Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७६ : २५७ :
नं. विषय अंक–पृष्ठ नं. विषय अंक–पृष्ठ
११० भव्य–संबोधन ७३–१ १४७ श्रीमद् राजचंद्र जन्म–स्थान–भुवनमां
१११ भाई, तुं तारुं सुधार! ८०–१४२ पू. गुरुदेवश्रीनुं खास प्रवचन ८०–१४३
११२ भेट पुस्तको संबंधी खुलासो ७६–८० १४८ श्री महावीर प्रभुना आत्मानुं जीवन ७९–१३०
११३ भेदविज्ञाननो महिमा ७६–६१ १४९ श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्रनी यात्रा खास–१८२
१५० श्री सद्गुरु उपदेश (हिंदी काव्य) ८२–२०२
११४ मनुष्यपणुं पामीने शुं करवा जेवुं छे? ७५–५२ १५१ श्री सद्गुरु–प्रवचन–प्रसाद ८४–२४१
११५ महा पवित्र दसलक्षणी पर्व ८३–२३१
११६ महावीरनी क्रिया अने महावीरना उपवास ७३–२ १५२ सत्पुरुषनी वाणी ८१–१६९
११७ महावीर भगवान कई रीते मोक्ष पाम्या? ७३–१० १५३ सत्पुरुषोनुं वचनामृत ८१–१६१
११८ माताजीने संदेश (काव्य) ७३–४ १५४ सत्य वस्तुस्वरूप ७३–४
११९ मान–अपमान ७३–१५ १५५ सत्य स्वरूप ७४–३१
१२० मुक्तिनो उपाय: भेदज्ञान ८२–२१३ १५६ समयसार–प्रवचनसारजीना
१२१ मुमुक्षुओए सेववायोग्य बे साधनो ८०–१४१ व्याख्याननी शरूआत खास–१९७
१२२ मोक्ष अने बंधनुं कारण ७९–१३८ १५७ समयसार–प्रवचनो ७६–८०
१२३ मोक्षनो उपाय ७४–३२ १५८ समयसारमां देशनालब्धि; तथा
१२४ मोक्षशास्त्र–गुजराती टीका (बीजी आवृत्ति) ७३–२० निमित्तनी सापेक्षता बाबत अनेकांत ८४–२४४
१२५ मोंघुं मानवजीवन ८२–२०९ १५९ साचुं ज्ञान केम थाय? ८१–१६२
–र–व–
१२६ रणमां पोक ७८–९७ १६० सिद्धिनो उपाय ८३–२२८
१२७ राग–द्वेष वगरनो आत्मानो ज्ञानस्वभाव ७९–१३५ १६१ सुख खास–१९९
१२८ राजकोटमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा प्रसंगे १६२ सुखनी शोधमां ७३–५
–पधारेला जिनबिंबोनी यादी ७८–९८ १६३ सुख विषे विचार ८४–२४३
१२९ राजकोटमां पू. गुरुदेवश्रीनुं आगमन अने १६४ सुधारो (अंक ७२ नो) ७३–७
श्री जिनबिंब प्रतिष्ठानो महोत्सव ७७–८१ १६५ सुधारो (अंक ७० नो) ७४–३३
१३० वढवाण शहेरना जिनमंदिर माटे दान ८४–२५९ १६६ सुधारो (अंक ७५ नो) ७७–८७
१३१ वीतराग विज्ञान खास–१८१ १६७ सुधारो (अंक ८२ नो) ८३–२२२
१३२ वींछीयावनमां वैराग्यभावना ७५–४७ १६८ सुवर्णपुरीमां मंगल–प्रवचन ८२–२०४
१३३ वैराग्य समाचार ८३–२२२ १६९ सुवर्णपुरी समाचार खास–१९७
–श–श्र– १७० सूचना ७७–८७
१३४ श्री कुंदकुंद–श्राविकाशाळानुं खातमूहूर्त ८३–२३५ १७१ सौराष्ट्रना पाटनगरमां श्री पंचकल्याणक
१३५ श्री जै. स्वा. मं. ट्रस्टनां केटलांक प्रकाशनो ७५–५३ प्रतिष्ठानो महोत्सव अने
१३६ श्री जै. स्वा. मं. ट्रस्टनां केटलांक प्रकाशनो ७५–६० श्री जिनेन्द्रशासनना जयकार ७८–११५
१३७ श्री जै. स्वा. मं. ट्रस्टनां केटलांक प्रकाशनो ७९–१४० –ह–
१३८ श्री जै. स्वा. मं. ट्रस्टनां केटलांक प्रकाशनो खास–२०० १७२ हे जीव! तुं शुद्धात्मानी श्रद्धा कर! ७४–२१
१३९ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१२) ७३–१६ १७३ हे भव्य! तुं आत्मानी प्रीति कर! खास–१८४
१४० श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१३) ७७–८२ चित्रो
१४१ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१४) ७८–१०९ (१) भव्य–संबोधन ७३–१
१४२ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१५) ७९–१२७ (२) चैतन्यसमुद्रमां डुबकी मारीने आत्मिक–
१४३ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१६) ८०–१५२ आनंदरसना स्वादना अनुभवमां लीनता ७३–२
१४४ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१७) ८२–२१७ (३) अरिहंत भगवान ७३–३
१४५ श्री परमात्मप्रकाश प्रवचनो: लेखांक (१८) ८३–२३६ (४) सिद्ध भगवान ७३–३
१४६ श्री पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार (काव्य) ७३–३ (५) आचार्य भगवान ७३–३