Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म: ७५
आत्मानी शांति क्यां छे?
(श्री पद्मनंदी–सद्बोधचंद्रोदय अधिकार गाथा ९मी उपर परम पूज्य गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान: माह वद ९ बोटाद.)

जेने आत्मानो धर्म प्रगट करवो छे तेने ते क्यां शोधवो? धर्म एटले आत्मानी शांति, ते क्यांथी प्रगट
थाय तेम छे? शरीरनी क्रियामांथी आत्मशांति नहि प्रगटे. देव–गुरु–शास्त्र पासेथी आत्मशांति नहि मळे; केमके
ते बधाथी आत्मा जुदो छे. जेम आंगळी छे ते लाकडारूपे नथी तेम आत्मा पोताना स्वरूपे छे ने परथी जुदो
छे, परवस्तुनी आत्मामां नास्ति छे, तेथी तेमांथी तो आत्मानी शांति आवे नहि. हवे परना लक्षे पोतामां जे
शुभाशुभवृत्ति थाय तेमां पण शांति नथी. आत्मानो पोतानो स्वभाव दर्शन–ज्ञान–चारित्रमय छे, ते
स्वभावमां शांति छे. ते स्वभावने ओळखीने तेमां ठरे तो शांति प्रगटे छे. ए सिवाय बहारथी शांति प्रगटती
नथी. पैसा खरच्ये के भगवाननी भक्ति कर्ये शांति मळती नथी. परनी सहायथी जे शांति माने छे ते पोताने
भूलीने बहारमां शांति शोधे छे. जेम चकमकमां अग्नि थवानी ताकात छे, इंडामां मोर थवानी ताकात छे, तेम
आत्मामां परिपूर्ण शांति प्रगट करीने परमात्मा थवानी ताकात छे. एने बदले बहारथी कोई शांति शोधे तो ते
अज्ञानी छे. जेम कोई पुरुष हाथनी मूठीमां राखेलुं सोनुं भूलीने बहारमां शोधतो होय, तेम अज्ञानी जीव
पोतामां परमात्मा थवानी अने ज्ञान–दर्शननी पूरी ताकात छे तेने भूलीने बहारमां शोधे छे.. पण आत्माना
ज्ञान–दर्शन–आनंद क्यांय बहारथी आवता नथी. आत्मामां पुण्य–पाप विकारने पोतानां मानवा ते ज संसार
छे, ने ए विकाररहित ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वभाव छे, तेनो विश्वास करवो ते मुक्तिनो उपाय छे.
आत्मा पोताना ज्ञान–दर्शन–आनंद स्वभावथी परिपूर्ण छे, ने परथी जुदो छे. जो आत्मा परस्वरूपे
पण होय तो ते पर साथे एकमेक थई जाय, अने जेम परथी आत्मा नथी तेम जो पोताना स्वभावथी पण न
होय तो आत्मानो अभाव थई जाय. माटे एवो स्याद्वाद छे के आत्मा पोताना स्वभावथी छे ने परना
स्वभावथी आत्मा नथी. आवो आत्मस्वभाव समज्या वगर धर्म थाय नहि. लक्ष्मी खरचे तेथी कांई धर्म तो
थतो नथी, पण लक्ष्मी खरचवाथी पुण्य पण नथी, तेमज लक्ष्मीथी पाप पण नथी. लक्ष्मी प्रत्येनी ममता
घटाडीने शुभभाव करे तो पुण्य छे, लक्ष्मी खरचवामां जो मानभाव होय तो पाप छे. लक्ष्मी खरचवाथी जो धर्म
थतो होय तो तो लक्ष्मी वगरना गरीबने धर्म ज न थई शके. आत्मामां तो लक्ष्मीनो अभाव छे, तो लक्ष्मीथी
आत्मामां कांई पण थाय नहि.
भाई! तारे आत्मानी शांति शोधवी छे के नहि? आत्मानी शांति तारामां ज भरी छे. जेम कस्तूरीया
मृगनी डूटीमां कस्तूरी छे पण अज्ञानपणे बहार दोडे छे, तेम आत्मानी शांति पोतामां भरी छे पण विश्वास
बेसतो नथी तेथी बहार भमे छे. चैतन्यतत्त्व त्रिकाळी छे, तेनी अवस्था क्षणे क्षणे पलटे छे, पहेलांं ओछुं ज्ञान
होय ने पछी वधारे ज्ञान खीले छे, तो ते वधारे ज्ञान क्यांथी आव्युं? अंदरमां जो परिपूर्ण ज्ञानशक्ति न भरी
होय तो वधारे ज्ञान प्रगट थाय नहि. अंदर जे पूर्ण ज्ञानशक्ति भरी छे तेमांथी ज्ञान प्रगट थाय छे. बहारमांथी
आवतुं नथी.
कषाई गायो कापे ने पैसा मळे, त्यां तेने गायो कापवाना फळमां पैसा नथी मळ्‌या, पण पूर्वना
प्रारब्धना फळमां मळ्‌या छे. पूर्वे अज्ञानभावे कांईक मंद कषाय करेल तेना फळमां पैसा मळ्‌या छे, वर्तमान
पापभाव छे तेना फळमां पैसा नथी मळ्‌या. तेना फळमां तो नरक मळशे. डोकटर पणुं, वकीलात वगेरेमां ज्ञाननो
जे विकास देखाय छे ते वर्तमान डहापणनुं फळ नथी पण पूर्वना मंद कषायथी ज्ञाननो उघाड देखाय छे.
वर्तमानमां देडका कापवानो के पैसा रळवानो भाव छे ते तो पाप छे तेनाथी वर्तमान कळा खीलती नथी. पूर्वना
प्रारब्धमां मळेला पैसामां आत्मशांति नथी, जे वर्तमानमां बाह्यलक्षे कळा खीली तेमां आत्मशांति नथी.
वर्तमान परलक्षे जे शुभ के अशुभ लागणी थाय तेमां य आत्मशांति नथी. पण अंदरमां ज्ञान अने
शांतिस्वभावथी भरेल त्रिकाल तत्त्व छे तेमांथी शांति आवे छे.