ते पर्यायमां धर्म थाय छे. जेने धर्म करवो छे तेणे पहेलांं एम तो
कबूल करवुं जोईए के हुं आत्मा छुं, मारामां ज्ञान वगेरे अनंत
शक्तिओ त्रिकाळ छे, अने समये समये मारी अवस्था बदलाय छे. ते
बदलती अवस्था परनो आश्रय करे छे ते अधर्म छे, ने परनो आश्रय
जे दशा प्रगटे ते धर्म छे. अने स्वभावमां पूरेपूरी एकाग्रता थतां
पूर्णदशा–केवळज्ञान प्रगटे छे. ते केवळज्ञान जेमने प्रगट्युं छे एवा देव
केवा होय? तेमनी वाणीरूप शास्त्रो केवां होय? अने ते केवळज्ञानने
साधनारा गुरु केवा होय? तेनी ओळखाण पहेलांं तो धर्म करनार
जीवने होवी जोईए.