Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ५८: आत्मधर्म: ७५
आत्मानी प्रभुता
[उमराळामां परमपूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन: माह सुद १]
[पद्मनंदी गाथा – २]

आत्मा चिदानंद ज्ञानस्वरूपी तत्त्व छे, ते देहथी छूटुं तत्त्व छे; परंतु अनंतकाळथी एक सेकंडमात्र पण
आत्मानी संभाळ करी नथी. आ शरीर तो माटी छे, ते आत्मा नथी; आत्मा जाणनार छे, ते शरीरने जाणे छे,
ने शरीर जणाय छे. पण शरीरमां जाणवानो स्वभाव नथी. छेल्लामां छेल्लो रजकण ते परमाणु छे, तेना बे
भाग थाय नहि, ज्ञानथी पण जेना बे भाग थई शके नहि तेवो परमाणु छे, ते अजीव छे, जड छे, तेने कांई
खबर पडती नथी, एवा रजकणोनुं बनेलुं आ शरीर छे, तेने कांई खबर पडती नथी, ते कांई जाणतुं नथी, पण
आत्मा बधाने जाणे छे. जाणनार आत्मा शरीरथी जुदो छे; जीवोए अनंतकाळमां कदी एक सेंकडमात्र तेने
जाण्यो नथी.
आत्मा शरीरथी तो जुदो छे, अने ज्ञान क्यांक परना विचारमां रोकाई जतां जे पुण्य–पाप के राग–द्वेष
थाय ते पण आत्मानुं स्वरूप नथी, ते तो क्षणिक लागणीओ छे, उपाधिभाव छे, जीव अनंतकाळथी क्षणेक्षणे
तेवा भावो उत्पन्न करतो आवे छे ने ते भावोने ज पोतानुं स्वरूप माने छे, तेथी ते संसारमां रखडे छे.
आ शरीर ज आत्मानुं नथी, तो पछी शरीरने ओळखनारा एवा स्त्री–पुत्र वगेरे तो आत्माना क्यांथी
होय? ते तो बधा कृत्रिम संयोगी छे, ने आत्मा तो नित्य सच्चिदानंद सनातन स्वभावी छे. ते तो सदाय छे–छे
ने छे. जेने कल्याण करवुं होय तेणे सत्समागम शोधीने आवा आत्माने समजवो जोईए. ए सिवाय बीजा कोई
क्रियाकांड के कर्मकान्ड ते कल्याणनो उपाय नथी. धर्मनी शरूआत आत्मानो भरोसो करवाथी थाय छे. आत्माना
भरोसा वगर कदी धर्मनी शरूआत थती नथी.
जेम बीज ऊगे ते वधीने पूर्णिमा थाय ज, तेम आत्माना साचा ज्ञानरूपी चंद्र जेने प्रगट्यो तेने पूर्ण
परमात्मदशा थाय ज. अज्ञानी शरीरनी क्रियाना आश्रये धर्म करवा मागे छे, पण शरीर ज आत्माथी पर छे,
तेनाथी धर्म थतो नथी. जेम लींडीपीपरनी तीखाश अंदर हती ते ज प्रगटी छे, उपरथी ते तीखाश न देखाय,
पण तेने जाणीने घसे तो ते प्रगटे छे. ते तीखाश पत्थरमांथी आवी नथी पण लींडीपीपरमां ज हती तेमांथी ते
प्रगटी छे. तेम–आत्मामां वर्तमानदशामां अल्पज्ञान देखाय छे पण अंदर परिपूर्ण ज्ञानसामर्थ्य भर्युं छे, तेनामां
केवळज्ञान प्रगटीने सर्वज्ञ थवानी ताकात छे, तेनो विश्वास करीने तेमां एकाग्र थाय तो केवळज्ञान प्रगट थाय
छे: प्रगटमां अल्पज्ञान होवा छतां अंतरमां सर्वज्ञपद प्रगटवानी ताकात भरी छे, एने ओळखीने तेमां ठरे तो
राग–द्वेष टळी जाय, ने एटलो आनंद रही जाय, पूरुं ज्ञान रही जाय–एनुं नाम मुक्ति छे. पहेलांं एवा
आत्मानी ओळखाण करवी जोईए.
जेम ढेलना नाना इंडामां मोटो मोर थवानी ताकात पडी छे, तेम आत्मामां ओछुं ज्ञान होवा छतां तेनामां
सर्वज्ञ थवानी ताकात पडी छे. सर्वज्ञदेव कहे छे– ‘हे जीव! तुं पण तारी सर्वज्ञशक्तिथी पूरो छे. तारी मुक्ति
मारी पासे नथी, में तने रखडाव्यो नथी, ने हुं तने मुक्त करतो नथी.’ आवा पोताना अंतरस्वभावनो विश्वास
करवो ते ज धर्मनी शरूआत करवानी रीत छे. अनंतकाळे आत्मानी प्रभुताने एक सेकंडमात्र रुचिथी सांभळी
नथी. धर्मनी शरूआत केम थाय ते ज लोको जाणता नथी प्रभो, तें तारा चैतन्यनी प्रभुताने एक सेकंड पण
जाणी नथी. हालरडामां पण माता कहे के ‘मारो दीकरो डाह्यो.’ एम जो तने डाह्यो कहे तो ज ऊंघ आवे छे,
गांडो कहे तो ऊंघ पण आवती नथी. हालरडामां पण तने डाह्यो एटले के ज्ञानवाळो छे–एम शीखवे छे. तेम
भगवाननी वाणीमां तारां हालरडां गवाय छे के भाई, तुं पूरो केवळज्ञानस्वरूपी डाह्यो छे, ने तेनी श्रद्धारूपी
पाटले बेसीने नाह्यो एटले के निर्मळ थयो. भाई, एकवार शरीरनुं लक्ष मूकी दे, पुण्य–पाप जेटलो पण तुं नथी,
तारामां पूर्ण प्रभुता छे, तेनो विश्वास कर. एनो विश्वास कर्या वगर पुण्य