: आसो : २४७६ : २५५ :
हे भगवान श्री वीरप्रभु! आप श्री आजे
संसारनो अंत लावीने अपूर्व मुक्तदशाने पाम्या छो.... हे
श्री गौतमगणधर देव! आपश्री आजे केवळज्ञानलक्ष्मीने
पामीने जीवन्मुक्त थया छो. प्रभो, अमे हजी
गृहस्थपणामां फसेला छीए, पण अमारी रुचिमां अमे
आपश्रीनी पवित्र मंगलदशानी भावना करीए छीए. आ
मंगलपर्वना सुप्रभाते अमारी भावना छे के–
१ श्री महावीरप्रभु जेवी आत्मरिद्धि अमने प्राप्त थाओ.
२ श्री सीमंधर प्रभु अमारा उपर प्रसन्न रहो.
३ श्री नेमनाथ प्रभु जेवो सद्वैराग्य अमने प्राप्त थाओ.
४ श्री गौतमप्रभु जेवी ज्ञानलक्ष्मी अमने प्राप्त थाओ.
५ श्री बाहुबलि स्वामी जेवुं अडग आत्मबळ अमने प्राप्त थाओ.
६ श्री कुंदकुंद प्रभुजी समान स्वरूपजीवन अमने प्राप्त थाओ.
७ श्री सद्गुरुदेवनी सेवानो लाभ निरंतर अमने प्राप्त थाओ.
८ श्री देव–गुरु–धर्म प्रत्येनी अमारी भक्ति दिनदिन वृद्धि पामो.
९ पवित्र रत्नत्रयरूपी अमूल्य लक्ष्मीनो अमने लाभ थाओ.
१० उत्कृष्ट ज्ञान–वैराग्यथी अमारा जीवनभंडार सदाय भरपूर रहो.
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श्री महावीर–निर्वाण–कल्याणक
वीर सं. २४७७
आसो वद ०)) वार
ली. जिनेन्द्रभक्त
* * * * *
–ए प्रमाणे लख्या पछी वखत अने भाव
अनुसार धार्मिक स्तवनो गाईने तेमज वाजिंत्र वगेरेथी
भक्ति करवी.
त्यार पछी आ मंगळप्रसंगे, लक्ष्मी उपरनो मोह
घटाडवा माटे उदार भावथी पोतानी शक्ति अनुसार–
ज्ञान–दान वगेरे करवां, तेम ज साधर्मीओ प्रत्ये वात्सल्य
करवुं.
दरेक जेनश्रावकोए कुरिती छोडीने आ प्रमाणे जैन–
संस्कृति अनुसार दिपावली पर्व ऊजववुं जोईए.
मासिकना ७३ थी ८४ सुधीना आत्मधर्म
नं. विषय अंक–पृष्ठ नं. विषय अंक–पृष्ठ
–अ–आ–उ–ए– १५ अंक मोडो केम? ७८–११८
१ अज्ञानीओ नो निष्फळ मिथ्या अभिप्राय Error! Not
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१६ आ अंकना २४ पाना ७८–११८
२ अज्ञानी जीव बाह्य संयोगोमां सुख शोधे छे खास–१९८ १७ आत्मतत्त्वनी मुख्यता ७४–३१
३ अज्ञानीनी ऊधी दोड ७८–११९ १८ आत्मधर्मना पाछला अंको ८२–२१६
४ अज्ञानीनी ऊंधी नजरे ८१–१७७ १९ आत्मधर्मनुं आठमुं वर्ष ८४–२५९
५ अधिक मासनो अंक ८१–१७३ २० आत्मधर्मनुं भेटपुस्तक चिद्दविलास ८०–२५९
६ अनंतानुबंधी कषाय खास–१८२ २१ आत्मानी प्रभुता ७५–५८
७ अनादिनुं अज्ञान टळीने भेदज्ञान कई रीते थाय? ८३–२३३ २२ आत्मानी शांति क्यां छे? ७५–५६
८ ‘अनेकांतिक मार्ग पण सम्यक्एकांत एवा निजपदनी २३ आत्मानी साची समजण ७६–७६
प्राप्ति कराववा सिवाय बीजा अन्य हेतुए उपकारी नथी’ – २४ आत्मानी साची समजणनो उपदेश ७७–८८
ए उपरनुं खास प्रवचन– ८०–१४३ २५ आत्मानुं स्वास्थ्य ८१–१७०
९ अरिहंतदेवना दिव्य ध्वनिनो सार ७६–७० २६ आत्माने भगवान माने ते भगवान थाय ७४–४०
१० अरिहंत भगवाने करेलो स्वतंत्रतानो उपदेश ८१–१६३ २७ आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव ने वस्तुमां क्रमबद्धपर्याय ७४–२२
११ अरूपी आत्मानी समजण ७३–१५ २८ उद्धारनो मार्ग ७३–८
१२ अहिंसा धर्म ७८–१११ २९ एकत्वस्वभाव अने द्वैतभाव ८४–२४६
१३ अहो, चैतन्य रत्न! ७७–९० क–ख–ग–च–ज–ज्ञ
१४ अहोभाग्य होय तेने आ सांभळवा मळे ८२–२०३ ३० कल्याणनी मूर्ति ७९–१२६
३१ कोण कर्ता अने शुं तेनुं कार्य? ८०–१४२