Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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पोष: २४७६ : ५९:
–पाप करीने अनंतवार स्वर्गमां ने नरकमां गयो, ढोर ने मनुष्य पण थयो. नरकगति नीचे छे. जे शिकार,
मांस, दारु, तथा परस्त्रीसेवन वगेरे आकरां पाप करे छे ते नरकमां जाय छे. त्यां महा दुःख छे.
अनंतकाळमां आ चैतन्यतत्त्वनी समजण दुर्लभ छे. ते माटे अंतरमां ऊंडो विचार जोईए. अंतरद्रष्टिथी
एक सेकंड पण आत्माने जाण्यो नथी. आत्मा केवो छे तेनुं आ वर्णन चाले छे.
आत्मा नित्य छे अने अनित्य पण छे. आत्मद्रव्य कायम टकनार छे, आ शरीर तो नाशवान छे.
शरीरमां रोग थाय छे, तेने जीव मटाडी शकतो नथी. ‘आ रोग झट मटी जाय’ एवी ईच्छा थवा छतां रोग
मटतो नथी, माटे एवो नियम थयो के आत्मानी ईच्छा परचीजमां काम करती नथी. अने ते ईच्छा नवी नवी
थाय छे, माटे ते आत्मानुं कायमी स्वरूप नथी. देहनी स्थिति पूरी थतां तेने राखवा कोई समर्थ नथी. माटे देहथी
भिन्न अने ईच्छारहित आत्मानुं स्वरूप छे; ते कायम टकीने क्षणे क्षणे तेनी अवस्था बदल्या करे छे, एवो तेनो
स्वभाव छे. एवा स्वभावनी ओळखाणथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे. ए सिवाय शरीरनी क्रियाथी के पुण्यथी
धर्मनी शरूआत थती नथी.
आ आत्मा कायम रहीने पलटया करे छे. आत्मानी विकारीदशा ते संसार छे अने आत्मानी निर्मळदशा
ते मोक्ष छे. शरीर तो संयोगी छे, ते तारो स्वभाव नथी, ने क्षणिक विकार पण तारो स्वभाव नथी, पण
त्रिकाळी स्वभावनुं वेदन थाय एवो तारो स्वभाव छे. आत्मामां अनित्यस्वभाव कायम छे, विकारी पर्याय
सदाय रहेती नथी माटे ते खरेखर आत्मानो अनित्यस्वभाव नथी, पण क्षणे क्षणे छे जाणवानी पर्याय थया करे
छे ते ज आत्मानो अनित्यस्वभाव छे; नवी नवी ज्ञान पर्यायो सदाय थया ज करे छे, –एवो आत्मानो
अनित्य स्वभाव छे.
आ वात श्रवण–करीने अंतरमां तेनुं मंथन करवुं जोईए. जेम दरियो उपरथी सरखो लागे पण अंदर
घणो ऊंडो छे, कांठे ऊभा ऊभा तेनी ऊंडाईनुं माप आवे नहि. तेम केटलाकने आत्मानी वात काने पडे छे, पण
अंदरनी जे ऊंडप अने गंभीरता छे तेने ओळखता नथी. काठे ऊभा ऊभा जुए ने क्षणिक राग–द्वेष जेटलो
आत्मा माने तो आत्मानी ऊंडपनुं माप आवे नहि. पण अंदर परमात्मशक्ति छे, तेने ओळखीने तेनो विश्वास
करे तो आत्मानो महिमा समजाय. ओछुं ज्ञान छे ने राग–द्वेष छे ते तो कांठो छे, अंदरमां तो परमात्मशक्ति
भरी छे. शरीर हुं नहि, पुण्य–पाप–क्रोधादि हुं नहि, अल्पज्ञ हुं नहि. मारा स्वभावमां परिपूर्ण ज्ञानशक्ति भरी
छे, एवो पोतानी प्रभुतानो विश्वास ते ज परमात्मा थवानी कळा छे. ए समजवा माटे अंदरमां धगश थवी
जोईए के अरेरे! मारुं शुं थशे? हुं क्यां जईश? आ तो बधुं अहीं पड्युं रहेशे, पण हुं अहींथी क्यां जईश?
मारे तो आत्मा समजवो छे. –एम अंतरमां धगश करीने सत्समागम करे तो आवो आत्मा समजाय, ने जन्म–
मरण टळे. आ आत्मा तो बाळ–गोपाळ बधाने समजाय तेवो छे. खेडूतना आत्माने पण समजाय तेवी वात
छे. बधा आत्मा भगवान छे, पण पोते कोण छे तेनी खबर नथी एटले बीजे अभिमान करीने सुख माने छे.
शरीरथी जुदो पोते केवो छे तेनी खबर नथी तेथी तेनुं अभिमान करे छे ने तेमां सुख माने छे. जो
शरीरथी जुदो आत्मा छे तेने यथार्थपणे जाणे तो शरीरनुं अभिमान टळी जाय, ने धर्मनी शरूआत थाय.
तेम पाप वगरनो पोते केवो छे ते जाणतो नथी तेथी पापकार्योमां–विषयोमां सुख माने छे ने तेनो
अहंकार करे छे, जो पापरहित आत्मस्वभावने ओळखे तो ते अभिमान टळी जाय.
वळी पुण्य वगरनो पोते केवो छे ते जाणतो नथी, तेथी पुण्यनां अभिमान करीने तेमां सुख माने छे,
पण आत्मा पुण्य वगरनो पूरो ज्ञानस्वरूप छे, तेने ओळखे तो पुण्यनां अभिमान ऊडी जाय.
अने पोतानुं पूरुं ज्ञानस्वरूप छे तेने ओळखतो नथी तेथी ओछा ज्ञाननुं अभिमान करीने अटके छे, जो
पोताना पूरा ज्ञानस्वरूपने जाणे तो ओछानुं अभिमान टळी जाय. ए रीते पूर्णताना लक्षे शरूआत थाय छे.
पोतानो पूर्णस्वभाव छे तेना लक्षे ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
एक बाळक रात्रे घरे मोडो आवे तो पोताने सरखी ऊंघ आवती नथी ने गोतागोत करे छे, पण आत्मा
पोते प्रभु छे, तेने भूली गयो छे, पोते खोवाई गयो छे तेने कदी गोतवानी दरकार करतो नथी. पोतानी
प्रभुताने भूलीने निरांते ऊंघे छे, पण पोतानी प्रभुताने समजवानी दरकार करतो नथी. पोताना आत्मानी
प्रभुतानी ओळखाण करवी तेने धर्म कहेवाय छे.