Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २४: आत्मधर्म: ७४
जीव पराश्रय मानतो होवाथी ते क्यांक ने क्यांक पराश्रय शोध्या करे छे, पण पर तो तेने आश्रय
आपतुं नथी. आम होवाथी पराश्रय शोधनार जीव व्यग्र थया विना रहे नहि. श्री प्रवचनसारमां आ संबंधी
कहे छे के–
“...निश्चयथी परनी साथे आत्माने कारकपणानो संबंध नथी, के जेथी शुद्धात्मस्वभावनी प्राप्तिने माटे
सामग्री [बाह्य साधनो] शोधवानी व्यग्रताथी जीवो [नकामा] परतंत्र थाय छे.”
–गाथा १६ टीका, पृ. २२
वळी तेमां स्पष्टपणे कह्युं छे के अनादिनी अज्ञान दशामां पण जीव स्वतंत्रपणे विकार करतो अने ज्ञान
दशामां पण जीव स्वतंत्रपणे अविकारी दशा करे छे. [जुओ, श्री प्रवचनसार गा. १२२ तथा १२६ पृ. २११
तथा २१७–८]
श्री समयसार गा. १०२ नी टीकामां श्री ज्यसेनाचार्य ए मतलबे कहे छे के–चिदानंद एक स्वभाव वडे
आत्मानुं एकपणुं होवा छतां तेना बे भेद करीने जे शुभ के अशुभभावने आत्मा करे छे ते भावनो आत्मा
स्वतंत्रपणे कर्ता अने भोक्ता थाय छे.
–जुओ, हिंदी समयसार पृ. १६७
जीव अने अजीव बंने द्रव्यो पोतपोतानी विकारी तेमज अविकारी अवस्थामां पोताना छए कारकोरूपे
परिणमे छे, अने पर कारकोनी अपेक्षा विना तेओ पोतानी अवस्थाओ करे छे. [जुओ, श्री पंचास्तिकाय गा.
६२ पृ. ११४ संस्कृत टीका]
–आ बधा कथननो सार ए छे के एक द्रव्यना पर्यायमां बीजा द्रव्यनो पर्याय कांई पण करी शके नहि,
तेमां फेरफार करी शके नहि, तेने आघा–पाछा [अक्रमरूप] करी शके नहि. आवुं वस्तुस्वरूप होवा छतां
मोहभावने लीधे जीवने अनादिथी परनी कर्ताबुद्धि प्रवर्ते छे. कोई जीव, शास्त्रनो अभ्यास कर्या पछी कदाच
सीधी रीते एम न कहेतो होय के एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं करे छे. पण अंदरमां पडेली परनी कर्तृत्वबुद्धिना कारणे
ते एम माने छे के ‘भले, आपणे परना पर्यायने न करी शकीए, पण तेना निमित्त थई शकीए; माटे परना
निमित्त थवुं.’ ए रीते शास्त्र अभ्यासना बहाने पण अनादिथी चाली आवती कर्तृत्वबुद्धिने ज द्रढ करे छे.
‘परने आपणे निमित्त थईए’ एवा तेना कथन पाछळनो तेनो आशय विचारवामां आवे तो ते ए ज छे के
पोते निमित्त थवाना कारणे परना पर्यायमां कांईक फेरफार थई शकशे. आवो तेनो आशय होवाथी ते परद्रव्यना
दरेक समयना स्वतंत्र पर्यायने मानतो नथी. जो एना निमित्तथी परद्रव्यमां कांई फेरफार थतो होय तो, ए
निमित्त पोते निमित्त तरीके नथी रहेतुं, पण परद्रव्यनुं कर्ता थईने पोते तेनुं उपादान थई जाय छे, एम थतां
उपादान तेमज निमित्त ए बंनेना यथार्थ स्वरूपनो लोप थाय छे. –आम ते अज्ञानीओना ख्यालमां आवतुं
नथी. तेथी ज तेओ ‘निमित्त’ नी ओथे पोतानी ऊंधी मान्यताने पोषे छे.
दरेक द्रव्य–गुण–पर्याय स्वतंत्र छे, ते परनी जरा पण अपेक्षा राखता नथी. –आवुं ज स्वतंत्र यथार्थ
वस्तुस्वरूप छे. एवुं स्वतंत्र वस्तुस्वरूप सिद्ध थतां बाकीना चार विषयो पण तेमां अविनाभावपणे आवी
जाय छे ते हवे कहेवामां आवे छे.
२. जीवनुं सर्वज्ञपणुं
वस्तु छे एम नक्की थतां ते ज्ञेय छे एम पण नक्की थाय छे. वस्तु होय अने ते ज्ञेय [प्रमेय] न होय
एम बनी शके नहीं; केमके दरेक वस्तुओमां ‘प्रमेयत्व’ नामनो गुण छे तेथी द्रव्य–गुण पर्याय बधुंय ज्ञेय छे.
ज्ञेय होय तेने जाणनारुं ज्ञान पण अवश्य होय ज. जो ज्ञान ज्ञेयने न जाणे तो ज्ञाननुं ज्ञानत्व शुं? अने जो
ज्ञेय ज्ञानमां न जणाय तो ज्ञेयनुं ज्ञेयत्व शुं? जीवनी सर्वज्ञता वगर आवो ज्ञेय ज्ञायक संबंध सिद्ध थतो नथी.
ज्ञान पोताना पर्याय द्वारा जाणवानुं कार्य करे छे. जो ज्ञाननो पर्याय सर्व ज्ञेयोने जाणे तो ज आत्मानो
ज्ञानस्वभाव साबित थाय. वळी सर्व ज्ञेयोने जाणवामां ज्ञानने जो एक करतां वधारे समय लागे तो ते ज्ञाननी
अवस्था पूर्ण न कहेवाय. तेथी सर्वे द्रव्य–गुण–पर्यायो [तेमज अपेक्षित धर्मो सहित] सर्वे ज्ञेयोने एक समयमां
संपूर्णपणे जाणे ते ज ज्ञाननी पूर्ण अवस्था छे.
आत्मानुं ज्ञायक स्वरूप छे एटले के जाणवानो स्वभाव छे. जाणवाना स्वभावमां ‘न जाणवुं’ एवुं
जरापण आवी शके नहीं. बधां द्रव्यो, तेनां गुणो अने तेनां भूत–वर्तमान–भावि समस्त पर्यायो ज्ञेय छे.
भूतभावि पर्यायो वर्तमानमां जो के प्रगट वर्तता नथी,