Atmadharma magazine - Ank 082
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २००६ : आत्मधर्म–८२ : २०३ :
अहोभाग्य होय तेने आ सांभळवा मळे

आचार्यदेव श्री समयसारमां कहे छे के अनादिकाळथी जे शुद्ध आत्मानुं स्वरूप नथी जाण्युं ते शुद्ध
आत्मानुं स्वरूप हुं दर्शावुं छुं; हुं दर्शावुं ते तमे प्रमाण करजो.–आम कहीने कहेनारना तथा सांभळनारना भावनुं
ऐक्य करे छे. हुं अविरुद्ध निर्णयथी कहीश, तमे जो तेम ज समजशो तो भूल नहि थाय. अन्यथा कुतर्क के वादथी
पार आवे तेवुं नथी. तमे जाते स्वानुभव–प्रत्यक्षथी, परीक्षा करी प्रमाण करजो (निर्णय करजो). अंर्ततत्त्वमां
बहारनी परीक्षा कार्यकारी नथी. श्री आचार्यदेवे पोते तो शुद्धतत्त्वनो अनुभव करीने कह्युं छे, पण श्रवण करनार
उपर आटली जवाबदारी मूकी छे के तमे जाते ज अनुभव करीने निर्णय करजो. आत्मा, मन अने ईन्द्रियोथी
अगोचर छे; तेथी पोताना अंतर–ज्ञानस्वभावथी जे तेने जाणवानो प्रयत्न करशे तेने ते मारी जेम
स्वानुभवप्रत्यक्ष थशे ज.
जेनां अहोभाग्य होय तेने आ तत्त्व सांभळवानुं प्राप्त थाय. अने अपूर्व पात्रताथी आत्मपुरुषार्थ करे
तो परमार्थनी प्राप्ति थाय. स्वसमजण कर्या वगर अनंतवार साक्षात् तीर्थंकर पासे जई आव्यो, त्यां तीर्थंकरना
देहने जोयो, पण तीर्थंकरदेवे जेवो कह्यो तेवा पोताना आत्मानुं लक्ष कर्युं नहि. तीर्थंकरदेव जेवुं उत्कृष्ट निमित्त
जगतमां बीजुं कोई नथी; त्यां पण अंतरमां स्वभावनी ना पाडनारा अने ऊंधाई सेवनारा हता, अने
अनंतकाळ तेवा जीवो रहेवाना पण छे. अवळाईमां पण सौ स्वतंत्र छे, तेथी कोण कोने तारे?
दुनिया तो जेम छे तेम रहेशे. पोते समजीने पोतानुं हित करे पछी दुनियानी उपाधि शा माटे राखवी?
लोको शुं माने छे तेना उपर द्रष्टि राखवी न जोईए, पण सर्वज्ञ शुं कहे छे तेनी अंतर परीक्षा करवी जोईए.
परमार्थ न समजे अने मात्र बाह्य प्रवृत्तिमां रोकाय तो तेनाथी जन्म–मरण कदी पण टळे नहि. कदाच मंदकषाय
करे तो पुण्य बांधी स्वर्गमां जाय, परंतु आत्मा परथी भिन्न छे–तेनी यथार्थ श्रद्धा वगर मोक्षनो सहज पुरुषार्थ
नहि थाय. जीवे नरकने लायकना पापभाव करतां पुण्यभाव तो अनंतवार कर्यां छे (–नरक करतां स्वर्गमां
अनंतवार गयो छे), पण अहीं तो जेनाथी मोक्ष मळे एवो धर्म केम थाय तेनी वात छे. पुण्यथी धीमे धीमे धर्म
थशे, परना अवलंबनथी आत्मगुण प्रगटशे वगेरे प्रकारनी ऊंधी मान्यताओ अनादिनी छे. निमित्ताधीन
द्रष्टिथी जीवने संसारमां भवभ्रमण छे. पुण्य, पाप अने रागनो अंश–मात्र मारा स्वभावमां नथी, हुं एक
ज्ञायकमात्र छुं,–एम समज्या विना चोराशीना अवतारनो एके आंटो टळशे नहि; भव घटे नहि तो आ मनुष्य
अवतार पाम्यानुं फळ शुं?
लौकिक नीति पाळे तेनो निषेध न होय, पण एवी व्यवहार पात्रता तो बाह्य आचरणमां गणाय छे;
अने आ तो हवे अंतरमुखद्रष्टि करीने सत्समागमथी आत्मानो अपूर्व अनुभव करवानी आवश्यकता छे, तेनी
वात छे. तेना विना बीजुं बधुं अनंतकाळमां जीवे कर्युं छे पण ते बधां साधनो बंधनरूप थयां. मोक्षनुं खरुं
साधन शुं छे तेने ओळख्युं नहि.
(जुओ, समयसार–प्रवचन भाग १ पृ. १५१–२)
धार्मिक दिवसो
मुमुक्षुओनी सगवडता खातर, सोनगढमां दरवर्षे जे रीते धार्मिक दिवसो मनाय छे ते रीते
आ वर्षे पण ता. ९–९–५० श्रावण वद १२ ने शनिवारथी ता. १६–९–५० भादरवा सुद प ने
शनिवार सुधी धार्मिक दिवसो गणवामां आवशे.
श्री जैन अतिथि सेवा समितिनी वार्षिक मीटिंग भादरवा सुद २ ता. १३–९–५० बुधवारना
रोज सांजे पांच वागे थशे.