Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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ब्रह्मचर्य – प्रतिज्ञा
परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री सोनगढ
तरफथी विहार करीने कारतक वद १४,
शनिवारे उमराळा पधार्या हता. त्यां पू.
गुरुदेवश्रीए चार दिवस स्थिरता करीने
तेमनी अपूर्व अध्यात्म वाणीनो लाभ
आप्यो हतो. (कारतक वद ०)) रविवार,
व्या ख्यान बाद भाई मोहनलाल नानचंद
उमर वर्ष ६१; तथा तेमना धर्मपत्नी
मणिबेन, उंमर वर्ष प३, –बंनेए सजोडे पू.
गुरुदेवश्री सन्मुख ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर्युं
छे; ए शुभकार्य माटे तेमने धन्यवाद.
– प्रभुता –
अहो! आत्मानो पोतानो स्वभाव ज प्रभु
छे, महिमावाळो छे. जीवे पोताना स्वभावनी
प्रभुता कदी होंशथी सांभळी नथी अने
स्वीकारी नथी. जो ज्ञानीओ पासेथी
सांभळीने एकवार पण पोतानी प्रभुतानो
महिमा ओळखे तो पोते प्रभु थया वगर रहे
ज नहि.
नियमसार–प्रवचनो
पोष: २४७६ : ५७:
जेम पाणी ऊनुं थयुं त्यारे पण तेनो ठंडो स्वभाव छे, पाणीनो ठंडो स्वभाव ईन्द्रियोथी जणातो नथी,
आंखथी देखाय नहि, अंदर ऊंडो हाथ नांखे तो जणाय नहि, पण ज्ञानमां एम नक्की करे के आ पदार्थ पाणी
छे, अग्नि नथी; पाणीनो स्वभाव तो ठंडो होय. एम पदार्थना स्वभावने ज्ञानथी ज नक्की करी शकाय छे,
ईन्द्रियोथी नक्की थतो नथी; तेम आत्मानो स्वभाव अतींद्रियज्ञानथी जणाय तेवो छे. कोई ईन्द्रियथी, रागथी,
देहनी क्रियाथी, भगवाननी भक्तिथी के मनना तर्कथी ते स्वभाव जणाय तेवो नथी. पण ज्ञान वडे ज ते जणाय
छे. जेम कोई मूढबुद्धि पुरुष हाथमां राखेल सोनाने भूलीने बहार वनमां शोधे, तेम अंतरना स्वभावने भूलीने
जगत बहारमां ज्ञान–दर्शन–चारित्रने शोधे छे. ते मूढबुद्धि छे. सत्समागमे श्रवण करीने अंतरमां शोधे तो मळे
तेम छे. मात्र श्रद्धानो अभिप्राय फेरववानो छे. जो मूठीमां राखेलुं सोनुं बहार वनमां शोध्ये मळे तो अंतरनुं
चैतन्यतत्त्व बहारना अवलंबने प्रगटे! एक सेकंड पण जो स्वावलंबी चैतन्यतत्त्वने माने तो सद्बोधचंद्रनी
कणिका प्रगटी, तेमांथी केवळज्ञान थया विना रहे नहि. पहेलांं पुण्य–पाप रहित शुद्ध तत्त्वनुं भान अने विश्वास
थाय, पण एवुं भान थतां तरत ज बधा पुण्य–पाप टळी न जाय. शुद्ध स्वभावनुं भान थवा छतां क्रोध होय,
मान होय, माया होय, लोभ होय. पण अंदरनो विवेक खसे नहि. जेम कोईने भाषा केम बोलवी जोईए तेनुं
भान होय छतां बोबडापणुं चालु रहे. पण बोबडापणुं होवा छतां तेने भाषा केम बोलवी तेनुं ज्ञान छे ते