरूपे परिणमे छे. जीवने के अजीवने तेनी अवस्थामां पराश्रय [परनी
मदद] छे–एम अज्ञानपणामां ज जीव माने छे.
‘दरेक द्रव्य अनंत गुणोनो पिंड छे अने ते अनादिअनंत छे, तेथी ते तो स्वाश्रये होय, पण पर्याय तो
क्षणिक नवुं कार्य छे माटे तेमां परनो आश्रय [परनी सहाय] जोईए’ –एम केटलाक माने छे, ते मान्यता जूठी
छे; तेनो खुलासो–
(१) अनादि अनंत पर्यायनो पिंड ते द्रव्य छे. अने
(२) दरेक गुणना अनादि अनंत पर्यायनो पिंड ते गुण छे.
–जैन सिद्धांतदर्पण पृ. ३९ तथा प६
उपर प्रमाणे द्रव्य अने गुणनी व्याख्या होवाथी, द्रव्य–गुणने स्वतंत्र स्वाश्रित कबूल करतां अनादि
अनंत पर्यायोनी पण स्वतंत्रता ने स्वाश्रय सिद्ध थई जाय छे.
जीव अनादिथी परनो आश्रय [परनी मदद] मानीने पर लक्षे विकारी पर्याय करे छे–ए खरुं, पण तेथी
पर तेने कांई आश्रय आपे छे–एम बनतुं नथी; केमके जो तेने आश्रय आपे एवी परमां शक्ति होय तो तो
जीवनी पराश्रय होवानी मान्यताने मिथ्या कही शकाय नहीं. जीव पर्यायमां अनादिथी अज्ञानी छे अने तेथी ज
ते पराश्रय माने छे. पर तेने आश्रय आपतां नथी अने जीव पराश्रय होवानी मान्यता छोडतो नथी, तेथी ज
तेने मिथ्यात्व अने दुःख थाय छे.