Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
महा संपादक वर्ष सातमुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२००६ वकील अंक चोथो
भेदविज्ञानो महिमा
एक मात्र भेदविज्ञान सिवाय जीव अनंतकाळमां बधुं करी चूक्यो
छे, पण भेदविज्ञान करी एक सेकंड मात्र पण प्रगट कर्युं नथी. एक सेंकड
मात्रनुं भेदविज्ञान अनंत जन्म मरणनो नाश करनार छे. जेम डुंगर
उपर वीजळी पडे अने तेना सेकंडो कटका थई जाय, ते फरीथी रेण दीधे
संधाय नहि, तेम एकवार पण जीव जो भेदविज्ञान प्रगट करे तो तेनी
मुक्ति थाय अने तेने फरीथी अवतार रहे नहि. माटे ते भेदविज्ञान
निरंतर भाववा योग्य छे.
भेदविज्ञान प्रगट करवानी तैयारीवाळा जीवने देशनालब्धि
अवश्य होय छे. सत्समागम वगर मात्र शास्त्रना अभ्यासथी ए
देशनालब्धि थई शकती नथी. कोई आत्मानुभवी पुरुष पासेथी
धर्मदेशनानुं सीधुं श्रवण कर्या वगर कोई पण जीव शास्त्र वांचीने
भेदविज्ञान प्रगट करी शके नहि; माटे जे आत्मार्थीने अति महिमावंत
भेदविज्ञान प्रगट करीने आ संसार–दुःखोथी परिमुक्त थवुं होय तेणे
सत्समागमे उपदेशनुं श्रवण करीने तत्त्वनो निर्णय करवो जोईए.
भेदविज्ञान ते ज आ जगतमां सारभूत छे. भेदविज्ञान वगरनुं जे कांई
छे ते बधुं असार छे. माटे आत्मार्थि जीवोए पळे पळे ए भेदविज्ञाननी
भावना करवा योग्य छे.
–भेदविज्ञानसार.
छूटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटा आंकडिया : काठियावाड