Atmadharma magazine - Ank 078
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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ध र्म नुं मू ळ स म्य ग्द र्श न
चैत्र : संपादक : वर्ष: सातमुं
२०६ रामजी माणेकचंद दोशी अंक छठ्ठो
वकील
रणमां पोक
ज्यां अधर्म होय त्यां ते पलटीने धर्म थाय छे. अधर्म
क््यां थाय छे? अधर्म आत्मानी हालतमां थाय छे. हजी अधर्म
कये ठेकाणे थाय ते पण जीवोए कदी विचार्युं नथी. जो बहारमां
अधर्म थतो होय तो आत्मा तेने कदी छोडी शके नहि. स्वभावनी
भ्रांतिथी अधर्म आत्मानी अवस्थामां थाय छे. अने अंतर्मुख
अवलोकतां एटले के आत्माना स्वभावना भानथी ते अधर्म
टळीने धर्म थाय छे. सौथी पहेली सम्यग्दर्शनकळा केम प्रगटे तेनी
आ वात छे. आवुं भान प्रगट कर्या वगर कोई जीवने साचा
व्रत, तप, चारित्र होय नहि; सौथी पहेलांं सम्यग्दर्शनरूपी अपूर्व
कळा प्रगट कर्या विना जीव जेटलुं करे ते बधुं य रणमां पोक
समान अथवा तो एकडा वगरना मींडा समान छे.
छूटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटा आंकडिया : काठियावाड