Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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ध र्म नुं मू ळ स म्य ग् द र्श न
वैशाख : संपादक : वर्ष: सातमुं
२०६ रामजी माणेकचंद दोशी अंक सातमो
वकील
धर्म करनार जीवे शुं जाणवुं?
आत्मानो धर्म क्यां थाय? ते जाण्यां वगर कोई जीवने धर्म
थाय नहि. आत्मानो धर्म क्यांय परमां थतो नथी पण आत्माना
पर्यायमां थाय छे. पोताना त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव तरफ जे पर्याय ढळे
ते पर्यायमां धर्म थाय छे. जेने धर्म करवो छे तेणे पहेलांं एम तो
कबूल करवुं जोईए के हुं आत्मा छुं, मारामां ज्ञान वगेरे अनंत
शक्तिओ त्रिकाळ छे, अने समये समये मारी अवस्था बदलाय छे. ते
बदलती अवस्था परनो आश्रय करे छे ते अधर्म छे, ने परनो आश्रय
छोडी, रागरहित थईने स्वभाव तरफ वळीने स्वभावमां एकाग्र थतां
जे दशा प्रगटे ते धर्म छे. अने स्वभावमां पूरेपूरी एकाग्रता थतां
पूर्णदशा–केवळज्ञान प्रगटे छे. ते केवळज्ञान जेमने प्रगट्युं छे एवा देव
केवा होय? तेमनी वाणीरूप शास्त्रो केवां होय? अने ते केवळज्ञानने
साधनारा गुरु केवा होय? तेनी ओळखाण पहेलांं तो धर्म करनार
जीवने होवी जोईए.
(– भेदविज्ञानसार)
छूटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटा आंकडिया : काठियावाड