Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २५४ : : आत्मधर्म : ८४
(८) फलसुदाडिमआम्रसुश्रीफलै: कदलिनारंगनिंबुजद्राक्षकै:
हरितमिष्टफलादिक संयुतै: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे फलं निर्व
स्वाहा.
(९) उदकचंदन तंदुलपुष्पकै: चरुसुदीपसुधूपफलार्ध्यकै:
धवलमंगलगानरवाकुल: जिनगृहे जिनसूत्रमहं यजे.
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे अर्ध्यं निर्व. स्वाहा.
–जयमाला–
[मालिनी]
विमल विमलवाणी, देव देवेन्द्रवाणी
हरषि हरषि गानी, भव्य जीवेन प्रानी
कुरु कुरु निजपाठे, श्री समयसार सूत्रे
भज भज निजरूपं, तत्त्व तत्त्वार्थ दीपं
अनुपम सुखदाता, भव्यजीवेन साता
कुगति मतिभानी, जैनवाणी विख्याता
सुर नरमुनि जेता, ध्यान ध्यायंति तेता
स जयति जिनसूत्रं, मोक्षमार्गस्य भानु.
(वधारे जयमाल बोलवी होय तो पूजासंग्रह
पृ ४९ थी ५३ मांथी बोलवी.)
“ हीं श्री परमागम जिनसूत्रे अर्ध्यं निर्वपा. स्वाहा.
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी
मंगलं कुंदकुंदाद्यो, जैनधर्मोस्तु मंगलं.
“ हीं सिद्धपद प्राप्त श्री महावीर जिनेन्द्र
चरणकमल पूजनार्थे, अर्हंतपद प्राप्त श्री
गौतमगणधर चरणकमल पूजनार्थे अर्ध्यं निर्वपामिति
स्वाहा.
ध्यानदहनविधिदारूदहि पायो पद निरवान
पंचभावजुत थिर थये नमुं सिद्ध भगवान.
सिद्ध सुगुण को कही शके? ज्यों विलसत नभमान
जिनभक्त तातैं जजे करो सकल कल्याण.
“ हीं श्री सिद्धपद प्राप्त महावीरादि जिनेन्द्र
चरणकमल पूजनार्थे, अर्ध्यं निर्वपामिति स्वाहा.
जिंह पावापुर क्षेत्र अघाति, हत सन्मति जगदीश
भये सिद्ध शुभथान सो जजुं नाय निज शीश.
“ हीं श्री महावीर निर्वाणभूमि पावापुरी सिध्धक्षेत्र
पूजनार्थे अर्ध्यं निर्वपामिति स्वाहा.
–आरति–
(उपर मुजब पूजन करीने पछी आरति करवी.
नीचे लखेली अथवा बीजी कोई पण आरति
बोलवी.)
(आरति सीमंधरजी तुमारी........... ए राग)
करुं आरति वर्द्धमानकी, पावापुर निरवान थानकी....
राग विना सब जगजन तारे, द्वेष विना सब करम विदारे.
शील–धुरंधर शिवतिय भोगी, मनवचकायन कहिये योगी.
रतनत्रयनिधि परिगह–हारी, ज्ञानसुधा भोजनव्रत धारी,
लोक अलोक व्यापे निजमांहि, सुखमय ईन्द्रियसुख–दुःख नांहि.
पंचकल्याणकपूज्य विरागी, विमल दिगंबर अंबर–त्यागी.
गुणमणिभूषण भूषित स्वामी, जगत उदास जगंतर स्वामी.
कहे कहां लो तुम सब जानो, सेवक की अभिलाष प्रमाणो.
(शांतिपाठ)
पूजे जिन्हें मुकुट हार किरिट लाके,
ईन्द्रादिदेव अरू पूज्य पदाब्ज जाके,
सो शांतिनाथ वरवंश जगत्प्रदीप,
मेरे लिये करहि शांति सदा अनूप.
–ए प्रमाणे पूजनविधि पूर्ण थया पछी,
पांचवार नमस्कारमंत्रनो जाप करवो, अने महावीर
भगवान, गौतमप्रभु वगेरेना जयकार बोलवा. त्यार
पछी नवा चोपडामां मंगलाचरण तरीके नीचे मुजब
भावनाओ लखवी
[अज्ञानी जीवो आ महामंगळ
प्रसंगे संसारपोषक भावनाओ भावे छे ने चोपडामां
तेवुं लखे छे ते योग्य नथी. एक तरफ श्री महावीर
प्रभुनी सिद्धदशा अने बीजी तरफ श्री गौतमप्रभुने
केवळज्ञान प्राप्ति–ए रीते सिद्धपद अने अरिहंतपदना
सर्वोत्कृष्ट मंगळप्रसंग वखते आत्माने आत्मिक
भावनाओ वडे ओतप्रोत करवो जोईए. तेथी
चोपडामां मंगलाचरण तरीके संसारपोषक भावनाओ
न लखतां, ते स्थाने नीचे मुजब पवित्र भावनाओ
लखवी. पोताने कोई खास भावना ते प्रसंगे स्फुरे तो
ते पण लखी शकाय.
* श्री महावीरपरमात्माने नमस्कार *
* गौतमगणेशने नमस्कार *
* श्री जिनवाणी माताने नमस्कार *
* श्री सद्गुरुदेवने नमस्कार *
* श्री जैनधर्मने नमस्कार *