Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४७६ : २५:
परंतु अनादि अनंत पर्यायोनो पिंड ते ज द्रव्य होवाथी, द्रव्यमां ज ते पर्यायो आवी जाय छे. द्रव्यार्थिकनये
भूत–भविष्यना पर्यायो द्रव्यमां त्रिकाल हयाती धरावे छे, तेथी संपूर्णपणे खीलेलुं ज्ञान तेमने न जाणे एम
बनी शके नहीं.
श्री प्रवचनसारना ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापनमां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे अने अमृतचंद्राचार्यदेवे आ विषय
घणी स्पष्ट रीते समजाव्यो छे. जुओ, गाथा–१प, १६, २१, २२, २६, २८, २९, ३१, ३२, ३प, ३७, ३८, ३९,
४७, ४८, ४९, प१, प४, प९, अने ६१.
बधा ज्ञेयो जेम होय तेम जाणे तो ज ज्ञान खरुं अने संपूर्ण कहेवाय. ज्ञेयो अनादिथी छे तेथी तेने
जाणनारुं ज्ञान पण अनादिथी छे एटले के सर्वज्ञ अनादिथी छे. वळी ज्ञेयो अनंतकाळ सुधी रहेवाना छे तेथी
तेने जाणनारा सर्वज्ञो पण अनंतकाळ होय ज. ए रीते आत्मामां सर्वज्ञ थवानुं सामर्थ्य छे. तो ते सामर्थ्यने
जाणीने पूर्णज्ञानना साधको पण आ जगतमां अनादि अनंत होय छे; अने तेनो विरोध करनार अज्ञानीओ
पण जगतमां अनादि अनंत छे. ए रीते आ जगतमां आत्मानी सर्वज्ञतानो विरोध करनारा अज्ञानीओ,
सर्वज्ञताने साधनारा ज्ञानीओ अने सर्वज्ञता प्राप्त करनारा सर्वज्ञो–ए त्रणे प्रकारना जीवो [–अर्थात्
बहिरात्मा, अंतरात्मा अने परमात्मा] सदाय होय ज छे.
शास्त्रोनो अभ्यास करवा छतां केटलाक लोकोने सर्वज्ञनी श्रद्धा थती नथी अने पोतानी ऊंधी मान्यताथी कहे छे के–
(१) आ जगतमां कोई जीव सर्वज्ञ होई शके नहीं.
(२) सर्वज्ञदेव भविष्यना पर्यायोने वर्तमानमां जाणी शके नहि, पण ज्यारे ते पर्याय थाय त्यारे तेने जाणे.
(३) सर्वज्ञदेव परने जाणे छे ए कथन व्यवहारनये छे अने व्यवहार नय तो अभूतार्थ छे, माटे
सर्वज्ञदेव परने जाणता ज नथी.
(४) सर्वज्ञदेव वस्तुना अपेक्षित धर्मोने जाणे नहि.
उपर्युक्त चारे प्रकारनी मान्यताओ मिथ्या छे. तेनो खुला सो नीचे प्रमाणे छे–
(१) आ जगतमां कोई जीव सर्वज्ञ होई शके नहि–एम माननार जीव, आत्मानी सर्वज्ञ शक्तिनो नकार करे छे.
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव समयसारमां कहे छे के
सो सव्वणाणदरिसी कम्मरएण णियेणवच्छण्णो।
संसारसमावण्णो ण विजाणदि सव्वदो सव्वं।। १६०।।
ते सर्वज्ञानी दर्शी पण निज कर्म रज आच्छादने, संसारप्राप्त न जाणतो ते सर्व रीते सर्वने. १६०
ते गाथानी टीकामां आचार्यदेव कहे छे के “जे पोते ज ज्ञान होवाने लीधे विश्वने सामान्य–विशेषपणे
जाणवाना स्वभाववाळुं छे एवुं ज्ञान अर्थात् आत्मद्रव्य, ×××× सर्व प्रकारे सर्व ज्ञेयोने जाणनारा एवा पोताने
नहि जाणतुं थकुं...अज्ञानभावे परिणमे छे.
वळी आत्मानी सर्वज्ञत्व शक्तिनी व्याख्या करतां परिशिष्टमां श्रीअमृतचंद्रसूरि कहे छे के–
‘समस्त विश्वना विशेष भावोने जाणवारूपे परिणमेला एवा आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञ शक्ति’ आ शक्ति
बधा आत्मामां छे.
आथी जेओ सर्वज्ञने मानता नथी तेओ आत्माना ज्ञान स्वभावने ज मानता नथी एटले के खरेखर
आत्माने ज मानता नथी.
(२) सर्वज्ञदेव भविष्यना पर्यायोने पण वर्तमान पर्यायोनी जेम ज प्रत्यक्ष वर्तमानमां जाणे छे. आ
संबंधमां प्रवचनसारना ज्ञान अधिकारनी गाथाओ पूर्वे जणावी छे, ते उपरांत प्रवचनसारनी २०० मी
गाथामां कहे छे के
“हवे एक ज्ञायकभावनो सर्व ज्ञेयोने जाणवानो स्वभाव होवाथी क्रमे प्रवर्ततां, अनंत भूत–वर्तमानभावि
विचित्र पर्यायसमूहवाळां, अगाध स्वभाव अने गंभीर एवा समस्त द्रव्य मात्रने–जाणे के ते द्रव्यो ज्ञायकमां
कोतराई गयां होय, चीतराई गयां होय, दटाई गयां होय, खोडाई गयां होय, डूबी गयां होय, समाई गयां होय,
प्रतिबिंबित थयां होय एम–एक क्षणमां ज जे (शुद्ध आत्मा) प्रत्यक्ष करे छे×××” (गुज. पृ. ३२प)
आथी सिद्ध थाय छे के सर्वज्ञदेव एक समयमां त्रणकाळना समस्त पर्यायोने प्रत्यक्ष जाणे छे.
(३) ‘सर्वज्ञदेव परने जाणे ए कथन व्यवहारनये छे, अने व्यवहारनय तो अभूतार्थ छे, माटे सर्वज्ञदेव
परने जाणता ज नथी’ ––आ मान्यता पण खोटी छे. व्यवहार अनेक प्रकारनो छे. ‘परने जाणवुं’ तेने अहीं
व्यवहार कह्यो छे, परंतु ‘परने जाणवानी ज्ञाननी शक्ति’ ते कांई व्यवहारे नथी. परने जाणवानुं सर्वज्ञनुं ज्ञान