Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २५२ : : आत्मधर्म : ८४
ज्ञानभंडारने ओळखीने संपूर्ण ज्ञानलक्ष्मी प्राप्त
करवानी भावनापूर्वक ते लक्ष्मीनुं पूजन करवुं तेनुं ज
नाम साचुं लक्ष्मीपूजन छे.
दिपावली प्रसंगे पूजनादि कई रीते करवुं तेनी
विधि अहीं आपवामां आवे छे: ते दिवसे बे पूजन
करवानां होय छे. एक तो, श्री महावीर भगवान
निर्वाण पाम्या होवाथी श्री महावीर–निर्वाण–पूजन
अने बीजुं, श्री गौतमस्वामी केवळज्ञानलक्ष्मी पाम्या
होवाथी ज्ञानलक्ष्मी पूजन.
आ पूजन माटे (१) कळशमां पाणी (२)
चंदन (३) अक्षत (४) चंदनवाळा चोखा (५)
टोपरुं (६) दीपक (७) धूप अने (८) बदाम,
श्रीफळ वगेरे फळो–ए आठ प्रकारमांथी बने तेटली
सामग्री लेवी. अने सुंदर उच्च आसन उपर श्री
महावीर प्रभुनो फोटो तेम ज श्री समयसारजी शास्त्रने
भक्तिपूर्वक बिराजमान करीने नमस्कार मंत्र बोलीने
नीचे मुजब पूजा करवी.
श्री महावीर–निर्वाण–पूजन
[अहीं आपी छे ते पूजा पूजनसंग्रह पृ. २७९.
मां छे. आ सिवाय महावीर प्रभुनी बीजी कोई पूजा
पण करी शकाय छे.
]
श्रीमत वीर हरे भवपीर भरे सुखसीर अनाकुलताई,
केहरि अंक अरिकरदंक नये हरि पंकित मौलि सु आई;
मं तुमको इंह थापत हूं प्रभु भक्ति समेत हिये हरखाई,
हे करुणाधनधारक देव ईहां अब तिष्टहु शीघ्र ही आई.
“ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवोषट्र.
“ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं.
“ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट्र.
(१) क्षीरोदधिसम शुचिनीर कंचनभृंग भरी,
प्रभु वेग हरो भवपीर यातें धार करुं;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर जिनेन्द्र
चरण–कमल पूजनार्थे, जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं
निर्व
स्वाहा.
(२) मलयागिरि चंदन सार केसर संग घसी,
प्रभु भवआताप निवार पूजत हिय उलसी;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर जिनेन्द्र
चरणकमल पूजनार्थे, संसारताप विनाशनाय चंदनं
निर्व
स्वाहा.
(३) तंदुल स्रित शशिसम शुद्ध लीनो थाल भरी,
तसु पुंज धरी अविरुद्ध, पाउं शिवनगरी;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अक्षयपद प्राप्तये अक्षतं
निर्व
स्वाहा.
(४) सुरतरुं के सुमन समेत सुमन सुमनप्यारे,
सो मनमथभंजन हेत पूजुं पद थारे;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजानार्थे, कामबाणविध्वंसनाय
पुष्पं निर्वर्
स्वाहा.
(५) रस रज्जत सज्जत सद्य मज्जत थाल भरी,
पद जज्जत रज्जत अद्य भज्जत भूख अरि;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, क्षुधारोगविनाशनाय
नैवैद्यं निर्व
स्वाहा.
(६) तमखंडित मंडित नेह दीपक जोवत हूं,
तुम ५दतर हे सुखगेह भ्रमतम खोवत हूं;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, मोह–अंधकारविनाशनाय
दीपं निर्व
स्वाहा.
(७) हरि चंदन अगर कपूर चूर सुगंध करा;
तुम पदतर खेवत भूरि आठों कर्म जरा;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अष्टकर्मदहनाय धूपं
निर्व
स्वाहा.
(८) ऋतु फल कलवर्जित लाय कंचन थाल भरी,
शिवफल हित हे जिनराय तुम ढिंग भेट धरूं;
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हों,
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, मोक्षफलप्राप्तये फलं
निर्व
स्वाहा.
जल फल वसु सजि हेम थाल तनमन मोद धरूं,
गुण गाउं भवोदधितार, पूजत पाप हरुं;