Atmadharma magazine - Ank 077
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
स्वभाव छे; माटे हे प्रभाकर भट्ट! तुं मिथ्यात्वादि शल्य–रहित थईने तारा आत्माने परमात्मा जाण! मुख्यपणे
प्रभाकरभट्टने संबोधीने ते वखते योगीन्द्रदेवे आ शास्त्र रच्युं छे, परंतु सर्व आत्मार्थी श्रोताओने ते लागु पडे छे.
आ आत्माने ते परमात्मानुं ज ध्यान करवुं योग्य छे, एटले के खरेखर परमात्मा जेवो पोतानो ज
आत्मस्वभाव छे तेनुं ध्यान करवुं योग्य छे, ध्यान एटले एकाग्रता. पुण्य–पापमां एकाग्रता करवी ते
आर्त्तध्यान छे, अने परमात्मा एटले रागादि रहित ज्ञानस्वभाव; ते ज्ञानस्वभावमां एकाग्रता ते ज धर्मध्यान
छे. आत्मानुं स्वरूप ज्ञान छे, ते ज्ञाननी मर्यादामां पुण्य–पाप नथी; एम ज्ञानस्वभावने ओळखीने तेमां ज
एकाग्रता करवा जेवी छे. साधकने पुण्य–पाप थाय खरा पण तेमां एकाग्रता करवा जेवी नथी.
ए रीते, प्रभाकरभट्ट शिष्ये परमात्मस्वरूप समजाववानी श्रीगुरु प्रत्ये जे विनंति करी हती तेना
उत्तरमां श्रीगुरुए कृपा करीने अंतरात्मा, बहिरात्मा ने परमात्मानुं स्वरूप समजाव्युं. तथा तेमां परमात्मापणुं
आदरणीय छे तेम बताव्युं, अने ए परमात्मा जेवो ज पोतानो शुद्ध निरंजन ज्ञानमय स्वभाव त्रिकाळ छे तेनी
ओळखाण करावी.
।।१५।।
(१२६) परमात्माना ध्याननो उपदेश
हवे श्रीयोगीन्द्रदेव परमात्मानुं स्वरूप वर्णवीने शिष्यने कहे छे के एवा परमात्मानुं तुं ध्यान कर!
गाथा –१६
तिहुयण वंदिउ सिद्धिगउ हरिहर ज्ञायहिं जो जि।
लक्खु आलक्खें धरिवि थिरु मुणि परमप्पउ सो जि।। १६।।
भावार्थ :– ईन्द्र, नारायण, शंकर वगेरे मोटा पुरुषो पण जेनुं ध्यान करे छे अने जे त्रणलोकथी वंदित
छे तथा केवळज्ञानादि व्यक्तिरूप सिद्धपणाने प्राप्त छे तेमने तुं परमात्मा जाण; अने तुं तारा ज्ञानने वीतराग
निर्विकल्प नित्यानंद स्वभावमां स्थिर करीने ते परमात्मानुं चिंतवन कर.
आत्मानी शक्ति त्रिकाळ शुद्ध परिपूर्ण छे ते शक्तिमां एकाग्रतावडे दर्शनशुद्धि ने चारित्रनी शुद्धि करीने पूर्ण
सिद्धदशा जेमणे प्रगट करी, तेवा सिद्ध परमात्माने ईन्द्रो–चक्रवर्तीओ वगेरे ध्यावे छे. माटे हे प्रभाकरभट्ट, ते
सिद्धपणाने प्राप्त परमात्मस्वभाव ज ध्यान करवा योग्य छे, तुं तेनुं ध्यान कर! कई रीते ध्यान करवुं ते कहे छे.
(१२७) सिद्ध भगवाननुं ज्ञान अने ध्यान क्यारे थई शके?
विकल्पथी के रागथी परमात्मानो विचार करवो ते तो पुण्य छे. पण पोताना स्वभावने सिद्धपरमात्मा
समान जाणीने, पोताना शुद्धात्मरूपने ज वीतराग निर्विकल्प ध्यानमां ध्याव. तने तारो स्वभाव क्यारे
जणाय? अने सिद्ध भगवाननुं ध्यान क्यारे कर्युं कहेवाय? जेम सिद्धने संपूर्ण ज्ञान छे ने जराय रागादि नथी,
तेम पोतानो स्वभाव रागादि रहित परिपूर्ण ज्ञान स्वरूप छे;–एम स्वाश्रये श्रद्धा करीने पोताने निर्मळतानो जे
अंश प्रगट्यो ते रागादि रहित शुद्ध छे, अने ते अंशना नमूनावडे सिद्ध भगवाननी पूर्ण शुद्धतानी ओळखाण
थाय छे. पण जेणे पोताना आत्मानी श्रद्धाद्वारा रागरहित अंशने अनुभव्यो नथी तेने सिद्ध परमात्मानी
प्रतीति थाय नहि. शुद्धतानो थोडोक नमूनो पोता पासे होय तो सिद्ध भगवाननी पूरी शुद्धतानुं मान करे.
पोतानो आत्मा रागादि रहित केवळज्ञानादिस्वरूप सिद्ध परमात्मा जेवां ज छे, एवा स्वभावने ओळखीने तेनुं
ज ध्यान करवुं. एवा शुद्धात्मनुं ध्यान करवुं ते ज साक्षात् उपादेय छे, ए सिवाय रागादि कोई उपादेय नथी.
(१२८) पोताथी भिन्न परमात्मानुं ध्यान ते धर्मध्यान नथी
परमात्मानुं ध्यान करवानुं कह्युं छे ते पोताथी भिन्न परमात्मानुं नहि, पण परमात्मानी जेम पोतानो
स्वभाव परिपूर्ण रागादि रहित छे तेने ओळखीने तेनुं ज ध्यान करवुं, ते ज परमार्थे परमात्मानुं ध्यान छे. ए
सिवाय सिद्ध के अर्हंतनुं लक्ष करवुं ते साचुं धर्मध्यान नथी पण राग छे. अने परमार्थे राग ते आर्त्तध्यान वडे
कदी धर्मध्यान थाय नहि. १६
मुद्रक :– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय: मोटा आंकडिया : सौराष्ट्र ता. १३–२–५०
प्रकाशक :– जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया : सौराष्ट्र