अहीं मांगळिक तरीके आ समयसारनी २०६मी गाथा वंचाय छे–
आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो उत्तम थशे.
आ मंगळनी गाथा छे, तेमां आत्माना उत्तम सुखनी वात आवी छे. आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! तुं
उत्तम सुख थशे.
आनंद स्वभावने अनादिथी चूक्यो छे. जो तेनुं भान करे तो आनंद प्रगट्या वगर रहे नहि.
आत्मा मानीने तेनी रुचि करी छे. पण विकार विनानुं त्रिकाळी द्रव्य आत्मा छे ते ज्ञानमात्र छे, तेनी कदी रुचि
करी नथी.
विकार वखते पण आत्मद्रव्य स्वभावथी शुद्ध छे. तेम ज, जो वर्तमान पर्यायमां क्षणिक अशुद्धता न होय तो आ
संसार न होय. माटे क्षणिक पर्यायमां वर्तमान अशुद्धता पण छे. तेमां क्षणिक अशुद्धतानी प्रीति जीवे करी छे
पण शुद्धद्रव्यनी प्रीति कदी करी नथी. शुद्धद्रव्यना ज आश्रये शुद्धता अने सुख प्रगटे छे. जड शरीर के विकारना
आश्रये सुख मळे एम कदी बनतुं नथी.
स्वभावना आश्रय विना अनंत संसारमां तने क्यांय शांति न मळी.
पापतत्त्व छे, दया, व्रतादि भाव ते पुण्यतत्त्व छे, ते पुण्य ने पाप बंने आस्रवतत्त्व छे, ते विकारमां आत्मा
अटके ते बंध–तत्त्व छे. विकाररहित शुद्ध आत्मानुं ज्ञान अने एकाग्रता करवी ते संवर अने निर्जरा तत्त्व छे,
अने पूर्ण शुद्धता प्रगटे ते मोक्षतत्त्व छे. तेमां पुण्य–पाप विकार ते हुं एम अज्ञानी माने छे एटले के पुण्य–पाप
आस्रव ने बंधतत्त्वने ज ते जीवतत्त्व माने छे, ते ऊंधी रुचि छे; तेने कहे छे के पुण्य–पाप ते जीवतत्त्व नथी पण
जेटलुं ज्ञान छे तेटलुं ज जीवतत्त्व छे,–आम समजीने तुं ज्ञानमात्र आत्मानी रुचि कर.
पण निमित्तनो के रागनो आश्रय करे ते आत्मा छे–एम नथी कह्युं. जेम केवळी भगवाननो आत्मा ज्ञानमय
छे, तेने रागादि के निमित्तनो आश्रय नथी; तेम केवळज्ञान साथे मेळवीने कहे छे के जेटलुं ज्ञान छे तेटलो ज
सत्य आत्मा छे. पुण्य–पापना विकल्प, ते कांई सत्य आत्मा नथी. देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धानो विकल्प, ते
तरफनुं ज्ञान के पंचमहाव्रतना विकल्प–एवो जे व्यवहार रत्नत्रयनो भाव ते खरेखर आत्मा