Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २००६ : आत्मधर्म : १२३ :
धर्मी जीव शुं कार्य करे छे?
वीर सं. २४७६ चैत्र सुद १२. राजकोटमां श्री समयसार कर्ताकर्मअधिकार गा. ७ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन.
जेम सर्वज्ञ भगवानने रागादि भावो नथी, तेओ एकलुं जाणवानुं ज काम करे छे, तेम धर्मी जीव पण शुं
एकलुं जाणवानुं ज कार्य करे छे के बीजुं कांई करे छे? ते वात चाले छे. ज्ञाताद्रष्टा स्वभावनी रुचि करीने तेनी सन्मुख
परिणमतां जे श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना वीतरागी अंश प्रगट्या ते धर्मीनुं कार्य छे. परनी अवस्थानुं काम तो अज्ञानी
जीव पण करी शकतो नथी. अज्ञानी जीव पोतानो ज्ञाताद्रष्टा स्वभाव छे तेने न मानतां विकारने कर्म तरीके स्वीकारे छे
एटले विकारनो कर्ता थाय छे, अने परनां काम हुं करुं एम ते माने छे. ‘हुं कर्ता अने विकार मारुं कार्य, हुं कर्ता अने
पर मारुं कार्य’ एम विकार अने पर साथे कर्ताकर्मपणानी मान्यता ते अधर्म छे.
अज्ञानी जीवने पोताना परिणाम केम थाय छे तेनी पण खबर नथी. हवे शुद्धस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान थतां
ज्ञानी धर्मात्मा पोताना अनेक प्रकारना परिणामने जाणे छे. अज्ञानदशामां जीव रागादि परिणामने करतो हतो अने
अज्ञानथी जडनुं करवानुं मानीने मिथ्यात्व परिणामनो कर्ता थतो; तेने पोताना परिणामनी के परना परिणामनी
खबर न हती; पोतानो अज्ञानभाव केम थाय छे तेनी के सर्वज्ञदेवे कहेला शास्त्रोनी तेने खबर न हती. हवे स्वसन्मुख
ज्ञानी थयो ते ज स्व–परने बराबर जाणे छे. ज्ञानी जीव स्वसन्मुख रहीने परने अने रागादिने जाणतो होवा छतां
तेनो कर्ता थतो नथी–ए वात ७६मी गाथामां लीधी. हवे आ गाथामां पोताना निर्मळ परिणामने जाणवानी वात छे.
हुं ज्ञानमूर्ति शुद्ध आत्मद्रव्य छुं–एम स्वसन्मुख श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना जे निर्मळ अरागी परिणाम थया ते
पोताना परिणामने ज्ञानी जाणे छे. अहीं रागादि भाव ते पर परिणाममां जाय छे. धर्मीनां धर्मपरिणाम निर्विकल्प,
रागरहित शुद्ध अरूपी छे.
स्वभावसन्मुख जे श्रद्धा–ज्ञान थया ते परिणामनो ख्याल पोताने आवी गयो के–अहो, हुं सम्यग्द्रष्टि थयो–
सम्यग्ज्ञानी थयो, मारे हवे भवभ्रमण नथी. अहो, आत्मद्रव्य! हुं सत्–स्वभावथी भरेलो ज्ञानमूर्ति छुं. सर्वज्ञदेव बधुं
जाणवानुं ज काम करे छे, जाणवा सिवाय रागनुं के पदार्थोमां फेरफार करवानुं काम करता नथी, तेम स्वभावसन्मुख
रहीने हुं पण मारामां जाणवानुं ज काम करुं छुं. आ प्रमाणे वीतरागी द्रव्यना आश्रये थयेला अरूपी निर्मळ परिणामने
धर्मी जाणे छे–ते जाणवारूप कार्यने करे छे, पण तेथी कांई पर परिणामनो कर्ता थतो नथी.
अहीं कह्युं के धर्मी पोताना परिणामने जाणे छे एटले पोताना धर्मपरिणामनी पोताने खबर पडे छे,
केवळीभगवानने पूछवा जवुं पडतुं नथी. नीचली दशामां ज्ञानीने स्व–परनुं बराबर भान छे, निमित्त अने पर
तरफना वलणनी बुद्धि तो तेने खसी ज गई छे, अने अवस्थामां नबळाईथी जे पुण्य–पाप थाय छे तेनी पण रुचि
नथी. धर्मी तो पोताना स्वभावना आश्रये निर्दोष परिणामने ज करे छे. ते पोताना स्वभावना आश्रये थयेली निर्दोष
पर्यायने सम्यग्द्रष्टि जाणे छे.
प्रश्न :– आत्मानो स्वभाव ज्ञाता होवा छतां विकारनो कर्ता क्यांथी थई गयो?
उत्तर :– आत्माना मूळ स्वभावमां विकार नथी, पण अवस्थामां विकार थवानी तेनी योग्यता छे. अवस्थाना
क्षणिक विकारनो द्रव्यद्रष्टिमां स्वीकार नथी. द्रव्यस्वभाव तो अनादि एकरूप छे, पण पहेलांं तेनुं भान न हतुं, हवे
पोतानी आंख उघडी त्यारे तेनुं भान थयुं. जेम दुनिया तो पहेलेथी हती ज, पण आंख उघडी त्यारे मींदडीना बच्चाए
दुनिया जोई. एटले दुनिया नवी थई–एम तेने लागे छे. तेम अनादि वस्तुस्वभाव शुं छे ते जाण्यो न हतो अने हवे
जाणवामां आव्यो एटले तेनी वात नवी लागे छे. पहेलांं, स्व कोण ने पर कोण तेनुं भान न हतुं. धर्मीने
स्वभावसन्मुख आंख उघडी त्यां स्व शुं ने पर शुं तेने ते जाणे छे. धर्मीने खबर पडी के मारा स्वभावे हुं जाग्यो.
अत्यार सुधी हुं ऊंघतो हतो, मने मारा स्वभावनी खबर न हती तेम ज भगवान शुं कहेवा मांगे छे तेनी पण खबर
न हती. हवे हुं स्वसन्मुख थईने जाग्यो एटले स्वपर–प्रकाशक ज्ञानशक्ति खीली, तेथी मारा स्वभावनी तेम ज
भगवान शुं कहे छे तेनी खबर पडी. –आम धर्मी पोताना निर्मळ परिणामने जाणे छे, पण ते रागने ग्रहतो नथी,
रागसन्मुख तेनी बुद्धि नथी.
भवनुं कारण जे राग, ते रागना अभावस्वभावरूप ज्ञातास्वरूपमां अभेदपणे परिणमन छे तेने धर्मी जाणे
छे, एटले तेने भवनी शंका रहेती नथी. धर्मी जीव पोताना ज्ञाता स्वसन्मुख वीतरागी परिणामने जाणे छे, पण
रागादि पर परिणामने ते पकडतो नथी. धर्मीने द्रव्यसन्मुख द्रष्टि छे. जडनी अवस्थाने तो ते नथी पकडतो. परंतु अहीं
तो शुभराग थाय