Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७६ : २५३ :
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो.
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति दायक हो.
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्री महावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अनर्ध्यपद प्राप्तये अर्ध्य
निर्व
स्वाहा.
महावीर प्रभुना पंचकल्याणक
मोहि राखो हे शरना श्री वर्द्धमान जिनराय जी...
मोहि गरभ साढ सित छठ्ठ लियो तिथि त्रिशला उर
अघहरना, सुरसुरपति तित सेव करी नित, मैं पूजुं
भवतरना... मोहि
“ हीं अषाढ सुद छठ्ठ दिने गर्भकल्याणक प्राप्त
श्री महावीर जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अर्ध्य
निर्व
स्वाहा.
जनम चैत सित तेरस के दिन कुंडलपुर कनवरना,
सुरगिर सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजुं भवहरना... मोहि
“ हीं चैत्र सुद तेरस दिने जन्मकल्याणक प्राप्त
श्री महावीर जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अर्ध्यं
निर्व
स्वाहा.
कार्तिक कृष्ण मनोहर दसमी, ता दिन तप आचरना,
नृपकुमार घर पारण कीनों, मैं पूजुं तुम चरना... मोहि
“ हीं कारतक वद दसम दिने
ज्ञानकल्याणकप्राप्त श्री महावीर जिनेन्द्र चरणकमल
पूजनार्थे, अर्ध्यं निर्व
स्वाहा.
शुक्ल दसैं वैशाख दिवस अरि घातचतुर क्षय करना,
केवललहि भवि भवसर तारे ज्जुं चरण गुणभरना... मोहि
“ हीं वैशाख सुद दसम दिने ज्ञानकल्याणक
प्राप्त श्री महावीर जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अर्ध्यं
निर्व
स्वाहा.
आश्विन श्याम अमावस शिवतिय, पावापुर तैं वरना,
ईन्द्र–नरेंद्र ज्जें तित बहुविधि, मैं पूजुं भयहरना... मोहि
“ हीं आसो वद अमास दिने
ज्ञानकल्याणकप्राप्त श्री महावीर जिनेन्द्र चरणकमल
पूजनार्थे, अर्ध्यं निर्व
स्वाहा.
–जयमाला– (हरिगीत)
गनधर अशनिधर चक्रधर हरधर गदाधर वरवदा,
अरु चापधर विद्यासुधर तिरशूलधर सेवें सदा;
दुःखहरन आनंदभरन तारन–तरन चरन रसाल है,
सकुमाल गुनमनिमाल उन्नत भालकी जयमाल है.
(त्रिभंगी)
जय त्रिशलानंदन हरिकृतवंदन जगदानंदन चंद्रवरं,
भवतापनिकंदन तनकनमंदन रहितसपंदन, नयनधरं;
श्री वीरजिनेशा नमित सुरेशा नागनरेशा भक्तिभरा,
‘जिनभक्त’ ध्यावै विघ्न नशावे वांछित पावै शर्म वरा.
(वधारे जयमाला बोलवी होय तो पूजासंग्रह
पृ. २८४ थी २८७ मांथी बोलवी.)
“ हीं श्री निर्वाणप्राप्त भगवान श्रीमहावीर
जिनेन्द्र चरणकमल पूजनार्थे, अनर्ध्यपद प्राप्तये
महाअर्ध्यं निर्व
स्वाहा.
ज्ञानलक्ष्मी (–सरस्वती) पूजन
[ज्ञानलक्ष्मीनुं बीजुं नाम सरस्वती पण छे;
भगवाननी वाणी ते उत्तम द्रव्यश्रुत छे, ने तेने पण
सरस्वती कहेवाय छे. ज्ञानपूजा तरीके तेनुं पूजन
करवामां आवे छे......... अहीं जे पूजा आपी छे ते
पुजासंग्रह पृ. ४५ मांथी आपी छे. ए सिवाय बीजी
कोई सरस्वती पूजा पण करी शकाय छे.
]
मोक्षमार्गस्यनेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वंदे तद्गुणलब्धये.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे पुष्पांजलि निर्व
स्वाहा.
(१) उदधिक्षीर सुनीर सुनिर्मलै: कलश कांचन पुरित शीतलै:
परमपावन श्री श्रुत पूजनै: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे जलं निर्व
स्वाहा.
(२) मलयचंदन गंध सुकुंकमै, विमल श्रीघनसार विमिश्रितै:
सुपंथ मोक्षप्रकाशनमर्चिते जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे चंदन निर्व
स्वाहा.
(३) धवल अक्षत जोतिरखंडितै: चतुरपुंजअनुपममंडितै:
विविधवीजमुपार्जितपुण्यजै: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे:
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे अक्षतान् निर्व
स्वाहा.
(४) कमलकुंद गुलाब सुचं पकै: ललितवेलिचमेलिसुगंधजै:
प्रचुरपुष्पित पुष्प मनोहरे: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे पुष्पं निर्व
स्वाहा.
(५) मधुर आमिल त्यकत सुव्यंजनै:
वृकटघेवरखज्जकमोदकै:
कनकभाजनपूरितनिर्मिते: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे नैवद्यं निर्व
स्वाहा.
(६) विमल ज्योतिप्रकाशन दीपकै: धृतवरैर्धनसारमहोज्वलै:
रवमुदार सुवादित नृत्यकै: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे दीपं निर्व
स्वाहा.
(७) अगरचंदनधूप सुगंधजै: दहनकर्म दवानलखंडितै:
अलितगुंजनवासमहोत्तमै: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे धूपं निर्व
स्वाहा.