धर्म धर्मात्माओ विना होतो नथी. जेने धर्मनी रुचि होय तेने धर्मात्मा प्रत्ये रुचि होय ज. धर्मी जीवो
प्रेम नथी, अने धर्मनी रुचि नथी तेने धर्मी एवा पोताना आत्मानी ज रुचि नथी. धर्मीनी रुचि न होय अने
धर्मनी रुचि होय एम बने ज नहि. केमके धर्म तो स्वभाव छे, ते धर्मी वगर होतो नथी. धर्म प्रत्ये जेने रुचि
होय तेने कोई धर्मात्मा उपर क्रोध–अरुचि, अप्रेम होय ज नहि. जेने धर्मात्मानो प्रेम नथी तेने धर्मनो प्रेम नथी
धर्म अने धर्मी जुदां नथी.
जेने धर्मना स्थानो प्रत्ये–धर्मी जीवो प्रत्ये–अरुचि छे ते पण मिथ्याद्रष्टि छे. तेनाथी विरुद्ध बे पडखां लईए तो
जेने धर्मनी रुचि छे तेने आत्मानी रुचि छे, अने बीजामां ज्यां ज्यां धर्म जुए छे त्यां त्यां तेने प्रमोद आवे
छे. जेने धर्मनी रुचि थई छे तेने धर्मस्वभावी आत्मानी रुचि होय ज अने धर्मात्माओनी रुचि पण होय ज.
अंतरमां जेने धर्मी जीवो प्रत्ये कांईपण अरुचि थई तेने धर्मनी अरुचि छे. आत्मानी तेने रुचि नथी.
भावनानो विकल्प ऊठे छे. अने पोताना धर्मनी प्रभावनानो विकल्प ऊठतां ज्यां ज्यां धर्मी जीवोने जुए छे
त्यां त्यां तेने रुचि, प्रमोद अने उत्साह आवे ज छे; खरेखर तो तेने पोताना अंतरंग धर्मनी पूर्णतानी रुचि छे.
धर्मनायक तीर्थंकर देवाधिदेव अने मुनि–धर्मात्माओ, सद्गुरु, समकिती ज्ञानीओ ए बधा धर्मात्माओ–धर्मनां
स्थानो छे, तेमना प्रत्ये धर्मात्माने आदर–प्रमोदभाद ऊछळ्या वगर रहेतो नथी; जेने धर्मात्माओ प्रत्ये अरुचि
छे तेने पोताना धर्मनी अरुचि छे, पोताना आत्मा उपर क्रोध छे.
धारण करनार धर्मी एटले आत्मा. जेने धर्मात्मानी अरुचि तेने धर्मनी अरुचि, धर्मनी अरुचि तेने आत्मानी
माया, अने अनंतानुबंधी लोभ होय...एटले जे धर्मात्मानो अनादर करे छे ते अनंतानुबंधी रागद्वेषवाळो छे
अने तेनुं फळ अनंत संसार छे.
प्रमोद जागे, के अहा! धन्य छे आ धर्मात्माने! जे मारे जोईए छे ते तेमणे प्रगट कर्युं छे, मने तेनी रुचि छे,
आदर छे, भावना छे. एम बीजा जीवोना धर्मनी वृद्धि जोईने धर्मात्मा पोताना धर्मनी पूर्णतानी भावना करे
छे एटले तेने बीजा धर्मात्माओने जोईने हरख आवे छे, उल्लास आवे छे. अने ए रीते धर्मनो आदरभाव
होवाथी ते पोतानी धर्मनी वृद्धि करीने पूर्ण धर्म प्रगट करी सिद्ध थई जवाना...............!