मांस, दारु, तथा परस्त्रीसेवन वगेरे आकरां पाप करे छे ते नरकमां जाय छे. त्यां महा दुःख छे.
मटतो नथी, माटे एवो नियम थयो के आत्मानी ईच्छा परचीजमां काम करती नथी. अने ते ईच्छा नवी नवी
थाय छे, माटे ते आत्मानुं कायमी स्वरूप नथी. देहनी स्थिति पूरी थतां तेने राखवा कोई समर्थ नथी. माटे देहथी
भिन्न अने ईच्छारहित आत्मानुं स्वरूप छे; ते कायम टकीने क्षणे क्षणे तेनी अवस्था बदल्या करे छे, एवो तेनो
स्वभाव छे. एवा स्वभावनी ओळखाणथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे. ए सिवाय शरीरनी क्रियाथी के पुण्यथी
धर्मनी शरूआत थती नथी.
त्रिकाळी स्वभावनुं वेदन थाय एवो तारो स्वभाव छे. आत्मामां अनित्यस्वभाव कायम छे, विकारी पर्याय
सदाय रहेती नथी माटे ते खरेखर आत्मानो अनित्यस्वभाव नथी, पण क्षणे क्षणे छे जाणवानी पर्याय थया करे
छे ते ज आत्मानो अनित्यस्वभाव छे; नवी नवी ज्ञान पर्यायो सदाय थया ज करे छे, –एवो आत्मानो
अनित्य स्वभाव छे.
अंदरनी जे ऊंडप अने गंभीरता छे तेने ओळखता नथी. काठे ऊभा ऊभा जुए ने क्षणिक राग–द्वेष जेटलो
आत्मा माने तो आत्मानी ऊंडपनुं माप आवे नहि. पण अंदर परमात्मशक्ति छे, तेने ओळखीने तेनो विश्वास
करे तो आत्मानो महिमा समजाय. ओछुं ज्ञान छे ने राग–द्वेष छे ते तो कांठो छे, अंदरमां तो परमात्मशक्ति
भरी छे. शरीर हुं नहि, पुण्य–पाप–क्रोधादि हुं नहि, अल्पज्ञ हुं नहि. मारा स्वभावमां परिपूर्ण ज्ञानशक्ति भरी
छे, एवो पोतानी प्रभुतानो विश्वास ते ज परमात्मा थवानी कळा छे. ए समजवा माटे अंदरमां धगश थवी
जोईए के अरेरे! मारुं शुं थशे? हुं क्यां जईश? आ तो बधुं अहीं पड्युं रहेशे, पण हुं अहींथी क्यां जईश?
मारे तो आत्मा समजवो छे. –एम अंतरमां धगश करीने सत्समागम करे तो आवो आत्मा समजाय, ने जन्म–
मरण टळे. आ आत्मा तो बाळ–गोपाळ बधाने समजाय तेवो छे. खेडूतना आत्माने पण समजाय तेवी वात
छे. बधा आत्मा भगवान छे, पण पोते कोण छे तेनी खबर नथी एटले बीजे अभिमान करीने सुख माने छे.
पोतानो पूर्णस्वभाव छे तेना लक्षे ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
प्रभुताने भूलीने निरांते ऊंघे छे, पण पोतानी प्रभुताने समजवानी दरकार करतो नथी. पोताना आत्मानी
प्रभुतानी ओळखाण करवी तेने धर्म कहेवाय छे.