Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
पोष संपादक वर्ष सातमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२४७६ वकील अंक त्रीजो
दुर्लभ मनुष्यभवमां पण जीव जो पोताना
स्वभावने जाणीने तेनो आदर नहि करे तो
पछी फरीथी क्यारे एवो अवसर मळ–
वानो छे? पोतानो जेवो पूरो
स्वभाव छे तेवो ओळखीने
तेनो ज आदर करवो–
श्रद्धा करवी ते ज
आ मनुष्यपणामां
जीवनुं
कर्तव्य
छे.
– नियमसार उपरना प्रवचनोमांथी–
छुटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडिया : काठियावाड